कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो. मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की ये कविता संगम नगरी प्रयागराज के अहद अहमद पर पूरी तरह सटीक बैठती है. अहद अहमद कुछ साल पहले तक अपने पिता के साथ साइकिल का पंक्चर बनाते थे, तो कभी मां का हाथ बटाते हुए कपड़े सिलने का काम करते थे लेकिन आज अपनी कड़ी मेहनत के बल पर जज बन चुके हैं. यूपी में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के नतीजों में अहद अहमद का भी नाम है. हैरानी की बात यह है कि अहद को यह कामयाबी पहली ही कोशिश में मिली है. वो भी बिना किसी कोचिंग के.
मां ने सिलाई कर बच्चों को पढ़ाया
साइकिल का पंक्चर बनाने वाले के बेटे की कामयाबी पर प्रयागराज के लोग फूले नहीं समा रहे हैं. अहद की कामयाबी इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि साइकिल का पंक्चर बनाकर परिवार का पेट पालने वाले पिता ने दिन-रात कड़ी मेहनत कर उसे पढ़ाया. बेटे अहद को पढ़ा-लिखा कर कामयाब इंसान बनाने की चाहत अहद की मां अफसाना को फिल्म घर द्वार देखकर हुई. इस फिल्म को देखने के बाद ही उन्होंने तय किया कि पति के पंक्चर की दुकान से परिवार का खर्च चलेगा और कपड़ों की सिलाई से जो पैसे आएंगे उससे उनके बच्चे पढ़ेगें.
पिता की है पंक्चर की छोटी सी दुकान
अहद अहमद प्रयागराज से तकरीबन किलोमीटर दूर नवाबगंज इलाके के छोटे से गांव बरई हरख के रहने वाले हैं. गांव में उनका छोटा सा टूटा-फूटा मकान है. घर के बगल में ही उनके पिता शहजाद अहमद की साइकिल का पंक्चर बनाने की छोटी सी दुकान है. इसी दुकान में वह बच्चों के लिए टॉफी व चिप्स भी बेचते हैं. पिता की पंचर की दुकान अब भी चलती है. अहद अहमद चार भाई बहनों में तीसरे नंबर पर हैं. उनके माता-पिता ने सिर्फ अहद अहमद को ही नहीं पढ़ाया बल्कि अपने दूसरे बच्चों को भी तालीम दिलाई है.
पंक्चर वाले का बेटा होने पर गर्व
अहद के बड़े भाई सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. उनके छोटे भाई एक प्राइवेट बैंक में ब्रांच मैनेजर हैं. परिवार में खुशियां हाल के दिनों में एक साथ आई हैं. अहद का कहना है कि माता-पिता ने उन्हें न सिर्फ मुफलिसी और संघर्ष में पाल पोसकर इस मुकाम तक पहुंचाया है, बल्कि हमेशा ईमानदारी और नेक नीयत से काम करने की नसीहत भी दी है. माता-पिता की इस हिदायत पर वह उम्र भर अमल करने की कोशिश करेंगे. अहद के मुताबिक उन्हें यह बताने में कतई झिझक नहीं होगी कि वह एक पंचर वाले के बेटे हैं. पिता शहजाद अहमद को वह अब आराम देना चाहते हैं. हालांकि जज बनने के बावजूद वह अब भी कभी-कभी पिता के काम में हाथ बंटा लेते हैं.
-प्रयागराज से पंकज श्रीवास्तव की रिपोर्ट