मेहनत और लगन हो तो सब कुछ हासिल हो सकता है...चाहें परिस्थितियां कैसी भी हो...कोटा के प्रशांत कुमार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. प्रशांत कुमार के जीवन में मुश्किलें ही मुश्किलें थीं. बचपन में पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया. उन्होंने मां के साथ मिलकर कभी बर्तन धोने का काम किया तो कभी सब्जी बेचने का. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. समय निकाल कर परीक्षा की तैयारी की. परीक्षा देने गए तो ट्रेन से हाथ छूट गया और वे मरते मरते बचे. फाइनल सिलेक्शन के लिए जब उन्होंने पिता की फोटो मांगी तो उन्होंने कहा- तू मेरे लिए मर चुका है. मेहनत और किस्मत ने प्रशांत के दरवाजे पर दस्तक दी और अब वो आखिरकार आर्मी अग्नि वीर ट्रेनिंग के लिए जा रहे हैं.
प्रशांत बताते हैं, हमारे पिता ने हमें घर से निकाल दिया था. दर-दर की ठोकरे खाई और अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए मेरी मां डॉक्टर और कई अफसर के यहां बर्तन धोने का काम करती थी. धीरे-धीरे दिन कट रहे थे, किराए के मकान के अंदर हम तीनों का गुजर बसर चल रहा था. इस दर्द भरी कहानी में मेरी मां के साथ मेरे चाचा ने हमरा बहुत सहयोग किया. जब मेरी उम्र 18 - 20 साल हो गई तो मैंने कोटा एकेडमी ज्वाइन की. यहां मैं दौड़ की तैयारी करता था. अग्नि वीर की भर्ती के बारे में मुझे पता चला कई लोगों ने मुझसे कहा कि 4 साल की भर्ती है इसमें जाकर क्या करोगे लेकिन मुझे बस नौकरी करनी थी उसे नौकरी की ललक मेरी मां और मेरे चाचा का सहयोग और एकेडमी वालों के साथ में मुझे मजबूत बनाया और मैं फाइनली अग्निवीर में सेलेक्ट हो गया, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था सबसे ज्यादा खुशी मुझे इस बात की थी कि अब मेरी मां और मेरे छोटे भाई का गुजारा अच्छी तरह हो पाएगा.
प्रशांत बताते हैं, जब मैं आर्मी का पेपर देने गया तो मेरे साथ मेरे चाचा थे उस टाइम हम मरते-मरते बचे चलती ट्रेन से हाथ छूट गया लेकिन शायद लंबी उम्र थी कि हम बच गए उसके बाद रात को डिवाइडर पर सोकर पूरी रात निकाली लेकिन भगवान का आशीर्वाद रहा और मेहनत का फल मिला आज मैं अग्नि वीर में फाइनली सेलेक्ट हो चुका हूं. इस खुशी के पीछे सबसे ज्यादा योगदान और साथ देने में अगर कोई है तो वह मेरी मां और मेरे चाचा है जिनकी बदौलत आज मैं यहां पर पहुंचा हूं हकीकत है लेकिन अभी भी मुझे सपना सा लग रहा है.
अग्नि वीर भरती में एग्जाम और दौड़ के बाद जिन बच्चों का सिलेक्शन हुआ इन सभी 930 बच्चौ के दस्तावेज जमा करने के बाद इनको ट्रेनिंग के लिए रवाना करना था. इसी दौरान जब प्रशांत से भी दस्तावेज मांगे गए प्रशांत के दस्तावेजों में पिता की तस्वीर की कमी थी वह कोटा ARO ने मांगी. अब प्रशांत करता भी तो क्या करता उसके पास एक ही रास्ता था कि अपने पिता को फोन कर उनकी फोटो मांगे तो प्रशांत ने वही किया. जब पिता को फोन किया तो उनका जवाब था कि तू मेरे लिए मर चुका है. मुझे तेरे से कोई मतलब नहीं है, उसके बाद प्रशांत ने कहा कि मिलने तो आ जाइए 6 महीने के लिए ट्रेनिंग पर जा रहा हूं लेकिन पिता का जवाब एक ही था कि तू मेरे लिए मर चुका है. मैंने ये पूरी बात कोटा एआरओ को सुनाई तो कोटा एआरओ ने मेरी मां के दस्तावेज और उनकी फोटो लेकर ही मुझे फाइनली सिलेक्ट किया.