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Ahmedabad Miya-Mahadev: जब गूगल मैप भी छोड़ देता है साथ तब काम आते हैं मिया-महादेव...40 साल से कर रहे लोगों की मदद, अब बेटे बढ़ा रहे विरासत, जानिए इनके बारे में

970 के दशक में एक मुस्लिम व्यापारी हसन सैय्यद और एक हिंदू दर्जी भरत मकानी से मिया-महादेव की दोस्ती की शुरुआत हुई थी. लोगों की मदद के लिए उन्होंन एक पूछताछ केंद्र स्थापित किया है जो लोगों को शहर के अंदर सटीक दिशा-निर्देश देते हैं.

Miya Mahadev ki dosti Miya Mahadev ki dosti

अहमदाबाद के खड़िया में एक जगह है, पंकोर्नका वहां पर मिया-महादेव की दोस्ती की मिसाल दी जाती है. चारदीवारी से घिरे घनी आबादी वाले शहर पंकोर्नका में जहां अक्सर गूगल मैप भी खो काम नहीं करता लोग रास्ते का पता लगाने के लिए मिया-महादेव पूछताछ केंद्र की मदद लेते हैं. इसकी शुरुआत 1970 के दशक में एक मुस्लिम व्यापारी हसन सैय्यद और एक हिंदू दर्जी भरत मकानी ने की थी. हिंदू मुस्लिम दोस्ती की मिसाल कायम करते हुए इस जोड़ी को  मिया-महादेव का नाम दिया गया.

बेटों ने दोबारा शुरू करने की ठानी
उनका पूछताछ केंद्र जोकि एक स्वैच्छिक पहल न केवल स्थानीय लोगों और पर्यटकों को सटीक दिशा-निर्देश देती थी, बल्कि खोया-पाया कार्यालय के रूप में भी काम करती थी. तीन साल पहले, भरत के निधन के बाद, केंद्र बंद हो गया और प्रसिद्ध 'मिया-महादेव की दोस्ती' अचानक समाप्त हो गई. लेकिन कुछ समय बाद भरत के बेटे ने इस खूबसूरत बंधन और दोस्ती की मिसाल को कायम रखने के लिए और पूछताछ केंद्र को चालू रखने के लिए नोबेल नगर में अपना व्यवसाय छोड़कर पंकोर्नका में अपने पिता की सिलाई की दुकान चलाने का फैसला किया.इस तरह से 'मिया महादेव पूछपरछ केंद्र' (Miya Mahadev Poochparachh Kendra)की कहानी का अब सीक्वल है जिसमें तुषार और हारिस क्रमशः अपने पिता भरत और हसन की जगह लेंगे.

यूनेस्को विश्व धरोहर (Unesco World Heritage)शहर अहमदाबाद में, एक मुस्लिम व्यवसायी और एक हिंदू दर्जी की बनाई गई एक खूबसूरत दोस्ती, जो मिया-महादेव की दोस्ती के नाम से लोकप्रिय है ने अब एक ब्रांड का दर्जा पा लिया है.

हसन सैय्यद और भरत मकानी द्वारा शुरू किया गया पंकोर्नका में मिया महादेव पूछपराछ केंद्र, सिर्फ एक सूचना केंद्र से कहीं अधिक है. ये पर्यटकों को गलियों वाले इस शहर में रास्ता बताते हैं. अपनी स्थापना के चालीस साल बाद, यह केंद्र अपने बेटों की बदौलत सांप्रदायिक सद्भाव की आशा की किरण के रूप में खड़ा है. हारिस सैय्यद और तुषार मकानी जिन्होंने फैसला किया है कि वे अपने पिता की तरह ही केंद्र चलाना जारी रखेंगे.

लोकल लोगों ने बताई कई ऐसी घटना
स्थानीय लोग क्षेत्र के सोशल इको सिस्टम में पूछताछ केंद्र के योगदान की कई घटनाओं के बारे में बताते हैं. एक स्थानीय व्यक्ति ने याद करते हुए एक न्यूज वेबसाइट के हवाले से कहा,“एक बार एक बच्चा खो गया था. कुछ स्थानीय लोगों ने उसे पूछताछ केंद्र में जमा कराया, उन्हें यकीन था कि हसन और भरत उसके माता-पिता को ढूंढने में कामयाब होंगे. अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप, उन्होंने उसके परिवार को ढूंढ लिया और शाम तक, उसे अपने माता-पिता को सौंप दिया. ”

मिया-महादेव की दोस्ती धार्मिक बंधनों से परे चली गई है और उस क्षेत्र में सद्भाव के प्रतीक के रूप में चमकी, जहां अक्सर दंगे होते थे. मिया महादेव पूछपरछ केंद्र' नाम हमारे शहर की मुस्लिम और हिंदू छवि के मेल का प्रतीक है. हारिस के लिए, मिया-महादेव एक "ब्रांड" के रूप में विकसित हुआ है जो हसन और भरत द्वारा साझा किए गए मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है. स्थानीय लोगों ने हसन और भरत के नाम पर इसे उपनाम दिया है. हारिस कहते हैं, ''हम उनकी दोस्ती के ब्रांड को बनाए रखने के लिए मिलकर काम करके उनकी विरासत को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.''

तनाव की स्थिति में भी डटे रहे
सांप्रदायिक तनाव की स्थिति में, तुषार और हारिस दोनों को अपनी अंतर-धार्मिक मित्रता के विरोध का सामना करना पड़ता है. हालांकि उन्होंने अपने पिता से जो सीखा है, उस पर कायम रहते हैं. तुषार कहते हैं, “नफरत समाज का नेतृत्व नहीं कर सकती, केवल प्यार और दोस्ती ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है.''अहमदाबाद शहर में सांप्रदायिक दंगों का एक खूनी इतिहास रहा है, लेकिन कभी भी दोनों दोस्तों को निशाना नहीं बनाया गया क्योंकि दोनों समुदायों के स्थानीय लोग बेहतर जानते थे. दोस्त न तो धर्म के आधार पर बंटेंगे और न ही किसी को अपने बीच दरार डालने देंगे.

हारिस कहते हैं, "1980 के दशक में, जब सांप्रदायिक तनाव आम बात थी और 2002 के दंगों के दौरान, मेरे पिता और भरत चाचा एक-दूसरे के साथ खड़े थे और गुस्साई भीड़ को पीछे हटने के लिए मजबूर कर रहे थे." इसी तरह, जब महामारी आई, तो तुषार और हारिस को एहसास हुआ कि वे अपने पिता की तरह कितने बन गए हैं. दोनों ने एक-दूसरे की भलाई सुनिश्चित करते हुए जुड़े रहने के तरीके ढूंढे.

तस्वीर पर नहीं चढ़ाने देते माला
हारिस ने बताया कि भरत को गर्दन का कैंसर था फरवरी 2020 में वो इससे लड़ाई करते करते हार गए और उनका निधन हो गया. इसके बाद से हसन ने दुकान पर जाना बंद कर दिया क्योंकि वह बुरी तरह टूट गए थे. हारिस कहते हैं, ''अब भी, जब कोई उनसे भरत अंकल के बारे में पूछता है, तो वह रोने लगते हैं.'' तुषार कहते हैं,“हसन चाचा ने हमें कभी भी मेरे पिता की तस्वीर पर माला नहीं चढ़ाने दी. उनके लिए, मेरे पिता अभी भी जीवित हैं, और उनकी दोस्ती अभी तक खत्म नहीं हुई है. ”

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