कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो. ये पंक्ति यूपी के संभल से PCS(J) में बाजी मारकर 135 वी रैंक हासिल करने वाले 29 वर्षीय कासिम पर सटीक बैठती है क्योंकि कासिम अब से कुछ साल पहले तक खुद ठेला लगाकर हलीम बेचने का काम करते थे. शुरुआती शिक्षा के दौरान उनका बचपन पिता के ठेले पर ही गंदी प्लेटे धोने में बीता है. लेकिन कुछ सालो में ही वक्त ऐसा बदला कि तमाम संघर्षो का बचपन बीतने के साथ ही कासिम ने अपने परिवार और संभल का नाम रोशन कर दिखाया है!
मोहम्मद कासिम ने अपनी मां से मोटिवेट होकर हौसलों की उड़ान भरते हुए अब मंजिल पा ली है. संभल के नखासा थाना इलाके के रुकनुद्दीन सराय निवासी 29 वर्षीय मोहम्मद कासिम ने यूपी लोक सेवा आयोग के घोषित नतीजों में 135 वी रैंक हासिल करके परिवार का नाम रोशन किया है. पीसीएस जे में चयन के बाद परिवार के साथ ही पूरे इलाके में खुशी का माहौल है. घर में कासिम के भाई बहन और रिश्तेदार मिठाईयां खिलाकर बधाईयां देने में लगे है तो इलाके के लोगो में भी कासिम के चयन को लेकर जबरदस्त उत्साह है. ठेला लगाने से लेकर जज बनने तक के खुद के और परिवार के तमाम संघर्षों व मुसीबतों के उन पलों को याद करके कासिम की आंखे नम जरूर थीं लेकिन अब सफलता के आंसू उस पर भारी थे.
गांव के स्कूल से की पढ़ाई
135 वी रैंक हासिल करके जज बनने वाले कासिम बताते है कि मैने सिविल जज की परीक्षा में 135 वी रैंक हासिल की है. मैने गांव में ही यूपी सरकार के स्कूल से कक्षा 1 से 4 तक की पढ़ाई की और कक्षा 4 से कक्षा 6 तक वारसी जूनियर हाई स्कूल में पढ़ाई की. इसके बाद कक्षा 7 से 12 तक मेरी पढ़ाई वर्ष 2011 तक जेड यू इंटर कॉलेज में हुई. जहां वर्ष 2008 में कक्षा 10 में एक बार फेल भी हुए लेकिन वर्ष 2011 तक इस कॉलेज में पढ़ाई करने के बाद मैं अलीगढ़ चला गया और वहा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बीए में दाखिला मिल गया. बीए की पढ़ाई की दौरान ही तैयारी करते हुए उन्होंने 2014 में बीए एलएलबी का एग्जाम क्वालिफाइड किया और एएमयू लॉ फैकल्टी को ज्वाइन किया. 5 साल तक बीए एलएलबी करने के बाद 2019 में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में एलएलएम एग्जाम में ऑल इंडिया 1 रैंक हासिल की. साल 2021 में एलएलएम करने के बाद यूजीसी नेट क्वालीफाई हुआ. इसके बाद दो यूनिवर्सिटी से कॉल आया लेकिन इस दौरान रिजल्ट में 135 रैंक हासिल हुई है.
पिता लगाते हैं ठेला
यूपी लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करके संभल के मोहम्मद कासिम आज भले ही अपने और परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए हौसलों की उड़ान भर चुके है लेकिन जज बनने वाले कासिम का अतीत कांटों से भरा रहा है. जिसको सुनकर शायद हर कोई इसको केवल एक फिल्मी पार्ट ही समझेगा. लेकिन ये कोई रील लाइफ नही बल्कि कासिम की रियल लाइफ का हिस्सा है जोकि कासिम अपने मुंह से बताते है. कासिम बताते है कि मेरे पिता एक वेंडर है और रोड किनारे एक ठेला लगाते है. मेहनत करके वो मुझे पढ़ाते थे और आशा भरी नजर से मुझे देखते थे. हर एतबार से उन्होंने मेरी मदद की और उम्मीद थी कि अगर ये पढ़ जायेगा तो घर परिवार के साथ ही आसपास की भी सूरत बदलेगी क्योंकि इलाका शिक्षा में काफी पिछड़ा हुआ है. जब तक मै सरकारी स्कूल में पढ़ाई करता था तो स्कूल से भाग आता था और फिर पिता जी के ठेले पर प्लेट धोता था. हाथ बटाते बटाते जब मुझे ये लगने लगा कि अब मैं प्लेट धोने के अलावा हलीम बेच भी सकता हूं तो मैंने बेचना भी शुरू कर दिया. साल 2007- 08 से मैंने अपना ठेला लगाना शुरू कर दिया. फिर पेट्रोल पंप के आगे मैं हलीम बेचता था लेकिन 2012 में मेरा सलेक्शन हो जाने के बाद मैं उसको छोड़कर अलीगढ़ चला गया था.
मां ने किया मोटीवेट
कासिम कहते है कि ठेला लगाते लगाते वैसे तो पूरे घर ने मुझे मोटिवेट किया लेकिन इसके लिए सबसे बड़ी मोटिवेटर मेरी मां है. उन्होंने मुझ से इस यकीन से कहा कि तू पढ़ क्योंकि तेरा आज नही तो कल सलेक्शन हो ही जाना है. मैं उनकी उम्मीदों से बहुत डरता था क्योंकि इतनी हाई एक्सपेक्टेशन उन्होंने मुझसे की थी और डर लगता था कि अगर सलेक्शन नहीं हुआ तो मां को कुछ हो न जाए. लेकिन अब लगता है कि उनकी दुआओं में सलेक्शन को छीन लिया हो. आज मैं जज बन गया लेकिन मेरे साथ उम्मीद और दुआएं बहुत थी जिसकी वजह से मैं मैदान में जीत पाया हूं. जज बनने वाले कासिम की मां अनीसा कहती है कि मैं इससे पहले कहती थी कि तू काम कर या ना कर लेकिन पढ़ ले क्योंकि पढ़कर कुछ बनेगा तो हमे भी कुछ मदद मिलेगी. अब मुझे उम्मीद है कि पूरी ईमानदारी के साथ सभी के काम करेगा.
मैं चाहता हूं देश की सेवा करे- पिता
पिता बलि मोहम्मद का कहना है कि मैं अब चाहता हूं की ये देश की सेवा करें. जब ये पढ़ते थे तो हम ठेला चलाकर इनको पढ़ाते थे. इनको पढ़ने का शौक था और हमको पढ़ाने का शौक था. अब देश की सेवा करेंगे और ईमानदारी से इंसाफ करेंगे. जब ये ठेले पर जाते थे तो हमारी प्लेट धोते थे और मदद करते थे.
-अभिनव माथुर की रिपोर्ट