भारत में साक्षरता और पुस्तकालयों के उद्भव के लिए जाने जाने वाले पुथुवायिल नारायण पणिक्कर के सम्मान में 19 जून को नेशनल रीडिंग डे मनाया जाता है. 'भारत के पुस्तकालय आंदोलन के जनक" के उपनाम से मशहूर पणिक्कर का मानना था कि शिक्षा और किताबें प्रगति की कुंजी हैं. उनके समर्पण के कारण 1945 में केरल की पहली पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना हुई और राज्यव्यापी पुस्तकालय आंदोलन को प्रेरणा मिली. उनके योगदान को पहचानने के लिए, 1996 में 19 जून को राष्ट्रीय पठन दिवस घोषित किया गया था. इस दिन, भारतीयों को किताबें खरीदने और पढ़ने की गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
क्या है इस दिन का इतिहास
पी.एन. पणिक्कर ने केरल ग्रंथशाला संघम (केजीएस) के माध्यम से केरल में प्रसिद्ध त्रावणकोर पैलेस लाइब्रेरी के विकास का नेतृत्व किया. मूल रूप से त्रावणकोर साहित्यिक संघ के नाम से, केजीएस की शुरुआत 47 लोकल लाब्रेरी के नेटवर्क के साथ हुई थी. पणिक्कर के नेतृत्व में, इसने शिक्षा को सीधे समुदायों तक पहुंचाने पर ध्यान केंद्रित किया. 1956 में केरल राज्य के गठन के बाद, केजीएस ने नाटकीय रूप से विस्तार किया, और अपने नेटवर्क में 1,600 से अधिक पुस्तकालय जोड़े. पणिक्कर की दूरदर्शिता और नेतृत्व ने केजीएस को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई, और उन्हें 1975 में प्रतिष्ठित यूनेस्को क्रुप्सकाया पुरस्कार के रूप में हुई.
क्या है इस दिन का महत्व
नेशनल रीडिंग डे पी.एन. पणिक्कर का सम्मान करता है, जिन्होंने भारत में पढ़ने के प्रति प्रेम जगाया. "Father of Reading" के नाम से मशहूर पणिक्कर की मृत्यु 19 जून 1995 को हुई थी. उनकी विरासत सनातन धर्म लाइब्रेरी से शुरू हुई, जो केरल की पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी थी, जिसकी उन्होंने स्थापना की थी. इस अधिनियम ने राज्यव्यापी पुस्तकालय आंदोलन को जन्म दिया।
केरल में इस मौके पर सिर्फ नेशनल रीडिंग डे नहीं बल्कि हर साल वे 19 जून को शुरू होने वाले वयना वरम नामक एक समर्पित "रीडिंग वीक" मनाया जाता है. पणिक्कर का प्रभाव केरल एसोसिएशन फॉर नॉन-फॉर्मल एजुकेशन एंड डेवलपमेंट (KANFED) तक फैल गया. कानफेड ने विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में निरक्षरता को कम करने और शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
पणिक्कर के प्रयासों से केरल को साक्षरता में आगे बढ़ने में मदद मिली. राष्ट्रीय सर्वेक्षण राज्य की उच्च साक्षरता दर दर्शाते हैं, जो उनके आंदोलन के स्थायी प्रभाव का प्रमाण है. यह दिन किताबों में पाए जाने वाले आनंद और ज्ञान की याद दिलाता है, एक संदेश जिसका पणिक्कर ने जीवन भर समर्थन किया.