दिल्ली के नांगलोई में श्री श्याम रसोई है. श्री श्याम रसोई को प्रवीण कुमार गोयल चलाते हैं. यहां एक रुपये में लोगों को भरपेट खाना मिलता है. आज के मेन्यू में छोला, चावल, मटर पनीर, कढ़ी और हलवा के साथ पूड़ियां बनी हैं. प्रवीण कहते हैं कि यह रसोई कैसे चल रही है, उनको भी नहीं पता..सब ईश्वर का आशीर्वाद है.
'उसके पास सिर्फ 10 रुपये थे और उसे रोटी तक नहीं मिली'
प्रवीण बताते हैं कि पहले उनकी नोटबुक बनाने की फैक्ट्री थी, एक दिन वह फैक्ट्री के काम से बहादुरगढ़ जा रहे थे. रास्ते में एक ढाबे पर उन्होंने पानी खरीदा, लेकिन तभी उन्होंने देखा कि ढाबे पर एक आदमी ₹10 लेकर आया है और ढाबे वाले से रोटी और अचार मांग रहा है. इस पर ढाबे वाले ने उस आदमी को कहा कि हमारे यहां ₹10 में कुछ नहीं मिलता. प्रवीण को यह बात बहुत खराब लगी और उसी दिन उन्होंने फैसला कर लिया कि वह गरीबों को खाना खिलाएंगे.
'फैक्ट्री की मशीन और प्रॉपर्टी बेची'
आखिर कैसे चलती है ये रसोई? रोज एक रुपये में इतने सारे व्यंजन कैसे तैयार होते हैं. इस सवाल पर प्रवीण कहते हैं कि मैंने अपना सारा जीवन इसी काम में लगा दिया है. अपनी फैक्ट्री की मशीनें और कुछ प्रॉपर्टी बेची. हालांकि इसके पहले मेरे बच्चे अच्छी नौकरी में लग चुके हैं और बच्चों ने ही मुझे इस काम को आगे बढ़ाने की हिम्मत दी.
'न हिंदू न मुसलमान, मिडिल क्लास भी यहां खाते हैं खाना'
प्रवीण बताते हैं कि यहां हर रोज 1 हजार लोगों के लिए खाना बनता है. 50 किलो आटा, 150 किलो चावल और सब्जियां लगती हैं. उन्होंने कहा कि श्री श्याम रसोई में धर्म जाति का कोई भेदभाव नहीं होता और तो और यहां पर मीडिल क्लास का आदमी भी खाना खाने आता है.
'पूरी दिल्ली चलाती है रसोई'
प्रवीण का दावा है कि श्री श्याम रसोई को चलाने में पूरी दिल्ली और दिल्ली के बाहर के लोग भी सहयोग करते हैं. हर रोज यहां पर बहुत सारे लोग राशन दान करके जाते हैं. किसी के घर में अगर कोई बर्थडे कुछ और होता है तो भी लोग यही पर दान करने के लिए आते हैं. रोहतक से आए एक डोनर राजेश सक्सेना बताते हैं कि आज उनके पोते का जन्मदिन है, इसलिए यहां राशन दान करने आए हैं.
प्रवीण बताते हैं कि रसोई के चलते वह कहीं आ जा नहीं पाते. इसकी वजह से उनके कई रिश्तेदार उनसे नाराज रहते हैं, लेकिन वहीं बाहर की दुनिया के ऐसे बहुत सारे लोग हैं..जो प्रवीण के काम से ना सिर्फ प्रभावित हैं, बल्कि प्रवीण के जैसा ही काम वह भी करना चाहते हैं. कई युवा हर रोज यहां सिर्फ देखने और सीखने आते हैं. प्रवीण कुमार कहते हैं कि वो यही काम करते हुए मरना चाहते हैं.