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Agro Rangers: कॉर्पोरेट सेक्टर छोड़कर किसानों को सशक्त बना रहा है यह इंजीनियर, 200 एकड़ बंजर भूमि को बनाया उपजाऊ

29 साल के सिद्धेश ने एक खास कृषि वानिकी मॉडल ईजाद किया है जिसके जरिए वे मिट्टी की गुणवत्ता को सुधार कर बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बना रहे हैं. साथ ही, किसानों को भी इस मॉडल की ट्रेनिंग दी जा रही हैं.

Siddhesh Sakore Siddhesh Sakore
हाइलाइट्स
  • मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने पर काम

  • किसानों को दे रहे हैं ट्रेनिंग

पुणे के रहने वाले सिद्धेश सकोरे ने जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की तो उनके घरवालों को लगा कि उनका बेटा अच्छी कॉर्पोरेट कंपनी में काम करेगा. लेकिन सिद्धेश ने इंजीनियरिंग में करियर बनाने के बजाय खेती के सेक्टर में काम करना चुना. 29 साल के सिद्धेश ने एक खास कृषि वानिकी मॉडल ईजाद किया है जिसके जरिए वे मिट्टी की गुणवत्ता को सुधार कर बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बना रहे हैं. साथ ही, किसानों को भी इस मॉडल की ट्रेनिंग दी जा रही हैं.

कैसे हुई शुरुआत 
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मैकेनिकल इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद सिद्धेश ने पुणे स्थित अनुसंधान संस्थान ‘विज्ञान आश्रम’ में काम करना शुरू किया. 2018 में, उन्हें पुणे में आस-पास के गांवों की मिट्टी की गुणवत्ता का विश्लेषण करने का प्रोजेक्ट दिया गया. 5,000 से ज्यादा मिट्टी के सैंपल्स का विश्लेषण करने के बाद उन्हें पता चला कि मिट्टी में औसत सॉइल कार्बनिक कार्बन (SOC) लगभग 0.5 प्रतिशत था और यह खतरनाक दर से घट रहा था. 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, अगर मिट्टी के वजन के 1 से 5 प्रतिशत के बीच एसओसी रेंज है तो वह मिट्टी स्वस्थ होती है. एसओसी का उच्च स्तर मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है. एसओसी मिट्टी के कार्बनिक मैटर का मुख्य घटक है, जो मिट्टी को जल-धारण (वाटर रिटेंशन) क्षमता, मिट्टी की संरचना और उर्वरता देता है. यह मिट्टी की उत्पादकता को प्रभावित करता है क्योंकि सूक्ष्म जीव कम एसओसी रेंज वाली मिट्टी में जीवित नहीं रहते हैं, और ये जीव पौधों के लिए पोषक तत्व देने का काम करते हैं. 

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शुरू किया अपना संगठन 
मिट्टी की घटती उत्पादकता का विश्लेषण करने के बाद, सिद्धेश को पता चला कि केमिकल फर्टिलाइजर्स मिट्टी के स्वास्थ्य को बर्बाद कर रहे हैं और इससे किसानों की कमाई घट रही है. इस अनुभव के बाद सिद्धेश ने इस दिशा में काम करने का फैसला किया. इस सेक्टर में औपचारिक प्रशिक्ष के लिए, उन्होंने 'द कंथारी इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंटरप्रेन्योरशिप' से कोर्स किया. उन्होंने सीखा कि एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) शुरू करने और चलाने के लिए क्या-क्या जरूरतें होती हैं? 

साल 2020 में उन्होंने अपने संगठन, 'एग्रो रेंजर्स' को एक एनजीओ के रूप में रजिस्टर किया. हालांकि, जब उन्होंने एग्रो सेक्टर में काम करने का फैसला किया तो उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया. उन्हें अपनी जमीन पर काम करने से भी मना कर दिया. उनके पिता को लगा कि इससे सिद्धेश अपना फैसला बदलकर इंजीनियरिंग सेक्टर में वापस आ जाएंगे. पर सिद्धेश अपनी बात पर अटल रहे. उन्होंने दूसरे गांव में जमीन किराए पर लेकर काम शुरू किया. 

तैयार किया कृषि वानिकी खेती मॉडल
सिद्धेश और उनकी टीम ने सबसे पहले मिट्टी के स्वास्थ्य का विश्लेषण किया और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल किसानों को फसलें उगाने की सलाह दी. उन्होंने किसानों को यह भी बताया कि मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए किस तरह के खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. उन्होंने किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित किया, लेकिन जैविक खेती से शुरुआत में उत्पादन काफी कम होता है और किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बाजार नहीं मिल पाता है. साथी ही, ऑर्गनिक सर्टिफिकेशन लेना भी महंगा हो जाता है. 

इन परेशानियों को हल करने के लिए सिद्धेश ने कृषि वानिकी खेती मॉडल तैयार किया. इस मॉडल में खेतों में फसलों के साथ पेड़ लगाए जाते हैं और पशुपालन भी किया जाता है. कृषि वानिकी एक बार के निवेश की तरह है जिसके लिए प्रति एकड़ लगभग 80,000 रुपये की जरूरत होगी. और इस एक बार की इंवेस्टमेंट से किसान 40 से ज्यादा सालों तक फसल ले सकते हैं. जैसे कोई खेत में पपीता, सहजन, आंवला और आम जैसे पेड़ लगा सकता है और बची हुई जगह पर अनाज, दालें और बाजरा की फसल लगा सकता है, जिससे साल भर की आय हो सकती है. 

सुधरेगा मिट्टी का स्वास्थ्य 
कृषि वानिकी खेती मॉडल में पेड़ मिट्टी में कार्बन की मात्रा को ठीक कर सकते हैं जबकि फसलें पोटेशियम और नाइट्रोजन को ठीक करती हैं. इस तरह से तीन से चार साल में मिट्टी की सेहत सुधर जाती है. इसके बाद, किसान को किसी तरह के केमिकल फर्टिलाइजर पर पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं होती है. सिद्धेश इस तरीके से अब तक 200 एकड़ बंजर भूमि में जान फूंक चुके हैं. उन्होंने 2000 से ज्यादा किसानों को ट्रेनिंग दी है. 

किसानों की आय बढ़ाने के लिए, सिद्धेश का एनजीओ किसानों से 10,000 रुपये का योगदान लेता है और उनकी 1 एकड़ भूमि को कृषि वानिकी मॉडल में सुधारता है. इसमें ड्रिप सिंचाई इंस्टॉल करना, पेड़ लगाना और उन्हें बाजार तक पहुंच उपलब्ध कराना शामिल है. इस प्रक्रिया को सीएसआर फंडिंग की मदद से पूरा किया जाता है और किसानों को इसमें 90 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है. किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में सिद्धेश के काम को संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) ने मान्यता दी है. उन्हें 2024 में विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस (World Desertification and Drought Day) के अवसर पर 'Land Hero' की उपाधि से सम्मानित किया गया था.