
हर रविवार की सुबह और छुट्टियों के दिन, ओडिशा में कालाहांडी के नरला ब्लॉक के भीरकापाड़ा गांव में गणपति नायक का घर रीडिंग जोन में बदल जाता है. उनके घर के दरवाजे किताबें पढ़ने के शौकीन बच्चों, छात्रों और यहां तक कि वयस्कों के लिए खुले होते हैं.
50 वर्षीय गणपति पंचायत एक्सटेंशन अधिकारी (पीईओ) हैं. उन्होंने न केवल अपनी खुद की एक लाइब्रेरी की स्थापना की है, बल्कि आज के डिजिटल जमाने में किताबों और पढ़ने की अमूल्य संस्कृति को जीवित रखा है.
छोटे भाई के नाम पर की शुरुआत
गणपति ने अपना निजी पुस्तकालय 'गिरीश चंद्र स्मारकी पथगरा,' अपने दिवंगत छोटे भाई के नाम पर रखा है. उनके घर पर 4 लाख रुपये से अधिक मूल्य की 4,000 से अधिक पुस्तकें हैं. इस लाइब्रेरी को सेट-अप करने में उन्होंने अपनी कमाई से 3.5 लाख रुपये का निवेश किया है. इस लाइब्रेरी को उन्होंने नौवीं कक्षा में बनाना शुरू किया था.
गणपति ने 1988 में दामोदर हाई स्कूल, तुलापाड़ा से दसवीं कक्षा पास करने से एक साल पहले किताबों को स्टोर करना शुरू किया था. उनके स्कूल के शिक्षक पंडित शिवसुंदर मिश्रा से उनमें यह आदत आई. मिश्रा ने उन्हें किताबें पढ़ने और इकट्ठा करने के लिए प्रोत्साहित किया और फिर यह उनका शौक में बन गया.
वेद, उपनिषद से लेकर पढ़ाई से संबंधित किताबें
उनकी लाइब्रेरी में धर्म, लोक संस्कृति, विरासत, उपन्यास, लघु कथाएं, कविताएं, अनुवाद और ज्यादातर ओडिया और हिंदी में पुस्तकों का एक बड़ा संग्रह है. इसके अलावा, ओडिया और संस्कृत में "अष्टदास पुराण", सभी चार वेद, 108 उपनिषद, सदांग दर्शन, उपन्यास, महत्वपूर्ण ओडिया लेखकों के कविता संग्रह और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित लेखकों के अनुवादित साहित्य शामिल हैं.
पहले, वह लोगों में पढ़ने की आदत को विकसित करने के लिए किताबें उधार देते थे, लेकिन बहुत से लोगों ने उन्हें किताबें वापस नहीं की. इसके बाद उन्होंने किताबें उधार देना बंद कर दिया और फिर रविवार और छुट्टी के दिन लोगों के पढ़ने के लिए अपने घर पर व्यवस्था की.