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History of Dhansak: रतन टाटा को पसंद थी धनसाक करी...पारसी और गुजराती क्यूज़ीन का मिश्रण है यह डिश...जानिए इतिहास

आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं धनसाक की कहानी. धनसाक एक पॉपुलर पारसी व्यंजन है जो आपको हर रविवार पारसी लोगों के घर पर खाने को मिल सकता है. धनसाक पारसियों के साथ फारस से आया लेकिन अब इसका रिश्ता भारत से भी उनता ही मजबूत है.

History of Dhansak (Photo: Pinterest) History of Dhansak (Photo: Pinterest)

रतन टाटा जितने बड़े बिजनेसमैन थे उतनी ही सरल शख्सियत के इंसान थे. उनकी सरलता जिंदगी के हर पहलू में थी. जैसे खाने की बात करें तो एक बार मशहूर पारसी शेफ परवेज़ पटेल ने इंटरव्यू में बताया था कि रतन टाटा को घर का बना पारसी खाना पसंद था. उनके पसंदीदा पारसी व्यंजनों में खट्टी-मीठी मसूर दाल, मटन पुलाव दाल से लेकर धनसाक तक शामिल है. अगर आप किसी पारसी को जानते हैं या कभी परासी रेस्तरां में खाना खाया है तो धनसाक के बारे में आपको जानकारी होगी ही और अगर नहीं तो आज जान लीजिए. 

आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं रतन टाटा के पसंदीदा पारसी व्यंजनों में से एक धनसाक के बारे में. धनसाक को मटन या चिकन या बकरी के मीट के साथ दाल और सब्जियां मिलाकर पकाया जाता है. इसे इसे कैरामेलाइज़्ड चावल के साथ परोसा जाता है. धनसाक को पारसी क्यूज़ीन में कंफर्ट फूड माना जाता है. लेकिन क्या आपको पता है इस डिश का रिश्ता फारस यानी पर्सिया यानी आज के ईरान से है. 

धनसाक का इतिहास 
धनसाक बहुत ही पॉपुलर इंडियन डिश है जो फ़ारसी और गुजराती क्यूज़ीन को जोड़ता है. जी हां, माना जाता है कि धनसाक गुजराती और फारसी क्यूज़ीन को जोड़ता है. इसमें दाल और सब्जियों के साथ मांस पकाया जाता है. भारत को यह व्यंजन पारसी समुदाय की देन है. मीट को सब्जियों के साथ पकाना फारसी खानपान की संस्कृति का हिस्सा है जबकि भारतीय मसालों का अच्छे से इस्तेमाल करना गुजराती क्यूज़ीन की खासियत है. गुजराती में 'धन' का मतलब होता है अनाज या दालें जबकि 'साक' का मतलब होता है पकी हुई सब्जियां. इस तरह से नाम पड़ा धनसाक. 

यह व्यंजन भारत में फारस से पारसी समुदाय के साथ आया. सातवीं और आठवीं शताब्दी में, फारस पर अरब आक्रमण के बाद पारसी भारत पहुंचे और यहां गुजरात के तटीय क्षेत्रों में बस गए. वे अपने साथ धनसाक लेकर आये थे. हालांकि, भारतीय व्यंजनों की तुलना में ईरानी खाना आम तौर पर काफी हल्के स्वाद का होता है. समय के साथ, पारसियों ने भारत में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों और मसालों का उपयोग किया, और धनसाक एक समृद्ध, संपूर्ण व्यंजन बन गया जैसे आज हम इसे खाते हैं.  

शोक के अंत का प्रतीक है धनसाक 
पारसी समुदाय में जब किसी की मौत हो जाती है तो शोक के चौथे दिन धनसाक पकाया जाता है. इसे पकाने का मतलब होता है कि अब शोक खत्म हो गया है. परंपरागत रूप से शोक के पहले तीन दिनों में मांस का सेवन नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि, शादी या जन्मदिन जैसे शुभ समारोहों में धनसाक नहीं परोसा जाता है. पारसी समुदाय में रविवार का मतलब भी धनसाक ही होता है. जी हां, ज्यादातर पारसी घरों में धनसाक पकाया जाता है. 

धनसाक सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि यूके में भी खाया जाता है. बताया जाता है कि जब पारसी भारत आकर बस गए तो उन्होंने खाने के कैफे आदि खोले. ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले मजदूरों को वे चाय और स्नैक्स देते थे. तब से ही उनका अंग्रेजों के साथ मिलना-जुलना शुरू हुआ और अंग्रेजों को भी उनका धनसाक काफी पसंद आया. इसलिए यूके के भारतीय रेस्टोरेंट्स में आपको धनसाक खाने को मिलता है.