
Crorepati Kisan: हमारे देश में सदियों से खेती को घाटे का सौदा माना जाता रहा है लेकिन आज के समय में ऐसा कहना सही नहीं है. कई किसानों ने अपनी मेहनत और नई तकनीकि को अपनाकर खेती में भी सफलता का झंडा गाड़ दिया है.
इसका जिता जागता उदाहरण हैं राजस्थान के 60 साल के किसान अमर सिंह. जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से आंवला की खेती के जरिए न केवल अपनी इनकम बढ़ाई, बल्कि गांव में रोजगार और महिला सशक्तिकरण की भी मिसाल पेश की है. आइए जानते है कैसे 1997 में आंवला के फायदों के बारे में जानने के बाद उन्होंने इसकी खेती की और धीरे-धीरे मुरब्बा बनाने के बिजनेस में कदम रखा. आज उनकी मेहनत और लगन से उनकी सफलता की कहानी पूरे राजस्थान में मशहूर हो गई है.
ऐसे आया आंवला की खेती करने का विचार
भरतपुर जिले के पेंघोरे गांव निवासी अमर सिंह शुरू में ऑटो चलाते थे. उनके पिताजी खेती करते थे. अमर को ऑटो चलाने में मन नहीं लगता था. 1997 में एक कृषि प्रदर्शनी में आंवला खेती के फायदे जानने के बाद अमर सिंह ने अपने खेतों में आंवला के पेड़ लगाने का फैसला किया. इससे पहले, उनकी जमीन पर आलूबुखारे के पेड़ थे. उन्होंने भरतपुर जिले के बागवानी विभाग से 1,200 रुपए में 60 आंवला के पौधे खरीदे और 2.2 एकड़ उपजाऊ जमीन पर लगाए. एक साल बाद उन्होंने 70 और पौधे खरीदे और अपने खेत में लगाएं. 4-5 साल में उनके पेड़ फल देने लगे. कुछ पेड़ों ने 5 किलो और कुछ ने 10 किलो तक फल दिए. इससे उन्हें सालाना 7 लाख रुपए की आमदनी होने लगी. इसके साथ ही उन्होंने मटर, टमाटर, बैंगन और अन्य सब्जियों की भी खेती शुरू कर दी.
ऐसे शुरू किया मुरब्बा का बिजनेस
आंवला के फल शुरू में ₹2 से 3 प्रति किलो बिकते थे, लेकिन मुरब्बा ₹10 प्रति किलो से अधिक में बिकता था. ये देखकर अमर सिंह ने 2007 में मुरब्बा बनाने का काम शुरू कर दिया. उन्होंने भरतपुर के मुरब्बा फैक्ट्रियों में जा कर मुरब्बा बनाना सीखा. 2005 में 5 लाख रुपए लगाकर उन्होंने खुद की फैक्ट्री शुरू की. उन्होंने अपनी फैक्ट्री में उत्तर प्रदेश के हाथरस से 25 मजदूरों को काम पर रखा.
उन्होंने पहले साल में 7,000 किलो मुरब्बा तैयार किया. मार्केटिंग के लिए उन्होंने गांव-गांव घूमकर प्रोडक्ट को बेचा. धीरे-धीरे उन्होंने भरतपुर के बड़े ट्रेडर्स से भी संपर्क बनाए और उन्हें मुरब्बा सप्लाई करना शुरू किया. सिंह ने गांव की महिलाओं को मुरब्बा बनाने के काम में रोजगार भी दिया. उनका यह कदम महिला सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण बन गया.
धीरे-धीरे पूरे राजस्थान में उनका मुरब्बा हो गया फेमस
अमर सिंह ने अमृता नाम से अपना मुरब्बा राज्य में जगह-जगह बेचना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उनके प्रोडक्ट राजस्थान के कई जिलों जैसे कुम्हेर, भरतपुर, टोंक, दीग, मंडावर और महुआ में भी लोग पसंद करने लगे. अमर सिंह अपने प्रॉफिट का 40% खेती में नई टेक्नोलॉजी लाने में इन्वेस्ट करने लगे. उन्होंने अपने खेत में सोलर यूनिट, कंपोस्ट पिट और गोबर गैस प्लांट भी स्थापित किया. 2012 में उन्होंने अपने यूनिट को "अमर मेगा फूड प्राइवेट लिमिटेड" के नाम से रजिस्टर्ड कराया. आज उनकी कंपनी खेती, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन में काम करती है.
बकरी पालन में भी आजमाया हाथ
अमर सिंह ने आंवला प्रोसेसिंग से अच्छी इनकम होने के बाद बकरी पालन में भी हाथ आजमाने का फैसला किया. उन्होंने 10 बरेरी नस्ल की बकरियां खरीदीं. ये विचार उन्हें तब आया जब उन्होंने गलती से अपने बेटे के स्मार्टफोन पर बकरी पालन से जुड़ा एक वीडियो देख लिया. हर साल 26 लाख रुपए का बिजनेस करने के बावजूद अमर सिंह जमीन से जुड़े हुए और सरल स्वभाव के हैं. उनकी कहानी न केवल मेहनत का प्रतीक है बल्कि यह भी सिखाती है कि बदलाव और इनोवेशन से कैसे सफलता पाई जा सकती है. आज वह कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.