लाल चींटियां अगर एक कतार में दिख जाएं तो डरना लाजिमी होता है, क्योंकि हम सबको पता है कि अगर ये चीटियां डंक मार लेंगी तो शरीर पर लाल निशान पड़ जाएंगे और अगर झुंड में ये चींटियां शरीर पर हमला कर दें तो ..... बहरहाल हमें या आपको ये कल्पना भी करने से डर लगेगा. लेकिन क्या हो अगर कोई आपको इन्हीं खौफनाक चीटियों की चटनी बना कर दें. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि भारत में पूर्वी राज्यों जैसे ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में ऐसे समुदायों के लोग हैं जो इन लाल चींटियों की मसालेदार रेसिपी बनाते हैं.
ओडिशा के मयूरभंज जिले में, लाल चींटियों को चटनी बनाई जाती है जिसे 'काई चटनी' के नाम से जाना जाता है और ये पकवान जीआई टैग के लाए जाने की तैयारी में है. इसके लिए शोधकर्ता एक प्रेजेंटेशन बनाने की तैयारी कर रहे हैं.
शोधकर्ताओं ने काई चटनी को मान्यता दिलाने के लिए आयुष मंत्रालय को पत्र लिखा है. पीडब्ल्यूडी के सहायक अभियंता बारीपदा ने इस सिलसिले में बताया कि स्वदेशी समुदाय के लोग इस व्यंजन का भरपूर सेवन करते हैं और अगर काई चटनी जीआई टैग में आ जाती है तो इसे बेचने वाले लोग चटनी को बेचकर अपना जीवन यापन और बेहतर तरीके से सकते हैं.
मयूरभंज की लाल चींटियों की चटनियों के बारे में जानिए
मयूरभंज की लाल बुनकर चींटियां खासतौर से सिमिलिपाल के जंगलों में पाई जाती है. इसके अलावा लाल बुनकर चींटियां पेड़ों पर कई घोंसलों वाली कॉलोनियों में भी पाई जाती हैं. इन चींटियों का घोसला गोल होता है. आदिवासी लोग इन्हीं चीटियों का इस्तेमाल करके चटनी और सूप बनाते हैं.
लाल चींटी की चटनी क्या है?
लाल चींटी की चटनी लाल चींटियों और उनके अंडों से बना एक तरह का पेस्ट है. जो भारत के पूर्वी राज्यों छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड में इस्तेमाल किया जाता है.
लाल चींटी की चटनी का इस्तेमाल खाने के अलावा औषधीय रूपों में भी किया जाता है. जिसका इस्तेमाल पीलिया, सामान्य जुखाम, जोड़ों के दर्द, खांसी के पिड़ित लोगों को दिया जाता है.
बता दें कि चीटियों की चटनी खाने में जायकेदार होने के साथ प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन बी -12, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम और फाइबर से भरपूर होती है.
लाल चींटी की चटनी या काई की चटनी कैसे बनाई जाती है?
कृष्णा विजन सेंटर के वैज्ञानिक जगन्नाथ पात्रा के मुताबिक इस चटनी को बनाने के लिए सबसे पहले चीटियों और अंडों को सुखाया जाता है. लहसुन, अदरक,हरा धनिया, इलायची, इमली, नमक और थोड़ी सी चीनी डालकर इसे और भी जायकेदार बना सकते हैं. यह तब आम तौर पर कांच के बरतन में रखा जाता है. ये चटनी एक साल तक चल सकती है.
जीआई टैग इस चटनी पर क्या असर डालेगा
जीआई टैग अच्छे खान-पान को वैश्विक खाद्य की कैटेगरी में लाने में मदद करता है. इसका मतलब ये है कि ये टैग देश में किसी डिश को खास पहचान दिलाता है.