ओडिशा के पुरी जिले के पिपली शहर में संतोष मिश्रा का कलिंग मशरूम सेंटर नवाचार और दृढ़ता का प्रमाण है. दंडमुकुंदा पुर गांव के बीजेबी कॉलेज से स्नातक संतोष के इस केंद्र ने क्षेत्र में मशरूम की खेती में क्रांति ला दी है. हालांकि, संतोष की यात्रा चुनौतियों भरी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. संतोष मिश्रा पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद स्नातक करने के बाद उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सके.
संतोष के पिता एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक थे और उनके पास इतने साधन नहीं थे कि वह अपने बेटे को उच्च शिक्षा के लिए भेज सकें. संतोष भी अपने परिवार को सपोर्ट करना चाहते थे. ऐसे में, उन्होंने 1989 में भुवनेश्वर में ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ओयूएटी) में मशरूम खेती प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया. अपने मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उस जमाने में उनके पास अपनी बचत के 36 रुपए थे जिससे उन्होंने ओयूएटी से ऑयस्टर मशरूम स्पॉन (बीज) की चार बोतलें खरीदीं.
भाई के साथ मिलकर शुरू की मशरूम की खेती
संतोष के घर के पास बंजर ज़मीन थी और अपने भाई की मदद से, उन्होंने नारियल के पत्तों, धान के भूसे आदि का उपयोग करके एक टेम्परेरी स्ट्रक्चर बनाया. उनका पहला प्रयास ज्यादा सफल नहीं था क्योंकि मशरूम की सफलता के लिए अच्छे प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और उन्होंने अपनी गलतियों से सीखकर दोबारा कोशिश की.
बाद में, उन्होंने अपने पिता से ऋण लिया और 1000 वर्ग फुट में फैले एक शेड में 100 मशरूम बेड तैयार किए. मई 1989 में उन्होंने 150 किलोग्राम मशरूम उगाया. लेकिन इसे बेचना एक और चुनौती थी. वह 5.2 किलोग्राम ऑयस्टर मशरूम लेकर भुवनेश्वर गए और अपने कॉलेज के बाहर बैठ गए. लेकिन उस समय वह कुछ भी नहीं बेच सका. हालांकि, उन्हें किसी ने सुझाव दिया कि वे आसपास के अधिकारियों के क्वार्टर में रहने वाले लोगों को मशरूम बेचने की कोशिश करें. और यह सुझाव रंग लाया.
पोषण से भरपूर होती है मशरूम
मशरूम की खेती के लिए कम जगह, मध्यम रोशनी और वातन और अच्छी स्वच्छता की जरूरत होती है. 1,000 वर्ग फुट से ज्यादा जगह पर, कोई भी चार से पांच परतों वाला सेट-अप कर सकता है, जो हर एक सायकिल में लगभग 1,000 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन करता है. मशरूम की खेती पूरे वर्ष भर की जा सकती है. मशरूम पोषण से भी भरपूर है और प्रोटीन के अलावा कॉपर, विटामिन, पोटेशियम और आयरन का भी अच्छा स्रोत है. मशरूम की खेती पर्यावरणीय स्थिरता को भी बढ़ावा देती है क्योंकि यह कृषि अपशिष्ट (धान के भूसे) को रिसायकल करने में मदद करती है.
संतोष को जब सफलता मिलन लगी तो उन्होंने अपनी फैसिलिटी के बढ़ाया. उन्होंने 3,000 मशरूम बेड तैयार किए और हर दिन 100 बेड से एक क्विंटल (100 किलोग्राम) मशरूम का उत्पादन लेना शुरू किया. इसके साथ, वह 1990 के दशक में प्रतिदिन 2500 रुपये से अधिक कमाने वाले मशरूम करोड़पति बन गए. लेकिन 1999 में ओडिशा में आए सुपर साइक्लोन ने उनके मशरूम उत्पादन केंद्र को तबाह कर दिया. उसी साल उनकी शादी ज्योतिर्मय मिश्रा से हुई, और उनकी पत्नी ने शादी के 15 दिनों के भीतर अपने गहने गिरवी रख दिए ताकि वह नए सिरे से शुरुआत कर सकें.
गांव में शुरू किया स्पॉन उत्पादन-सह-प्रशिक्षण केंद्र
संतोष ने मशरूम की खेती और स्पॉन के उत्पादन के लिए चक्रवात प्रतिरोधी स्ट्रक्चर का निर्माण किया और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने अपने गांव में एक स्पॉन उत्पादन-सह-प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया है जहां वह दो किस्मों के बीज तैयार करते हैं - धान के भूसे वाला मशरूम (वोल्वेरिएला वोल्वेसिया) और ऑयस्टर मशरूम. ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, असम और पांडिचेरी के लोगों को वह कलिंगा मशरूम के बीज 15 रुपये प्रति बोतल की दर से बेचते हैं. उनके पास प्रति दिन 5,000 बोतल स्पॉन का उत्पादन करने की क्षमता है और अभी वह प्रति दिन 2,000 बोतलें (30,000 रुपये) बना रहे हैं. संतोष की योजना अब मशरूम का उपयोग करके वैल्यू-एडेड उत्पाद तैयार करने की है.
इस प्रशिक्षण केंद्र में, वह पहले से ही अचार, पापड़, वड़ी (सूखे पकौड़े) और सूप पाउडर तैयार करने के लिए मशरूम का प्रोसेस कर रहे हैं. अभी ट्रेनिंग सेंटर में ऑयस्टर मशरूम को मशीन में सुखाकर पाउडर बनाया जाता है. इस पाउडर का उपयोग वड़ी, पापड़, अचार, पकौड़े और चपाती (गेहूं के आटे के साथ मिलाकर), शुगर-फ्री बिस्कुट और स्नैक्स बनाने के लिए किया जा सकता है. अपने काम के लिए, संतोष को 2005 में राज्य पुरस्कार मिला और 2011 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा सम्मानित किया गया. उन्हें 2013 में गुजरात शिखर सम्मेलन में वैश्विक कृषि पुरस्कार मिला और उसके बाद 2021 में ओडिशा नागरिक पुरस्कार मिला.
वह अब स्पॉन उत्पादन और उन लोगों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो मशरूम उद्यमी बनना चाहते हैं. मशरूम की खेती कम निवेश के साथ शुरू की जा सकती है, इसलिए यह महिलाओं, गरीब परिवारों और समाज के अन्य वंचित वर्गों के लिए एक अच्छा आय विकल्प है. अब तक वह विभिन्न योजनाओं और कोर्पोरेट्स की मदद से लगभग 10 लाख लोगों को ट्रेन कर चुके हैं.