भारत के इस युग में महिलाओं का योगदान सबसे अधिक है, स्वतंत्रता की लड़ाई हो या फिर भारत के लिए मंगल ग्रह पर पहला सैटेलाइट हर जगह महिलाओं का योगदान रहा है. ऐसे में पहले यह भी कहा जाता था कि, कुछ काम ऐसे हैं, जो महिला नहीं कर सकती हैं. सिर्फ़ पुरुष को यह काम करना चाहिए. वहीं खेती को भी लंबे समय से पुरुष प्रधान काम के तरीक़े से ही माना जाता है. ऐसे में महाराष्ट्र के नाशिक में रहने वाली संगीता पिंगले ने इस बात को ग़लत साबित किया है.
एक हादसे में अपने पति को खोया
संगीता पिंगले नाशिक के मातोरी गांव में रहती हैं. संगीता पिंगले की ज़िंदगी में तब एक बड़ा बदलाव आया, जब उन्होंने एक हादसे में अपने पति को खो दिया. जिसके बाद पूरे घर की ज़िम्मेदारी उन पर आ गई. घर चलाने के लिए सिर्फ़ खेती का ही काम था. ऐसे में संगीता पिंगले ने खेती का काम सीखना शुरू किया. पहले लोगों ने खूब कहा कि खेती महिला के बस की बात नहीं है. लेकिन संगीता ने सबको ग़लत साबित कर दिया.
13 एकड़ जमीन पर करती हैं खेती
संगीता अब अपनी 13 एकड़ जमीन पर सफलतापूर्वक अंगूर और टमाटर उगा रही हैं. साथ ही उन्होंने अपने आलोचकों को भी गलत साबित किया है. इस खेती से हज़ारों टन उपज होती है और लाखों की कमाई भी हो रही है, संगीता आज प्रति वर्ष 800-1,000 टन अंगूर की उपज पैदा करता है, जिससे उन्हें 25-30 लाख रुपये की कमाई प्रति वर्ष होती है.
गहनों के बदले लिया कर्ज
संगीता का कहना है कि शुरू के दिन में उन्हें अपने गहनों के बदले कर्ज लेना पड़ा था और खेती के लिए पूंजी जुटाने के लिए चचेरे भाइयों से भी पैसे उधार लेने पड़े थे. वहीं कई मौकों पर वो उत्पादों की सामग्री को पढ़ या समझ नहीं पाती थीं, लेकिन एक विज्ञान की छात्रा होने के कारण उन्हें जल्दी काम सीखने में मदद मिली.
कई तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए, संगीता ने वर्षों से मेहनत कर अंगूर की खेती को विकसित करना शुरू कर दिया. पानी के पंप की दिक़्क़त थी. मजदूरों की समस्याएं कभी नहीं रुकीं और बेमौसम बारिश से नुकसान हुआ. इस तरह की सारी चुनौतियों के बाद अब संगीता के खेत में उगे हुए अंगूर महाराष्ट्र के वाइन यार्ड में जाते हैं.