आज जब भी पंजाब की बात होती है तो ड्रग एडिक्शन की चर्चा जरूर होती है. कहते हैं कि नशे ने पंजाब की नस्लों को खराब कर दिया है. लेकिन अब लोगों की पहल से यह तस्वीर कुछ बदलती नजर आ रही है. पंजाब के मालवा रीजन में लोगों ने नशा को रोकने के लिए एक पहल शुरू की है.
बठिंडा, मानसा, फिरोजपुर, फरीदकोट, मुक्तसर और संगरूर जिलों में सैकड़ों नशा रोको समितियां उभरी हैं. पंजाब भर के किसान संघों के इन समितियों के साथ जुड़ने से आंदोलन के तेजी से बढ़ने की उम्मीद है. बताया जा रहा है कि अलग-अलग गांवों के निवासी अपने गांव में आने वाले संदिग्ध लोगों पर नजर रखते हैं. अगर उन्हें कोई गड़बड़ लगती है तो स्थानीय नशा रोको समिति और पुलिस को सूचित किया जाता है ताकि वे उस व्यक्ति की तलाशी ले सकें.
कमेटी बनने के बाद से कई गांवों में नशे की सप्लाई बंद हो गई है. इससे यहां के नशेड़ियों को मदद लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है. नशीली दवाओं के खतरे को पूरी तरह खत्म करने के लिए ऐसा करते रहने की जरूरत है.
किस कारण हुआ नशा रोको समिति का गठन
इन समितियों के गठन का कारण बताते हुए मनसा के जोगा गांव की 25 वर्षीय सीरा ढिल्लों ने द इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि उन्हें यह अहसास हुआ कि सरकार और पुलिस नशीली दवाओं को खत्म नहीं कर सकती है. ऐसे में, इन समितियों के गठन हुआ. लोगों को एहसास हुआ कि इससे पहले कि अगली पीढ़ी नशीली दवाओं के कारण नष्ट हो जाए, उन्हें कुछ करने की ज़रूरत है.
पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह ने मार्च में राज्य विधानसभा को बताया था कि सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों में लगभग 2.62 लाख नशेड़ियों का इलाज चल रहा है, जबकि निजी केंद्रों में लगभग 6.12 लाख नशेड़ी हैं. उन्होंने कहा था कि राज्य में संभवतः 10 लाख नशेड़ी हैं, जो इसकी कुल आबादी 3.17 करोड़ का लगभग 3 प्रतिशत है.
युवाओं की संवर रही है जिंदगी
चार साल पहले तक हेरोइन के आदी बठिंडा के भाईरूपा गांव के 37 वर्षीय बख्शीश सिंह अब न केवल गांव के युवाओं को कबड्डी का प्रशिक्षण देते हैं, बल्कि नशीली दवाओं की सप्लाई करने वालों के खिलाफ भी लड़ते हैं. बठिंडा के दुल्लेवाला गांव के 34 वर्षीय बलबहादुर सिंह नशा रोको समिति बनाने वाले पहले लोगों में से थे. उनका कहना है कि लगभग 30 समितियां व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ी हुई हैं.
उनके क्षेत्र में किसी ड्रग डीलर के देखे जाने पर सिर्फ एक मैसेज काफी है उन्हें संगठित करने के लिए. इन समितियों के गठन के बाद से उन्होंने कुछ सकारात्मक बदलाव देखे हैं: नशे की लत के शिकार लोगों ने इलाज कराना शुरू कर दिया है, कुछ लोग इन समितियों में शामिल हो गए हैं, खुलेआम नशीली दवाओं का सेवन बंद हो गया है और तस्करों ने गांव को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया है.
सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल
कुछ स्थानीय लोगों ने इन समितियों के लिए समर्थन जुटाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है. जोगा गांव के सीरा के इंस्टाग्राम पर 20,000 से अधिक फॉलोअर्स हैं और उनकी ज्यादातर रील्स में उन्हें कथित पेडलर्स का सामना करते हुए दिखाया गया है. उनके गांव में नशा रोको समिति है. वह लगभग दो सालों से नशीली दवाओं के खिलाफ लड़ने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं.
ड्रग तस्करों का सामना करना खतरे से भरा है. 30 वर्षीय सोनी ढिल्लवां ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वह फरीदकोट जिले के ढिलवां गांव के हरभगवान सिंह के साथ कथित तस्करों का सामना कर रहे थे, जब 4 अगस्त को उनके सामने ही हरभगवान सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. बठिंडा के भुच्चो कलां गांव में, कथित ड्रग डीलरों का विरोध करते समय कार्यकर्ता सुखविंदर सिंह को गोली मार दी गई थी.
हालांकि, कुछ स्थानीय विधायकों के समर्थन से इन समितियों का आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद मिली है. भगता भाई गांव के एक स्थानीय फार्म यूनियन नेता अवतार सिंह तारी ने कहा कि रामपुरा फूल के विधायक बलकार सिंह सिद्धू की बदौलत कुछ तस्करों को गिरफ्तार किया गया.