प्रयागराज के रानी मंडी में रहने वाले शमीम और उनके बेटे तकरीबन 30 सालों से गाड़ियों का हॉर्न बना रहे हैं. बाप-बेटे दोनों ना सुन सकते हैं ना बोल सकते हैं. लेकिन अपने काम में इस तरह लगे रहते हैं कि हर शख्स हुनर को देखकर खींचा चला आता है.
शमीम की कहानी फिल्म खामोशी से कम नहीं
शमीम बचपन से ना सुन पाते हैं ना बोल पाते हैं. जब शमीम की शादी हुई तो उनकी पत्नी भी ना बोल सकती थी, ना सुन सकती थी. लेकिन शादी के बाद जब शमीम का पहला बेटा हुआ तो शमीम डॉक्टर से इशारों में पहला सवाल किया कि क्या मेरा बेटा सुन सकता है या बोल पायेगा? लेकिन डॉक्टर का जवाब सुन पति-पत्नी दोनों ही मायूस हो गए. मां-बाप के बाद अब बेटा जन्म से मूक-बधिर है. लेकिन जब कई साल बाद उन्हें एक बेटा और बेटी हुई तब भी डॉक्टरों से उनका पहला सवाल यही था और जब उन्हें बताया गया कि उनके बच्चे सामान्य हैं, दोनों सुन भी सकते हैं और बोल भी सकते हैं तो शमीम और उनकी पत्नी ने राहत की सांस ली.
शमीम ने कभी भी दिव्यांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. खुद दिव्यांग बेटे ईशान को भी प्रेशर हॉर्न बनाना सिखा दिया. शमीम ने अपने इसी काम के बदौलत न सिर्फ अपनी एक बेटी की शादी कर दी, बल्कि छोटे बेटे को काम के लिए सऊदी अरब भी भेज दिया. कह सकते हैं कि शमीम की जिंदगी नाना पाटेकर की फिल्म खामोशी से कम नहीं और शमीम का किरदार नाना पाटेकर की ही तरह है.
कंपन से आवाज को समझ लेते हैं
प्रयागराज के सिविल लाइंस इलाके नवाब युसूफ रोड पर लगे एक नीम के पेड़ के ऊपर शमीम गूंगा नाम का एक बोर्ड लगा है. ऊपर लोगों की निगाह ना जाए, लेकिन शमीम को ज्यादातर लोग जानते हैं. हर गाड़ी चलाने वाला भी जानता है. इसलिए शमीम की दुकान पर काम करवाने दूरदराज से लोग पहुंचते हैं. शमीम और इनके बेटे ईशान दिव्यांग होने के बावजूद अपने काम में बहुत माहिर हैं. खास बात ये है कि ना बोल पाने, ना सुन पाने के बाद भी शमीम हल्के कंपन से उसकी आवाज को समझ लेते हैं. चंद मिनटों में प्रेशर हॉर्न बना डालते हैं. शमीम इसी काम से कमाए गए पैसे से अपने पूरे परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.
(रिपोर्ट- आनंद राज)