भारत में बहुत सी धातूकला और हस्तकला हैं जिनकी पहचान इंटरनेशनल लेवल पर है और अब इनमें एक और कला शामिल हो गई है. ओडिशा की सिल्वर फिलिग्री (Silver Filigree) जिसे 'रूपा तारकासी' के नाम से जाना जाता है. ओडिशा राज्य सहकारी हस्तशिल्प निगम के आवेदन दायर करने के चार साल बाद, पतले चांदी के तारों के प्रसिद्ध हस्तशिल्प को आखिरकार भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिल गया है.
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत चेन्नई स्थित GI रजिस्ट्री, GI रजिस्ट्रेशन के लिए राष्ट्रीय निकाय है. हाल ही में, संस्थान ने कटक रूपा तारकासी (सिल्वर फिलिग्री) के लिए एक एप्लिकेशन रजिस्टर की और इसे कटक के अद्वितीय उत्पाद के रूप में मान्यता दी. यह टैग अब कटक कारीगरों के बनाए चांदी के फिलाग्री आभूषणों के लिए अच्छे दाम मिलने में मदद करेगा.
सदियों पुरानी है यह कला
इतिहासकारों के अनुसार, कटक की रूपा ताराकासी की उत्पत्ति के बारे में सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन यह साबित हो चुका है कि 12वीं शताब्दी तक, शहर में चांदी के साथ काम करने वाले कारीगर मौजूद थे. इस शिल्प को मुगलों के अधीन संरक्षण प्राप्त हुआ, इस प्रकार यह उनके साथ उत्पत्ति के स्रोत के रूप में जुड़ा हुआ था.
रजिस्ट्री में कहा गया है कि कटक की सिल्वर फिलिग्री अपनी कॉम्पलेक्स डिजाइन और बेहतरीन शिल्प कौशल के कारण प्रसिद्ध है और यह कटक के खसियत है जो आपको देश या दुनिया में किसी और जगह देखने को नहीं मिलती है. इसके अलावा, कटक में बने उत्पादों का थ्री-डाइमेंशनल नेचर इसे रियलिस्टिक फिनिश देती है और इसे क्लस्टर के लिए यूनीक बनाती है.
दुर्गा पूजा और पारंपरिक नृत्य कला में हैं प्रसिद्ध
कटक क्लस्टर में बनाए गए उत्पादों में दुर्गा पूजा 'मेधा' और अद्वितीय 'दामा' चेन सहित आभूषण शामिल हैं. कटक में ज्यादातर आभूषण पुरुष कारीगर बनाते हैं. लेकिन दामा चेन महिलाएं बनाती हैं. जीआई टैग कटक की फिलीग्री को प्रमुखता देगा, उत्पाद के लिए बाजार खोलेगा और कारीगरों को उन्हें प्रीमियम कीमत पर बेचने के लिए मंच प्रदान करेगा. यह टैग ऐसे समय में आया है जब संरक्षण के अभाव में और युवा पीढ़ी के काम करने से इनकार करने के कारण शहर में फिलाग्री कारीगरों की संख्या लगातार कम हो रही है.
1995-96 से जब कटक में 3,079 फिलीग्री कारीगर थे, 2019-20 में यह संख्या घटकर सिर्फ 612 रह गई. प्रत्येक कारीगर दुर्गा पूजा अवधि के अलावा पूरे वर्ष औसतन 8,000 से 15,000 रुपये के बीच कमाता है. वर्तमान उत्पाद केंद्र बक्सी बाज़ार, तुलसीपुर, नयाबाज़ार और चांदनी चौक हैं. ऐसे में, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फिलिग्री उत्पादों को न केवल देश के भीतर बल्कि विदेशों में भी बढ़ावा दिया जाए और कारीगरों को एक मौका मिले.
इससे पहले, तेलंगाना के करीमनगर के चांदी के फिलिग्री शिल्प को 2006 में जीआई टैग प्राप्त हुआ था. कटक के विपरीत, करीमनगर में शिल्प की शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई मानी जाती है.