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Delhi University: कौन हैं प्रोफेसर Reena Chakraborty, कम पानी-कम जगह में मछली पालन की सिखा रहीं गुर, President Draupadi Murmu ने प्रदान किया अनुसंधान पुरस्कार

DU की प्रोफेसर रीना चक्रवर्ती और उनकी टीम ने इन-हाउस माइक्रो-क्लाइमेट कंट्रोलिंग सिस्टम तैयार किया है, जहां पानी और जगह की न्यूनतम उपलब्धता के साथ साल भर विभिन्न प्रकार की मछलियां पाली जा सकती हैं. यह रिसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी है.

President Draupadi Murmu Gave the Award to Professor Reena Chakraborty President Draupadi Murmu Gave the Award to Professor Reena Chakraborty
हाइलाइट्स
  • दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं रीना चक्रवर्ती

  • इन-हाउस माइक्रो-क्लाइमेट कंट्रोलिंग सिस्टम किया है तैयार

उत्कृष्ट नवाचार, अनुसंधान कार्य और प्रौद्योगिकी विकास के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) की एक प्रोफेसर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ने पुरस्कृत किया है. राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में 3 मार्च को आयोजित समारोह में 8वें विजिटर्स अवार्ड, 2023 प्रदान किए गए. जैविक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान पुरस्कार इस वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. रीना चक्रवर्ती (Reena Chakraborty) को प्रदान किया गया.

गौरतलब है कि यह पुरस्कार 2015 से भारत सरकार की ओर से प्रतिवर्ष दिया जाता है. पुरस्कार विजेताओं को एक प्रमाण पत्र और नकद पुरस्कार मिलता है. डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने यह पुरस्कार पाने पर बधाई दी. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों का उदेश्य ऐसे शोध को बढ़ावा देना होना चाहिए जो राष्ट्र की प्रगति में सहयोग दें.

लेक्चरर के रूप में किया था ज्वाइन 
विदित रहे कि डॉ. चक्रवर्ती ने 1992 में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राणी शास्त्र विभाग में लेक्चरर के रूप में ज्वाइन किया था. वर्तमान में वह एक वरिष्ठ प्रोफेसर हैं और विभागाध्यक्ष का पद संभाल रही हैं. प्रो. चक्रवर्ती ने अपने नियमित कार्यभार के अलावा मछली पालन में उन्नत अनुसंधान करने के लिए एक परिष्कृत अनुसंधान प्रयोगशाला विकसित करने का प्रयास किया.

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इस उद्देश्य के लिए विश्वविद्यालय से वित्तीय सहायता के अलावा, उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से अनुसंधान अनुदान प्राप्त किया. प्रो. चक्रवर्ती ने कहा कि विश्वविद्यालय में उत्कृष्टता पैदा करने में कुलपति प्रो. योगेश सिंह की अहम भूमिका रही है. विभाग में चल रहे शोध का अवलोकन करने के लिए कुलपति समय-समय पर विभाग का दौरा करते रहते हैं और संकाय सदस्यों के साथ-साथ शोध छात्रों से भी बातचीत करके उन्हें प्रेरित करते रहते हैं. इसी का परिणाम है कि डीयू को यह पुरस्कार मिला है. 
 
प्रो. चक्रवर्ती का शोध योगदान
प्रो. रीना चक्रवर्ती ने बताया कि मछली की खपत में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन अंतर्देशीय मछली पालन के लिए जगह और पानी एक सीमित कारक रहा है. किचन गार्डन या रूफ टॉप गार्डन की तरह, उन्होंने और उनकी टीम ने इन-हाउस माइक्रो-क्लाइमेट कंट्रोलिंग सिस्टम तैयार किया है, जहां पानी और जगह की न्यूनतम उपलब्धता के साथ साल भर विभिन्न प्रकार की मछलियां पाली जा सकती हैं. यह रिसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (RAS) पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी है.

एक्वाकल्चर अपशिष्ट को विभिन्न बायो-फिल्टर के साथ हटा दिया जाता है और सिस्टम में फिर से उपयोग किया जाता है. ऐसे बायोफिल्टर में से एक कुछ पौधे की प्रजातियां हैं, जिनका उपयोग पत्तेदार सब्जियों के रूप में भी किया जाता है. इसे एक्वापोनिक्स सिस्टम के रूप में जाना जाता है, जिसने मछली पालकों को अतिरिक्त आय प्रदान की. मछली पालन में फीड की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. फीड की पसंद न केवल मछलियों के प्रकार के साथ बदलती है, बल्कि उनकी उम्र के साथ भी बदलती है. चक्रवर्ती ने बताया कि उन्होंने कुछ अनूठी जड़ी-बूटियों के साथ मछली-आयु विशिष्ट फीड विकसित की है, जो न केवल उनकी वृद्धि को बढ़ाएगी बल्कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएगी.  
 
शोध का प्रभाव 

प्रो. चक्रवर्ती और उनकी टीम ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में किसानों के तालाबों में कई किसान-वैज्ञानिक संपर्क कार्यक्रम और क्षेत्र प्रदर्शन आयोजित किए हैं, ताकि उनके अभ्यासों के पैकेज का प्रसार किया जा सके. नॉर्वे के छात्र और बांग्लादेश, केन्या, तंजानिया, नेपाल और यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिक एवं किसान भी डीयू की प्रयोगशाला में आ चुके हैं. हाल ही में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कौशल विकास कार्यक्रम की अवधारणा को शामिल किया गया है.

चक्रवर्ती ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मछली पालन में और सुधार पर जोर दिया है. तदनुसार, उन्होंने जलीय कृषि पर एक नया पाठ्यक्रम तैयार किया है, जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों द्वारा बड़े पैमाने पर स्वीकार और सराहा गया है. इस कार्यक्रम से छात्रों को मछली चारा विकास, मोती संस्कृति और सजावटी मछली संस्कृति जैसे अपने स्वयं के उद्यम शुरू करने में मदद मिलने की उम्मीद है.

(अनमोल नाथ बाली की रिपोर्ट)