हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के छोटे से गाँव गढोग के 40 साल के राजेश कुमार की कहानी कुछ अलग ही है, जिन्होंने बिना कहीं से सीखे अपने आप खराब और बेकार लकड़ियों पर कारीगरी करके उन्हें ऐसा बना दिया कि कोई भी एक बार देख ले तो उसके मुख से अपने आप तारीफ़ निकल जाए.
तस्वीरों में दिख रही इन नाकाशियों और कारीगिरी को देखकर आप एक बार नहीं कई बार अपने आप को इनकी तारीफ करने से रोक नहीं पाएंगे. यह शेर, सांप, ड्रैगन, गणेश, अलग-अलग तरह के शोकेस और सजाने की चीजों को अपने हाथों से बिना किसी से सीखें और प्रशिक्षण लिए बगैर सिर्फ अपनी कल्पना और मेहनत से राजेश कुमार ने तैयार किया गया है. ये सभी नाकाशियों को सिर्फ अपने हाथों से बारीक नोक धार ब्रश नुमा आज़ारों से घंटों बैठकर एकाग्रता से तैयार किया है.
खराब लकड़ियों को बनाते बहुमूल्य
19 साल की आयु से ही राजेश ने शौकिया तौर पर सड़क किनारे खराब और घरों में जलाने के काम आने वाली लकड़ी पर अपनी कल्पना से ऐसी नकाशियां और कारीगरी की कि हर कोई देखते ही रह जाता है. राजेश कुमार ने आज तक और इंडिया टुडे से खास बातचीत में बताया कि कहते हैं ना एक शौक पूरा करना बड़ी चीज होती है और हर कोई अपना शौक पूरा नहीं कर पाता. कई बार शौक पूरा करने के लिए जुनून और पागलपन का होना भी बहुत जरूरी होता है और वही आपको दुनिया में भीड़ से अलग कर देती है. राजेश कुमार बताते हैं कि जब भी वह हाथों में ब्रश नुमा तेज औज़ार लेते हैं, तो कैसे खुद ब खुद उनके दिमाग में कल्पना के असंख्य घोड़े दौड़ने शुरू हो जाते हैं और फिर कल्पना की परछाई को वह कलाकारी करके उन लकड़ियों पर छाप देते हैं.
दो दशक पहले की शुरुआत
राजेश कुमार ने बताया कि जंगल में आम तौर पर सड़क और रास्ते के किनारे पड़ी लकड़ी को बेकार समझकर या तो ईंधन(जलाने) के लिए इस्तेमाल किया जाता है या फिर वहां से उठाकर कहीं और फेंक दिया जाता है. लेकिन जब भी वह उन लकड़ियों और उसकी आकृति को देखते थे, तो वह उसकी आकृति को देखकर बहुत प्रभावित हो जाते थे. उन्होंने शौकिया तौर पर लगभग दो दशक पहले इसकी शुरुआत की थी.
सभी पेड़ों की लकड़ियों पर किया काम
खास बात यह है कि राजेश कुमार यह तमाम कलाकारी सिर्फ उन्हीं लकड़ियों पर करते हैं जो जंगल में टूट गई हो या फिर उन लकड़ियों को खराब समझकर लोगों ने फेंक दिया हो. राजेश बताते हैं कि हिमाचल में अधिक संख्या में पाया जाने वाले सभी वृक्षों की लकड़ियों पर ये काम किया है. जैसे ब्यूल की जड़ का सांप बनाया हुआ है. जड़ों का ड्रैगन बनाया है, उसकी बॉडी को वास्तविकता देने के लिए टिम्बर के कांटे लगाए हैं. तेंदुआ, टिम्बर की लकड़ी का मगरमच्छ, जड़ों का शो केस, मोर, चमच, कड़छी और मंदिर जैसे बहुत से उत्पाद बनाए हुए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि लकड़ी की यह व्यवस्था वे गांव में ही करते है और गांव में कोई शादी या कार्यक्रम में इस्तेमाल होने वाली लकड़ी में से ही कुछ पीस ले लेते हैं.
राजेश कुमार ने आजतक को बताया कि घर और परिवार चलाने के लिए उन्हें ज्यादातर समय खेती करनी पड़ती है, जिसकी वजह से वह पूरी तरह से इसमें अपना समय नहीं दे पाते, लेकिन जब भी बारिश या बरसात की वजह से वो खेतों में नहीं जा पाते तो फिर घंटों बैठकर इसमें पूरी शिद्दत और मेहनत से जुट जाते हैं.
म्यूजियम में सहेज कर रखना चाहते सामान
राजेश कुमार बताते हैं कि अब वह इस कला को अपने परिवार के सदस्यों के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी सिखा रहे हैं, जिससे यह कला आगे बढ़ सके. राजेश चाहते हैं कि उनके द्वारा तैयार यह सारा उत्पाद और सामान वह एक म्यूजियम में सहेज कर रख सकें जिससे लोग उसे निहार सके और इस कला को देख सकें. खास बात इन तमाम उत्पाद की यह है कि राजेश कुमार इनको पैसों के लिए बेचते नहीं है और उसे सहेज कर रखते हैं.