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कभी दोस्त और रिश्तेदार बनाते थे मजाक... आज इसी शास्त्रीय नृत्य के दम पर बनाई पहचान, राहुल गुप्ता लोगों को सिखा रहे हैं डांस 

दक्षिण भारत में शास्त्रीय नृत्य और नृत्य प्रशिक्षण एक आम सी बात है, लेकिन उत्तर भारत में आज से करीबन तीन दशक पहले अगर कोई पुरुष शास्त्रीय नृत्य खासकर "भरतनाट्यम" कर रहा होगा या सिखा रहा होगा तो यह कोई आसान बात नहीं रही होगी.

शास्त्रीय संगीत के दम पर बनाई पहचान शास्त्रीय संगीत के दम पर बनाई पहचान
हाइलाइट्स
  • बचपन में नहीं मिला प्रोत्साहन 

  • देखते ही देखते बना ली अपनी पहचान  

तस्वीरों में दिख रहे 35 साल के राहुल गुप्ता के चेहरे पर आज भले ही मुस्कान और संतुष्टि है लेकिन आज से ढाई दशक पहले शास्त्रीय नृत्य और नृत्य प्रशिक्षण को अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को बताने में राहुल गुप्ता हिचकिचाते थे. स्कूल में दोस्त और रिश्तेदार मजाक बनाया करते थे... लेकिन कहते हैं ना मेहनत और लगन से कोई भी मंजिल और मुकाम हासिल किया जा सकता है. यह बात पूरी तरह से सटीक राहुल गुप्ता और उसके परिवार पर बैठती है. आज के समय में राहुल गुप्ता उत्तर भारत में उन चुनिंदा डांसर में से हैं जोकि दक्षिण भारत के शास्त्रीय नृत्य को उत्तर भारत में सिखा रहे हैं. 

बचपन में नहीं मिला प्रोत्साहन 

दक्षिण भारत में शास्त्रीय नृत्य और नृत्य प्रशिक्षण एक आम सी बात है, लेकिन उत्तर भारत में आज से करीबन तीन दशक पहले अगर कोई पुरुष शास्त्रीय नृत्य खासकर "भरतनाट्यम" कर रहा होगा या सिखा रहा होगा तो यह कोई आसान बात नहीं रही होगी. जी हां तस्वीरों में जिसे आप देख रहे हैं यह है 35 साल के राहुल गुप्ता जिन्हें बचपन से ही शास्त्रीय नृत्य में खूब रुचि और दिलचस्पी रही थी लेकिन ना तो कोई सिखाने वाला था और जो कुछ नृत्य आता था उसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता था.

कुछ लोगों ने उड़ाया मजाक तो कुछ ने प्रोत्साहन दिया 

राहुल गुप्ता ने बताया कि कहते हैं ना हाथ की सभी उंगलियां भी एक समान नहीं होती है. कुछ लोगों ने जरूर मजाक बनाया लेकिन जो कला और नृत्य को समझते थे उन्होंने प्रोत्साहन भी दिया. अपनी इस सफलता का सबसे बड़ा श्रेय वह अपनी मां को देते हैं. जिन्होंने उन्हें लगातार शास्त्रीय नृत्य के लिए प्रोत्साहन दिया और नृत्य सीखने के लिए दिल्ली से लेकर दक्षिण भारत तक भेजा. राहुल बताते हैं कि बाद में उनकी धर्मपत्नी ने ही उन्हें लगातार बढ़ावा दिया और आज उनका पूरा परिवार जिसमें कि उनके 12 साल का बेटा भरत गुप्ता भी एस नृत्य और शैली को अपने पिता से सीखकर उसमें निपुणता हासिल कर रहा है.

देखते ही देखते बना ली अपनी पहचान  

राहुल बताते हैं कि अपने सहपाठियों के लिए वो हंसी का पात्र बनने से लेकर, लोगों और रिश्तेदारों द्वारा "लड़कियों की रुचि" समझे जाने वाली बातों के लिए उनका मजाक उड़ाया जाता था. राहुल बताते हैं कि नृत्य की मुद्राओं में जब कोमलता और नजाकत के साथ हाथ, आंखें और गर्दन हिलाई जाती है लेकिन राहुल ने इन सब की परवाह नहीं की और बाद में वह सबके लिए एक विजेता के तौर पर उभरे. 

पत्नी भी है प्रोफेशनल डांसर 

राहुल गुप्ता की पत्नी सीमा गुप्ता भी एक पेशेवर नर्तकी हैं, और समकालीन, ज़ुम्बा, सालसा, हिप-हॉप आदि सहित कई नृत्य रूपों में उत्कृष्ट हैं. वह भरतनाट्यम में स्नातक हैं और कलामंडलम शैली में प्रशिक्षित हैं. अब ये डांसिंग जोड़ी चंडीगढ़ में कलालयम डांस एकेडमी नाम से एक डांस एकेडमी चलाती है. राहुल गुप्ता बताते हैं कि हम ट्राइसिटी के 15 से अधिक स्कूलों में लगभग 800 बच्चों को नृत्य सिखाते हैं. इसका मकसद मात्र यह है कि भारत की सभ्यता संस्कृति और कला को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाया और बचाया जा सके.

मिल चुके हैं कई पुरस्कार 

राहुल बताते हैं कि पाश्चात्य सभ्यता ने नई पीढ़ी को अपनी ओर जरूर आकर्षित किया है. लेकिन लगातार वह अपने इस प्रयास से नई पीढ़ी को जड़ों से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं राहुल बताते हैं कि अगर पिछले कुछ सालों की बात की जाए तो अब लड़कों की संख्या में पहले के मुकाबले 30 फीसदी की बढ़ोतरी शास्त्रीय नृत्य सीखने में देखी गई है जोकि एक अच्छा संकेत है. राहुल और सीमा गुप्ता ने बताया कि आगे अपनी इस कला को  बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने 12 साल के बेटे भरत को भी शास्त्रीय नृत्य खास तौर पर भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी सिखाया जा रहा है, जिससे यह बेल हरी-भरी और सृजित हो सके. अब तक यह परिवार कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपना नृत्य प्रदर्शन कर चुके हैं...वे नृत्य कार्यशालाओं के लिए अन्य देशों में भी जाते रहते हैं.