उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग के सौड़ उमरेला गांव की रहने वाली बबीता रावत मात्र 13 साल की उम्र से अपने परिवार को संभाल रही हैं. उन्होंने बहुत कम उम्र में अपने पिता को खोने के बाद खेती करने का फैसला किया और आज उत्तराखंड के अपने सुदूर पहाड़ी गांव में सैकड़ों लोगों को रोजगार पाने में मदद कर रही हैं.
बबीता सिर्फ 13 वर्ष की थी, जब उनके पिता का बीमारी से निधन हो गया. इसके बाद, उनके पास दो विकल्प थे- एक तो अपने पिता के साथ इस दुनिया को छोड़ना या दुनिया को यह साबित करना कि अगर कुछ करने का जुनून हो तो कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं है. अब 27 साल की बबीता लोगों के लिए मिसाल से कम नहीं हैं.
पिता की मौत के बाद संभाली खेती
बबीता और उनके सात भाई-बहनों सहित नौ लोगों का परिवार है. लेकिन 2009 में, उनका स्वास्थ्य खराब हो गया, जिस कारण परिवार को गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इस संकट के क्षण में, बबीता ने न सिर्फ अपनी शिक्षा पूरी की ब्लकि उन्होंने अपने युवा कंधों पर अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी को भी उठाया.
13 साल की उम्र में, उन्होंने खेतों में हल चलाया. इसी खेती की आय से उनके घर का खर्च चलता था. बबीता का जीवन अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तरह कभी भी आरामदायक नहीं था, लेकिन उनका हौसला कभी नहीं टूटा. हर सुबह, खेतों की जुताई करने के बाद, पांच किलोमीटर पैदल चलकर इंटर कॉलेज रुद्रप्रयाग जाती थी. वह साथ में दूध लेकर जाती थीं जिसे वह घर लौटने से पहले बेच देती थीं.
100 से ज्यादा लोगों की मदद
आज बबीता अपने खेतों में लगभग सभी प्रकार की सब्जियां पैदा करती हैं और पिछले दो वर्षों से वह अपने सीमित संसाधनों के बावजूद मशरूम की खेती पर भी काम कर रही हैं. वह अब 100 से ज्यादा ग्रामीणों को आय और आजीविका का साधन दे रही हैं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कृषि के माध्यम से रोजगार की दिशा में आगे बढ़ने और उत्तराखंड की महिलाओं को प्रेरित करने के लिए बबीता रावत को 'सफल उद्यमी पुरस्कार' से सम्मानित किया है.