उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिले के बार्सू गांव में रहने वाले विजय सेमवाल आज लोगों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं. 36 साल के विजय ने यहां ऐसा काम किया है जो काबिल-ए-तारीफ है. आर्थिक परेशानियों के चलते उनके परिवार और साथी ग्रामीणों के चले जाने से भी विजय निराश नहीं हुए. वह अपने पूर्वजों की विरासत को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं. हर दिन 18 घंटे अथक परिश्रम करके उन्होंने न केवल अपने गांव की परंपराओं को जीवित रखा है बल्कि आत्मनिर्भरता भी हासिल की है.
विजय सेमवाल ने जो काम करने का बीड़ा उठाया है, वह समुदाय का पुनर्निर्माण करना है. उनके प्रयासों ने अन्य लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है. पिछले ढाई सालों से गांव में कम से कम एक दर्जन घरों का पुनर्निर्माण किया गया है क्योंकि ग्रामीणों ने वापस लौटना शुरू कर दिया है. सुनसान पहाड़ी गांव में, विजय को बस इच्छाशक्ति और दृढ़ विश्वास की जरूरत है कि बार्सू को उसका हक मिलेगा, चाहे कुछ भी हो.
खाली हो गया था गांव
उत्तराखंड में मानसूनी आपदाओं का असर बार्सू पर पड़ा है. गांव में पहले से ही बिजली, पानी और सड़क समेत अन्य बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं. पिछड़ेपन के बीच ग्रामीण अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित थे. गांव के लोगों के लिए सबसे आसान तरीका पलायन करना था. 25 मार्च 2014 को, केदारनाथ आपदा के बाद, विजय अपने एक सहयोगी राम सिंह के साथ कुछ भोजन, राशन और कुछ व्यक्तिगत ज़रूरतों के साथ बार्सू गांव पहुंचे.
यहीं से विजय के संघर्ष और सफलता की शुरुआत हुई. बार्सू को एक 'भुतहा गांव' (haunted village) के रूप में जाना जाता है. फिर दोनों एक बाज़ार के पास एक गांव से 15 परित्यक्त जानवरों को ले आए. उन्हें खाद के लिए प्रचुर मात्रा में गोबर मिला. इनकी खेती आगे बढ़ने लगी. चारों ओर हरे-भरे खेत होने से गांव से पलायन करने वाले ग्रामीणों के मन में अपने गांव में खेती करने की इच्छा जागी. इसने उन्हें अपने घरों की मरम्मत करने और खेती शुरू करने के लिए प्रेरित किया.
लोग कर रहे हैं घरों की मरम्मत
समय के साथ एक दर्जन परिवारों ने अपने घरों की मरम्मत की है. कुछ के पास तो नए घर भी हैं. विजय कहते हैं कि ग्रामीण यहां केवल पिकनिक के लिए आते हैं, लेकिन उन्होंने शहर में आवास बना रखा है. उनकी मेहनत रंग लाई और एक दर्जन से अधिक ग्रामीण अब रोजगार के मामले में उनके साथ जुड़े हुए हैं. विजय की खेती की योजना में सभी प्रकार की मौसमी सब्जियों के अलावा फलों के 400 पेड़ शामिल हैं, जिनमें माल्टा, नींबू और संतरे की उन्नत प्रजातियों की बाजार में काफी मांग है.
विजय की कड़ी मेहनत ने पीडब्ल्यूडी, जल संस्थान और अन्य अधिकारियों को प्रभावित किया जो अपने बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों को यह दिखाने के लिए लाए कि खेती कैसे की जाती है. बार्सू गांव में एक नई रुचि ने लोगों को वापस बसने और वह जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है जो वे हमेशा से चाहते थे. समय के साथ, एक दर्जन परिवारों ने अपने घरों की मरम्मत की है और अपने खेतों में खेती शुरू कर दी है. अब उन्हें विश्वास है कि उनमें अपना भविष्य बनाने की ताकत है.