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शहर तक पहुंचने के लिए करना पड़ता था 52 किमी का सफर, परेशान होकर ग्रामीणों ने पहाड़ी काटकर खुद बना लिया सीधा रास्ता

आज भी देश में बहुत सी जगहें ऐसी हैं जो सीधी शहरों से नहीं जुड़ी हैं क्योंकि यहां सड़कें ही नहीं हैं. ऐसे में, सबसे ज्यादा परेशानी वहां के निवासियों को उठानी पड़ती है. लेकिन आज हम बता रहे हैं एक गांव के बारे में जहां ग्रामीणों ने खुद अपनी परेशानी का हल निकाला है.

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हाइलाइट्स
  • ग्रामीणों को करनी पड़ती थी 52 किमी की यात्रा 

  • कृषि उपकरणों से खोद दी पहाड़ी

कोरापुट के घंत्रागुडा गांव के गरीब आदिवासियों ने भले ही 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी के बारे में नहीं सुना हो, लेकिन उनकी तरह काम जरूर किया है. इन गांववालों ने अपनी कनेक्टिविटी समस्याओं को दूर करने के लिए पहाड़ियों को काटकर सड़क बनाई है. 

गांव के लोगों ने मिलकर ने एक पहाड़ी को काटा और झाड़ियों को साफ किया. उन्होंने गांव को जिले में पुकी छाक से जोड़ने वाली 6 किमी लंबी कच्ची सड़क का निर्माण किया 

करनी पड़ती थी 52 किमी की यात्रा 
यह गांव दक्षिणी ओडिशा के कोरापुट शहर से लगभग 35 किमी दूर स्थित है और सड़क की कमी के कारण ग्रामीणों को यहां तक ​​​​पहुंचने के लिए 52 किमी की यात्रा करनी पड़ती है. उन्हें अपने कामों के लिए मुख्यालय शहर तक पहुंचने के लिए चक्कर लगाने पड़ते थे और बहुत परेशानी होती थी. 

टीएनआईए के मुताबिक, ग्रामीणों द्वारा बनाई गई सड़क से दूरी 20 किमी कम हो जाएगी. उन्होंने पहले संबंधित अधिकारियों से सड़क के लिए अनुरोध किया लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली. एक ग्रामीण लोचन बिसोई ने टीएनआईए से कहा, "हमने कई बार अधिकारियों से सड़क के लिए गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इसलिए, हमने खुद सड़क बनाने का फैसला किया."

कृषि उपकरणों से खोद दी पहाड़ी 
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने दरांती, माछे और कुदाल जैसे कृषि उपकरणों से पहाड़ी को तराशना शुरू किया. सीधी सड़कों के अभाव में उन्हें कोरापुट शहर तक पहुंचने में बहुत मुश्किल होती है, विशेष रूप से रात में और बारिश के मौसम में. कोरापुट के अस्पताल में मरीजों को ले जाना किसी बुरे सपने से कम नहीं और सिर्फ भगवान ही जानता है कि वे कैसे यह सब मैनेज करते हैं. 

ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन ने करीब 15 साल पहले पक्की सड़क का निर्माण कराया था, लेकिन देखरेख के अभाव में अब इसका कोई नामोनिशान नहीं है. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने जो सड़क बनाई है, उसके पूरा होने पर उनके गांव के अलावा कम से कम और नौ गांवों के लगभग 4000 निवासियों को मदद मिलेगी.

प्रशासन का पक्की सड़क बनवाने का दावा
ग्रामीण अपने काम में जुटे हैं. वहीं, दसमंतपुर के प्रखंड विकास अधिकारी डंबुरुधर मल्लिक का कहना है कि ग्रामीण संपर्क कार्यक्रम में गांव को शामिल किया गया है और जल्द ही एक पक्की सड़क का निर्माण किया जाएगा. 

हालांकि, प्रशासन कुछ करे या न करे, इस गांव के लोगों ने अपनी किस्मत खुद लिख ली है. और यही आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर है कि गांवों में लोग किसी और पर निर्भर नहीं हैं बल्कि खुद अपनी मुश्किलें आसान कर रहे हैं.