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Smart Village: एक गांव ऐसा भी! स्वास्थ्य, पानी से लेकर पराली प्रबंधन तक, हर मामले में स्मार्ट है यह रणसिह कलां

Smart Village: एक तरफ जहां शहरों में लोग किसी भी तरह के विकास के लिए सरकार और प्रशासन की तरफ देखते हैं वहीं पंजाब के एक गांव को वहां के निवासियों ने खुद स्मार्ट बना लिया है.

Ransih Kalan Village Ransih Kalan Village
हाइलाइट्स
  • गांव में नहीं जलाई जाती है पराली

  • पानी बचाने पर है गांव का जोर 

 

पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की समस्या आम है. लेकिन पंजाब में मोगा जिले का एक छोटा सा गांव पूरे देश के लिए इस मामले में मिसाल पेश कर रहा है. दरअसल, रणसिह कलां नामक गांव न सिर्फ पर्यावरण बल्कि हर एक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है. पिछले कुछ सालों में, गांव ने सिंचाई के लिए सीवेज के पानी को रिसायकल करने के तरीके खोजे हैं, प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के लिए रचनात्मक समाधान पेश किए हैं, और यहां तक ​​कि पिछड़े वर्ग के लोगों की हेल्थ इंश्योरेंस तक पहुंच मिल रही है. 

पिछले साल, गांव ने किसानों को पराली जलाने से परहेज करने पर प्रति एकड़ 500 रुपये देने की पेशकश की थी. गांव की सरपंच, कुलदीप कौर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उन्होंने पंचायत के लिए कई फसल अवशेष प्रबंधन मशीनें भी खरीदीं और उन्हें सीमित संसाधनों वाले किसानों को मुफ्त में दिया. लगभग 100 मध्यम से छोटे किसानों को इससे फायदा होता है, और उनमें से 25% के पास 2 एकड़ से कम जमीन है. 

गांव में नहीं जलाई जाती है पराली
कौर के बेटे प्रीतिंदर पाल 'मिंटू' उनसे पहले गांव के सरपंच थे. मिंटू ने भी पिछले साल किसानों को पराली न जलाने के लिए मनाया था और अब यहां पराली नहीं जलाई जाती है. उन्होंने पर्यावरण-अनुकूल होने की अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करते हुए इनाम राशि बांटी. साल 2019 में, केंद्र सरकार ने गांव को नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार से सम्मानित किया था, जो सामाजिक-आर्थिक विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए पंचायतों को दिया जाता है. 2020 में, गांव को सेवाएं और सार्वजनिक सामान, नवीन राजस्व सृजन योजनाएं और अन्य मार्कर प्रदान करने में सर्वश्रेष्ठ होने के लिए दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तीकरण पुरस्कार मिला. 

कौर ने बताया कि उनका गांव सरकारी फंड का इंतज़ार नहीं करता. पंचायत गांव के निवासियों के योगदान और कुछ एनआरआई के समर्थन से परियोजनाएं शुरू करती है और फिर सरकार से जो अतिरिक्त धनराशि मिलती है तो इन्हें पूरा करने में मदद मिलती है. पंचायत विभाग में ग्राम विकास आयोजक, परमजीत सिंह भुल्लर, रणसिह कलां को प्रेरणा का स्रोत बताते हैं. 

पानी बचाने पर है गांव का जोर 
गांव ने पर्यावरण की दिशा में अपनी यात्रा एक दशक पहले शुरू की, जब खेतों की सिंचाई के लिए ट्रीटेड सीवेज पानी का उपयोग करना शुरू किया. यहां 1,300 एकड़ कृषि भूमि है, जहां मुख्य रूप से गेहूं और धान की खेती होती है, लगभग 50 एकड़ का एक छोटा हिस्सा मक्का और विभिन्न मौसमी सब्जियों के लिए उपयोग किया जाता है. लगभग 100 एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई रिसायक्लड पानी से होती है. किसानों का कहना है कि जब से उन्होंने रिसायक्लड पानी से सिंचाई करना शुरू किया है तब से उन्होंने अपने खेत में यूरिया का उपयोग कम कर दिया है. 

गांव के निवासियों को एयर कंडीशनर से कंडंसेशन या आरओ सिस्टम से अतिरिक्त पानी इकट्ठा करने के लिए 20-लीटर के डिब्बे भी दिए गए हैं. इसके अलावा, रणसिह कलां में वर्षा जल संचयन के लिए दो झीलें हैं. 

प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन
गांव को 16 लाख रुपये की प्लास्टिक कचरा प्रबंधन यूनिट मिलने वाली है, जिसका अगले महीने अनावरण होने की संभावना है. इसे पंचायत चलाएगी और स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्र सरकार ने इसे फंड किया है. मिंटू ने कहा कि यूनिट प्लास्टिक कचरे को पानी के पाइप, कुर्सियां, स्टूल और अन्य वस्तुओं में बदलने में मदद करेगी, जो गांव के लिए राजस्व का स्रोत बन सकती है. 

गांव के निवासियों ने पहले से ही रीसाइक्लिंग को एक आदत बना लिया है - रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करने के लिए, पंचायत प्लास्टिक कचरे के बदले चीनी और गुड़ देती थी. एक महीने में लगभग एक क्विंटल कचरा रीसाइक्लिंग के लिए लुधियाना स्थित एक फैक्ट्री में भेजा जाता था. गांव ने निवासियों के कल्याण में सुधार के लिए कई अन्य पहल की हैं. इनमें गरीब परिवारों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना भी शामिल है जिसमें 1 लाख रुपये के चिकित्सा कवर के लिए प्रत्येक परिवार से 1 रुपये का मामूली शुल्क लिया जाता है. तीन साल पहले शुरू की गई इस पहल से अब तक 85 परिवारों को फायदा हुआ है. 

गांव में विधवा पेंशन योजना भी चलती है जो वंचित परिवारों के लाभार्थियों को प्रति माह 750 रुपये प्रदान करती है. वर्तमान में 75 महिलाएं इससे लाभान्वित हो रही हैं. पिछले साल, पंचायत ने वृक्षारोपण योजना शुरू की, जिसमें ग्रामीणों के बीच 1,000 फलों के पौधे बांटे गए थे और उनके रखरखाव को प्रोत्साहित करने के लिए प्रति माह 100 रुपये दिए गए. इन पौधों में अमरूद, जामुन और आम के पेड़ शामिल हैं जिन्हें लोगों ने घरों, खेत, सड़कें और विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर लगाया है. अब गांव बड़े पैमाने पर कृषि उपयोग के लिए जैविक ठोस कचरे को खाद में बदलने की योजना पर काम कर रहा है.