मध्यप्रदेश के इंदौर की रहने वाली पूजा दुबे ने वो कमाल कर दिखाया है जो अच्छे-अच्छे नहीं कर पाए. पूजा ने मशरूम के स्टबल से ही कई तरह के मशरूम उगाने शुरू कर दिए हैं. वो लैब में खुद मशरूम के नए-नए बीज तैयार करती हैं. वो बताती हैं कि उन्होंने यह काम दो मकसद के लिए शुरू किया है. पहला प्रदूषण को कम करना और दूसरा कुपोषण को कम करना.
बेटी की परवरिश के लिए छोड़ दी नौकरी
पूजा कहती हैं कि लगभग 10 साल काम करने के बाद उन्होंने अपनी बेटी की परवरिश के लिए नौकरी छोड़ दी. जब बेटी थोड़ी बड़ी हुई तो दोबारा काम करने का ख्याल आया. लेकिन इस बार वह क्लियर थी कि नौकरी नहीं करनी है. पूजा बताती हैं कि बिजनेस और मार्केट का उन्हें कोई आईडिया नहीं था. ऐसे में उन्होंने घर से ही काम करना शुरू किया. वो बताती हैं कि उन्होंने अपने घर के ग्राउंड फ्लोर पर एक लैब सेटअप किया और वहीं पर एक्सपेरिमेंट करने शुरू किए. मशरुम के स्टबल यानी वेस्ट से उन्होंने मशरूम की कई वैरायटी के बीज बनाए.
ससुर बने गॉडफादर
पूजा बताती हैं कि जब वो बिजनेस करने की सोच रही थीं तो उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे. ऐसे में ससुर ने उनकी मदद की और घर में लैब सेट करने के लिए पैसे दिए. इसके बाद धीरे-धीरे कई किसानों को जोड़ना शुरू किया. उन्हें मशरूम की खेती करना सिखाया. लेकिन पूजा कहती हैं कि मैंने इस बिजनेस की शुरुआत ही दो बातें सोच कर की थी. पहला प्रदूषण को कम करना और दूसरा कुपोषण को कम करना. लेकिन मशरूम की पैकेजिंग जिस तरह से होती है उसमें प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. प्रदूषण के खिलाफ हमारी लड़ाई में यह एक समस्या थी, इसलिए हमने पैकेजिंग को भी इको फ्रेंडली बनाना शुरू किया और पैकेजिंग भी मशरूम के फार्मिंग वेस्ट से बनाई.
'बेटी' बन गई ब्रांड
पूजा ने 'बेटी' नाम से ब्रांड शुरू किया है. वो बताती हैं कि इस नाम के पीछे भी एक कहानी है. जब उनकी बेटी थोड़ी बड़ी हो गई तो घरवालों ने दूसरा बच्चा करने की सलाह दी. वो कहती हैं कि वो बिजनेस शुरू करना चाहती थी लेकिन घरवालों की बात सुनने के बाद वह कंफ्यूज हो गई. पूजा ने अपनी बेटी से पूछा तुम्हें भाई चाहिए या बहन, उनकी बेटी ने कहा कि उसे बहन चाहिए और बस इस तरह उन्होंने 2017 में 'बेटी' नाम का एक ब्रांड बना लिया.
मिल रहा अच्छा मुनाफा
पूजा की इस अनूठी पहल से कई किसानों को भी फायदा हो रहा है. मुक्ता टोपे नाम की किसान बताती हैं कि वो पहली बार खेती कर रही हैं. पूजा से मशरूम के बीज मिल जाते हैं. उन बीज को वो अपनी खेती में इस्तेमाल करती हैं और घर के आसपास के बाजार में बेचती हैं. इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है. इस बीज के जरिए उगाए गए मशरूम आमतौर पर बाजार में मिलने वाले मशरूम से काफी बेहतर होते हैं.
300 किसानों को दे चुकी हैं ट्रेनिंग
देश में पराली की समस्या आज बहुत बड़ी है. पूजा बताती हैं कि हर साल 700 मिट्रिक टन एग्रीकल्चर वेस्ट क्रिएट होता है. लेकिन सिर्फ 0.03 पर्सेंट एग्रीकल्चर वेस्ट ही इस्तेमाल हो पाता है. इसलिए वो न सिर्फ आज पराली से खेती कर रही हैं बल्कि उसके जरिए कई इको फ्रेंडली प्रोडक्ट्स तैयार कर रही हैं. जाहिर तौर पर पूजा के प्रोडक्ट प्रदूषण से लड़ाई लड़ने में काफी हद तक कारगर है. पूजा इस काम में अबतक 300 किसानों को ट्रेनिंग भी दे चुकी हैं.