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नफरत के बीच सद्भाव की कहानी! रमजान के पाक महीने में रोजा रखकर रामनवमी के लिए झंडे तैयार कर रहे राशिद

इस गया हब में मुसलमानों द्वारा रामनवमी के झंडे बनाने की परंपरा हिजाब, हलाल भोजन, अल्पसंख्यक समुदाय के कलाकारों, मस्जिद के लाउडस्पीकर और मांस की दुकानों के खिलाफ जहर घोलने वालों से अब भी अछूती है. राशिद की छोटी सी दुकान में बड़े और छोटे सैकड़ों झंडों को बड़े करीने से मोड़कर रखा गया है.

Representative Image (Source-Unsplash) Representative Image (Source-Unsplash)
हाइलाइट्स
  • होली के बाद शुरू हो जाती है झंडे की सिलाई

  • झंडों को उनकी फिनिश के लिए किया जाता है पसंद

एक तरफ जहा अब भी देश में हिजाब और जाति, धर्म को लेकर हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरत फैलाने का काम किया जाता रहा है वहीं आज भी देश में कुछ ऐसे लोग हैं जो इन सबसे दूर गंगा जमुनी तहजीब को अब भी कायम किए हुए हैं. ऐसी ही कुछ कहानी है गया के रहने वाले 62 साल के राशिद रमजान की. राशिद ने रमजान के पवित्र महीने में रोजा भी रखा हुआ है और वो अगले हिंदू त्योहार रामनवमी की तैयारी में भी लगे हुए हैं.

राशिद की तरह ही पटना से 100 किमी दक्षिण में गया शहर के गोडाउन मार्केट में कई ऐसे मुस्लिम टेलर हैं जो रामनवमी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले लाल झंडे बनाते हैं. रामनवमी इस साल 10 अप्रैल को पड़ रही है.

झंडों को उनकी फिनिश के लिए किया जाता है पसंद
इस गया हब में मुसलमानों द्वारा रामनवमी के झंडे बनाने की परंपरा हिजाब, हलाल भोजन, अल्पसंख्यक समुदाय के कलाकारों, मस्जिद के लाउडस्पीकर और मांस की दुकानों के खिलाफ जहर घोलने वालों से अब भी अछूती है. राशिद की छोटी सी दुकान में बड़े और छोटे सैकड़ों झंडों को बड़े करीने से मोड़कर रखा गया है. इनमें से कुछ सादे हैं, कुछ में सुनहरे तामझाम और सेक्विन लगे हैं, कुछ में भगवान हनुमान की तस्वीर है जबकि कई पर "जय श्री राम" लिखा हुआ है. बड़े झंडों को जुलूस या मंदिरों के ऊपर लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जबकि छोटे झंडे घर में लगाने के काम आते हैं. गोडाउन मार्केट और उसके आस-पास के इलाके रामनवमी के झंडे के लिए एक निर्माण केंद्र रहे हैं. झंडों को उनके बेहतरीन फिनिश के लिए पसंद किया जाता है और उन्हें पूरे बिहार और झारखंड के जिलों में भेजा जाता है.

होली के बाद शुरू हो जाती है झंडे की सिलाई
राशिद कहते हैं,“हम इन झंडों को बनाने में अपनी पूरी मेहनत लगाते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि इनका उपयोग रामनवमी की रस्मों के दौरान किया जाएगा. हमारे खरीदार कभी भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करते हैं. हमने यहां हमेशा एक परिवार की तरह महसूस किया है. यहां कोई हिंदू-मुस्लिम विभाजन नहीं है. हम एक-दूसरे को पीढ़ियों से जानते हैं.” राशिद 15 साल की उम्र से ये काम कर रहे हैं. राशिद ने बताया कि होली के एक दिन बाद रामनवमी के लिए झंडों की सिलाई शुरू हो जाती है. थोक ऑर्डर पहले भेजे जाते हैं, फिर दर्जी अपना ध्यान अलग-अलग खरीदारों के लिए झंडे बनाने की ओर लगाते हैं.

मुहम्मद इदरीस नाम के एक दूसरे दर्जी ने कहा, “मेरे पिता और दादा भी यहां रामनवमी के झंडे बनाते थे. हम अपने समुदाय के लिए भी झंडे और चादरें (दरगाहों के लिए) बनाते हैं. हम मुस्लिम हो सकते हैं लेकिन हमारा काम बिना किसी भेदभाव के सभी समुदायों के लिए है.”

20 सालों से इसी मार्केट से झंडे खरीद रहे हैं लोग
ग्राहकों ने बाजार में आना शुरू कर दिया है, कुछ पहले से ही सिले हुए सामानों का चयन कर लेते हैं जबकि कुछ दर्जी के साथ बैठकर अपने अनुसार झंडे सिलाने के लिए बैठते हैं. आपूर्ति आदेश लेने के लिए दूर-दराज के व्यापारी भी बाजार में आते हैं.एक व्यापारी दिनेश अग्रवाल ने बताया कि ऑर्डर देते समय हम दर्जी को उस सामग्री, डिज़ाइन और आकार के बारे में सूचित करते हैं जो हम झंडे के लिए चाहते हैं. इसके बाद हमें परेशान होने की जरूरत नहीं पड़ती. वे विशेषज्ञ हैं और उसी के अनुसार झंडे बनाते हैं. मैं पिछले 20 सालों से यहां से झंडे खरीद रहा हूं और जहानाबाद में अपनी दुकान पर बेच रहा हूं.