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Aloe Vera Farming: PCOS में मददगार हो सकता है एलोवेरा, जानिए कैसे करें इसकी खेती

एलोवेरा की खेती से आज भारत में बहुत से किसान लखपति बन रहे हैं. क्योंकि एलोवेरा का उपयोग खाने से लेकर कॉस्मैटिक में होता है. स्किनकेयर प्रोडक्ट्स से लेकर कई तरह की दवाओं में एलोवेरा का इस्तेमाल किया जाता है.

Aloevera Farming Aloevera Farming

सदियों से एलोवेरा का उपयोग दुनियाभर के लोग स्किनकेयर के लिए करते आ रहे हैं. एलोवेरा औषधीय पौधों की श्रेणी में आता है. एलोवेरा और इसके जैल का इस्तेमाल कई क्षेत्रों मे किया जाता है. एलोवेरा के जैल का उपयोग आमतौर पर मुंहासे, सनबर्न के इलाज या त्वचा में चमक लाने के लिए किया जाता है. हालांकि, अब इसका उपयोग पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) के इलाज में भी किया जाने लगा है. 

एम.एस यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च से पता चला है कि एलोवेरा जेल में ऐसे कंपाउंड हैं जो पीसीओएस के ट्रीटमेंट में प्रभावी हैं. पॉलीसिस्टिक ओवरी बीमारी की पहचान आमतौर पर माहवारी का रेगुलर न होना, वजन बढ़ना, शरीर पर बालों की उपस्थिति के लक्षणों से की जाती है. इससे गर्भावस्था संबंधी समस्याओं सहित कई अन्य प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकते हैं.

एमएसयू के विज्ञान विभाग में जैव रसायन विभाग की डॉ. लक्ष्मीप्रिया नामपूथिरी ने एलोवेरा पर लंबी रिसर्च की है. उनका कहना है, “हमारे शोध से पता चला है कि एलोवेरा जेल में लोफेनॉल और साइक्लोआर्टेनॉल जैसे फाइटोस्टेरॉल फाइटोकंपोनेंट होते हैं. हमारी प्रयोगशाला में इन विट्रो अध्ययनों से पता चला है कि ये फाइटोस्टेरॉल पीसीओएस को नियंत्रित करने में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं."

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बहुत फायदेमंद है एलोवेरा 
एलोवेरा भारत में सबसे लोकप्रिय पौधा है जिसका उपयोग कई तरह के इलाज के लिए किया जाता है. एलोवेरा औषधि शब्द का पर्याय है. इसकी लगभग 420 प्रजातियां हैं. एलोवेरा एक पौधा है जिसमें कई खनिज, विटामिन और अन्य सक्रिय तत्व होते हैं जो कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं.

एलोवेरा की हर पत्ती में तीन परतें होती हैं. इसमें एक आंतरिक जेल होता है जिसमें 99% पानी होता है, और विटामिन, स्टेरोल्स, ग्लूकोमैनन, अमीनो एसिड और लिपिड से बने अन्य भाग होते हैं. मध्य भाग लेटेक्स से बना होता है, जिसमें पीला रस होता है जिसमें एन्थ्राक्विनोन और ग्लाइकोसाइड होते हैं.

और अंत में, बाहरी परत में 15 से 20 कोशिकाएं होती हैं. उनका काम सबसे अंदरूनी हिस्से की रक्षा करना है और इसके साथ ही वे कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का संश्लेषण करते हैं. एलोवेरा की पत्तियों में आपको 160 आवश्यक तत्व मिल सकते हैं. 

ऐसे करें एलोवेरा की खेती 
एलोवेरा एक गर्म उष्णकटिबंधीय फसल के अंतर्गत आता है, और यह विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में उग सकता है. इसकी खेती शुष्क क्षेत्रों, कम बारिश वाले क्षेत्रों और गर्म, आर्द्र परिस्थितियों में आसानी से की जाती है. एलोवेरा का पौधा बहुत ज्यादा ठंड की स्थिति में नहीं पनप पाता है. यह पौधा कम  बारिश वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए सबसे अच्छा है. 

एलोवेरा का उत्पादन विभिन्न प्रकार की मिट्टी में किया जा सकता है. इसका उत्पादन वहां करना सबसे अच्छा है जहां मिट्टी की पीएच सीमा 8.5 तक हो. यह पौधा काली कपास मिट्टी में उगाने के लिए उपयुक्त है. एलोवेरा की जड़ें 20-30 सेमी से नीचे नहीं घुसती हैं, इसलिए मिट्टी के प्रकार के आधार पर भूमि की अच्छी तरह से जुताई करें और मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बना लें. आखिरी जुताई के समय मिट्टी में 6 टन प्रति एकड़ सड़ी हुई गोबर की खाद डालें. 

बुवाई का समय
बेहतर विकास के लिए जुलाई-अगस्त में एलोवेरा लगाएं. बाकी, सिंचित अवस्था में इसकी बुआई ठंड के मौसम को छोड़कर पूरे साल भर की जा सकती है. एलोवेरा की सैपलिंग लगाते समय आम तौर पर 45 सेमी x 40 सेमी या 60 सेमी x 30 सेमी का अंतर रखा जाता है. तीन से चार महीने पुरानी सैपलिंग्स को 15 सेमी गहरे गड्ढे में रोपें. 

फसल में फर्टिलाइजर का ध्यान रखें. कोशिश करें की बिना किसी रसायन का इस्तेमाल किए ऑर्गनिक तरीकों से एलोवेरा की खेती करें. निराई-गुड़ाई करें और खेत को खरपतवार मुक्त रखें. उचित अंतराल पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. साल में मुख्यतः दो बार निराई-गुड़ाई की जाती है. 

गर्मी या शुष्क परिस्थितियों में 2 सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई करें. बरसात के मौसम में इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है और सर्दी के मौसम में कम सिंचाई करनी चाहिए क्योंकि पौधा ज्यादा पानी नहीं लेता है. पहली सिंचाई सैपलिंग्स लगने के तुरंत बाद करनी चाहिए. खेतों में अत्यधिक पानी न भरें क्योंकि यह फसलों के लिए हानिकारक है. याद रखें कि फसलों को दोबारा पानी देने से पहले खेतों को पहले सूखने दें. 

दो साल में तैयार होती है पहली फसल 
एलोवेरा की फसल पर भी बीमारियां लग सकती हैं. इसलिए फसल को ऑर्गनिक कीट निवारक देते रहें. एलोवेरा को पूरी तरह से पकने में 18-24 महीने लगते हैं. इसकी कटाई साल में 4 बार की जा सकती है. प्रत्येक पौधे से 3-4 पत्तियां काटें.  तुड़ाई सुबह या शाम को करें. इसकी पत्तियां रिजनरेट हो जाती हैं और इस प्रकार फसल की कटाई 5 वर्षों तक की जा सकती है.