देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देना बसे बड़ा बलिदान माना जाता है. ये हर देशवासी की जिम्मेदारी है कि हम अपने शहीदों को हमेशा याद रखें. उन्हें अपने दिल में जगह दें. नोएडा के हुतांश वर्मा शहीदों को अलग तरह से श्रद्धांजलि देते हैं. उनकी ये देशभक्ति और देश प्रेम को देखकर हर कोई चौंक जाता है.
हुतांश एक अच्छे कलाकार हैं और वो शहीद हुए जवान का अपने हाथों से पोट्रेट बनाकर शहीदों के परिवार को सौंपते हैं. अब तक वे 160 शहीदों के पोट्रेट बना चुके हैं और उनके परिवार तक पहुंचा चुके हैं.
पिता की अंतिम इच्छा मानकर करता रहा काम
हुतांश बताते हैं कि 2014 से यह सिलसिला शुरू हुआ. 2014 में हुए एक आतंकी हमले में कई जवान शहीद हुए थे. इस घटना को हुतांश के पिता जी TV पर देख रहे थे. उन्होंने अचानक हुतांश से कहा कि तुम क्यों नहीं ऐसे शहीदों की पेंटिंग बनाते हो. शहीदों की पेंटिंग्स बनाओ और उनके परिवार तक पहुंचाओ. 2014 में हुतांश के पिता की मौत हो गई. हुतांश कहते हैं कि उन्हें लगा जैसे यही उनके पिता की आखिरी इच्छा थी इसलिए वो इसी काम में लग गए.
जैसे मेरा बेटा वापस आ गया...
हुतांश बताते हैं कि अक्सर जब वो शहीदों के घर पहुंचते हैं तो कई बार बहुत भावुक क्षण भी देखने को मिलते हैं. एक बार जब वो कारगिल युद्ध में शहीद हुए विजय थापर की पोट्रेट देने उनके घर पहुंते तो उनकी मां तस्वीर देखकर भावुक हो गईं और कहा- ‘ऐसा लगता है जैसे मेरा बेटा हंसता-खेलता फिर से घर वापस आ गया है.’
हुतांश बताते हैं कि ऐसे बहुत सारे किस्से हैं. एक बार जब वो नागालैंड में एक शहीद के घर पहुंचे तो बिना बात किे ही हम दोनों ने एक दूसरे की भावनाओं को समझ लिया.
शहीद भी चमत्कार करते हैं
हुतांश बताते हैं कि कई बार इस काम को करते-करते पैसों की तंगी आ जाती है लेकिन फिर कुछ ऐसा चमत्कार हो जाता है जिस पर विश्वास करना मुश्किल होता है. वो बताते हैं कि एक बार शहीद कैप्टन मनोज पांडे के घर उनका पोट्रेट लेकर उन्हें लखनऊ जाना था लेकिन अचानक कुछ मेडिकल एमरजेंसी हुई और उनके सारे पैसे खत्म हो गए. हुतांश कहते हैं कि उन्होंने ऐसे ही शहीद मनोज पांडे के पोट्रेट की तरफ देखकर बोला कि पांडेजी मेरे पास तो आपके घर जाने के पैसे नहीं है, अब देख लो आपको क्या करना है.
हुतांश बताते हैं कि अचानक एक कॉलर का फोन आया. उसने बिना अपना नाम और पहचान बताए कहा कि वो उनके लखनऊ की ट्रिप को स्पॉन्सर करना चाहता है. हुतांश कहते हैं कि उन्हें उस दिन अहसास हुआ कि शहीद भी चमत्कार करते हैं.
जरूरी है कि देश अपने शहीदों को याद रखे
शहीद का परिवार भी अपने बेटे का पोट्रेट पाकर और ये देखकर कि आम लोगों के दिलों में अब भी उनके सैनिक बेटे के लिए सम्मान बना हुआ है, बेहद खुश होता है. हुतांश ने पहला पोट्रेट शहीद कैप्टन विजयंत थापर के पिता को दिया था. हुतांश कहते हैं कि वैसे तो वो इस काम में लगे रहेंगे लेकिन असल में वह चाहते हैं कि देश को अपना एक भी सैनिक न खोना पड़े.