अमरेन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ के एक प्राथमिक सरकारी स्कूल के बच्चों में ज्ञान का प्रकाश फैलाने से संतुष्ट थे. वो लगभग इस कार्य में एक दशक पूरा कर चुके थे जब अचानक उन्हें 2012 में अहसास हुआ कि उन्हें अपना समय और अधिक क्रिएटिव काम में लगाना चाहिए और इस दौरान उन्होंने अपना सबसे फेवरेट काम खेती करने के बारे में सोचा. यह फैसला करते ही अमरेंद्र बिना समय गंवाए राज्य की राजधानी से लगभग 30 किमी दूर बाराबंकी के दौलतपुर गांव में अपनी पैतृक भूमि पर खेती की संभावनाओं का पता लगाने के लिए वापस चले गए.
हर साल कमाते हैं 30 लाख रुपये
अमरेंद्र स्कूल में एक फुल टाइम टीचर थे और अपने परिवार के साथ लखनऊ में रहता थे. 2012 की गर्मियों की छुट्टियों के दौरान उन्होंने खेती करने का फैसला किया और परिवार की 30 एकड़ पारिवारिक भूमि पर खेती शुरू की.धीरे-धीरे अमरेंद्र का पार्ट टाइम जॉब एक जुनून में बदल गया. अमरेंद्र ने जब फसल काटना शुरू किया तो इससे उनके खूब सारी कमाई हुई. ये कमाई एक शिक्षक की आय से बहुत अधिक थी. अब वह हर साल करीब 30 लाख रुपए कमाते हैं.
ऑनलाइन सीखी खेती
अमरेंद्र अब ना सिर्फ अकेले खेती कर रहे हैं बल्कि औरों को भी इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं. अमरेंद्र अब खेती के जरिए दूसरों को भी समृद्ध होने की प्रेरणा और मार्गदर्शन दे रहे हैं. अमरेंद्र ने YouTube और ऑनलाइन ट्यूटोरियल की मदद से खेती-किसानी सीखा और 12 साल की इस लंबी यात्रा में उन्होंने एक एकड़ जमीन पर केले की खेती के साथ शुरुआत की थी.
अमरेंद्र कहते हैं, “यह इतना आसान नहीं था. मैं उस समय का अधिकतम उपयोग करने के बारे में सोच रहा था जो मैं खेती में लगा रहा था. गेहूं, अनाज और गन्ना उगाने का पारंपरिक तरीका इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर रहा था क्योंकि ये तीन फसलें ज्यादा कमाई करने में मदद नहीं करती हैं, लेकिन इसमें बहुत समय लगता है.” गन्ने की फसल से पैसे कमाने में कम से कम दो साल लग जाते हैं. इसी तरह अन्य दो फसलें भी वित्त सुधार में उतनी मदद नहीं करती हैं.
बदलते रहते हैं क्रॉप पैटर्न
कमाई बढ़ाने के लिए उन्होंने बाद में केले उगाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उन्हें इसमें फायदा होने लगा. अगले साल और भी बेहतर परिणामों के लिए उन्होंने केले के साथ अदरक, हल्दी और फूलगोभी की अंतर-फसल लगाने की कोशिश की. हालांकि अदरक के परिणाम पर्याप्त उत्साहजनक नहीं थे, लेकिन हल्दी ने अमरेंदर को बेहतर परिणाम प्रदान किए. उन्होंने कहा, “हल्दी की फसल से होने वाली कमाई केले पर निवेश की गई राशि को कवर करती है. केले की बिक्री से होने वाली कमाई पूरी मुनाफा थी.”
इसके बाद उन्होंने तरबूज, खरबूजा और आलू के साथ प्रयोग किए. उन्होंने खेती की बेहतर तकनीक सीखने के लिए अपने ऑनलाइन सत्रों को बढ़ाया और अंततः अपनी योजना में स्ट्रॉबेरी, शिमला मिर्च और मशरूम की खेती को शामिल किया.शुरुआत में उन्हें थोड़ा घाटा जरूर हुआ लेकिन बाद में उन्होंने मुनाफा कमाया. अब वो खेती की योजना इस तरह करते हैं कि एक फसल का कचरा अगली फसल के लिए खाद का काम करे, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों का स्तर सुरक्षित रहे.
अभी उनके पास है 60 एकड़ जमीन
अमरेंदर मौसम के अनुसार फसलों में बदलाव करते हैं और ज्यादा से ज्यादा आउटपुट प्राप्त करने के लिए इंटर-क्रॉपिंग टेक्नीक की मदद लेते हैं. उन्होंने अपनी पैतृक भूमि के केवल 30 एकड़ से शुरुआत की थी, जो अब बढ़कर 60 एकड़ हो गई है. इसमें से 30 एकड़ स्वयं के स्वामित्व वाली है और 20 एकड़ पट्टे पर है. उन्होंने हाल ही में अतिरिक्त 10 एकड़ जमीन खरीदी है. फसलें भी अधिक विविध हो गई हैं. अब धनिया, लहसुन और मक्का भी उनकी वार्षिक खेती वाली फसलों का हिस्सा हैं.
अमरेंद्र ने कहा, “मेरे पास कुल भूमि में से 30 एकड़ का उपयोग सब्जियों और फलों को उगाने के लिए किया जाता है जबकि शेष आधे हिस्से का उपयोग गन्ना, गेहूं और अनाज उगाने के लिए किया जाता है. कुल जमीन से एक साल में 1 करोड़ रुपये का कारोबार होता है और मैं 30 लाख रुपये का मुनाफा कमाता हूं.”
किसानों को कर रहे हैं प्रेरित
शुरुआत में अमरेंद्र के कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों को उनके खेती करने का फैसला अजीब लगा क्योंकि उनका मानना था कि लोग नौकरी के माध्यम से बेहतर आय की तलाश में खेती छोड़ देते हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने उनके साहस की सराहना की और उनका समर्थन किया.अमरेंद्र की सफलता ने 300 से अधिक किसानों को प्रेरित किया है.