
यह कहानी है पंजाब में फरीदकोट जिले के कोटकपूरा के पास बुक्कन सिंह नगर गांव से ताल्लुक रखने वाले डॉ. सिमरजीत सिंह की. फिलोसॉफी में पीएचडी करने वाले सिमरजीत आज देश के प्रगतिशील किसानों में से हैं. पढ़ाई के बाद उन्होंने बतौर शिक्षक अपना करियर शुरू किया था. लेकिन प्रकृति के करीब रहने के लिए उन्होंने खेती करने का फैसला किया और सिमर ऑर्गेनिक फार्म खोला.
उन्होंने अपनी जमीन पर अलग-अलग फलों के पेड़ लगाने शुरू किए. यह जमीन उन्होंने पहले किराए पर दी हुई थी क्योंकि उनके माता-पिता शिक्षक थे. लगभग आधा एकड़ के छोटे हिस्से को छोड़कर बाकी जमीन किराए पर दी गई थी. इस आधे एकड़ पर उनके पिता एथलीटों को प्रशिक्षित करते थे. उनके पिता विभिन्न देशों का दौरा करते थे, और इन देशों से अलग-अलग फलों के पेड़ लाते थे. यहीं से सिमरजीत का बागवानी के प्रति पैशन बढ़ा.
पांच एकड़ में लगाए अनेकों तरह के पेड़
सिमरजीत सिंह बताते हैं कि वह अपनी जमीन पर 45 प्रकार के आम उगाते हैं, जिनमें भारतीय और जापानी और थाई आम जैसी किस्में शामिल हैं. इनमें से कई आमों का बाजार मूल्य 1400 से 1500 रुपये प्रति किलोग्राम है. उन्होंने करीब एक एकड़ में आम के बाग लगाए हैं, दो एकड़ में अमरूद की किस्में उगाई हैं, आधा एकड़ में जापानी फलों की खेती की है और आधा एकड़ में आलूबुखारा, अंजीर, काला और सफेद जावा (जामुन) और अनार की दुर्लभ किस्में उगाई हैं.
बाकी एक एकड़ में कई अन्य फल उगाए हैं, जिनमें इजरायली सेब की किस्मों के 200 पेड़, बादाम, मैकाडामिया नट्स, पेकन नट्स और करीब 30 किस्म के आयुर्वेदिक पौधे शामिल हैं. इनके अलावा, वह सोना मोती, खपली, चपाती नंबर वन और बंसी गोल्ड गेहूं की किस्मों के साथ अंतरफसल उगाते हैं, जिनमें ग्लूटेन की मात्रा कम होती है और ये अपने उच्च पोषण मूल्य के कारण 8,000 से 14,000 रुपये प्रति क्विंटल बिकते हैं. वह सभी मौसमी सब्जियां, दालें, हल्दी और बाजरा भी उगाते हैं और आगे की आपूर्ति के लिए अलग-अलग पौधों की नर्सरी तैयार करते हैं.
खेत से ही बिकती है उपज
सिमरजीत अपने खेतों की मेड़ों पर देसी गुलाब भी उगाते हैं और उनकी सूखी पंखुड़ियों को 3,500 रुपये प्रति किलो बेचते हैं और उनसे गुलकंद (गुलाब की पंखुड़ियों का जैम) बनाते हैं. वह गर्व से बताते हैं कि उनके खेत में कुछ भी बर्बाद नहीं होता - अगर एक्स्ट्रा फल होते हैं, तो उसका जूस बनाने के लिए कॉन्संट्रेट बनाया जाता है और खराब फलों का इस्तेमाल खाद बनाने में किया जाता है. उन्हें अपने जैविक उत्पादों के लिए विभिन्न संगठनों से सर्टिफिकेट भी मिला है.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा, "हम मांग को पूरा नहीं कर सकते, इसलिए अब मैंने और ज़मीन खरीदने और कुछ ठेके पर लेकर और ज़्यादा फसल उगाने का फ़ैसला किया है. वर्तमान में, लगभग आधा दर्जन किसान मेरे लिए कई फ़सलें उगा रहे हैं, और मैं उन्हें गुणवत्ता और शुद्धता बनाए रखने के लिए मार्गदर्शन करता हूं." उनके खेत का सारा उत्पादन यहीं उनके खेत में बेचा जाता है. उनके खेत में कुछ महीनों को छोड़कर लगभग पूरे साल फल उपलब्ध रहता है, और वह रोज़ाना एक से दो क्विंटल फल बेचते हैं, इसके अलावा वह उपज को मंडी में भी भेजते हैं, जहां खरीदार फलों की मांग करते हैं. उनकी सब्ज़ियां और दूसरी फ़सलें पूरे साल बिकती हैं.
प्रोसेसिंग शुरू करने का प्लान
सिमरजीत के खेत में आस-पास और दूर-दूर से ग्राहक आते हैं, जिनमें कई एनआरआई भी शामिल हैं. वे दालें, हल्दी, गुड़, गेहूं और दूसरी जड़ी-बूटियां जैसे सूखे उत्पाद खरीदते हैं. उन्होंने कहा कि वह धीरे-धीरे प्रोसेसिंग में शुरुआत कर रहे हैं. उनका दावा है कि इससे उन्हें खर्चों को पूरा करने के बाद प्रति एकड़ कम से कम 8-9 लाख रुपये कमाने में मदद मिलेगी.
उन्होंने कहा कि वह पांच स्थायी और बाकी अस्थायी सहित लगभग 15 कर्मचारियों को काम पर रखा है. वह मधुमक्खी पालन भी करते हैं और अपने चचेरे भाई के साथ साझेदारी में 500 मधुमक्खी के छत्ते संभाल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह अपने खेत में कुछ भी बर्बाद नहीं करते हैं. उन्होंने बताया कि कैसे गिरे हुए पत्ते और खराब फलों से वह खाद बनाते हैं जिससे मिट्टी और भी समृद्ध हो जाती है.