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Success Story: 80 रुपए से करोड़ों तक का सफर, जानिए गौपालन से कैसे बदली किस्मत, अब खुद मार्केटिंग गुरु बना यह सातवीं पास किसान

गोंडल में गिर गौ जतन संस्थान संगठन के संचालक रमेशभाई रूपारेलिया सैकड़ों गायों वाली गौशाला का प्रबंधन करते हैं. गाय का दूध बेचने के बजाय, वह इसका उपयोग घी, छाछ, गोबर और गोमूत्र बनाने में करते हैं, जिससे वह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

Rameshbhai Rupareliya (Photo: Twitter) Rameshbhai Rupareliya (Photo: Twitter)
हाइलाइट्स
  • 80 रुपए से शुरू हुआ था सफर 

  • गौशाला ने बदल दी किस्मत 

कहते हैं कि आसमान में भी छेद हो सकता है कोई एक पत्थर तबियत से उछाले तो सही... यह बात गुजरात के रमेशभाई रुपारेलिया पर एकदम सटीक बैठती है. क्योंकि रमेशभाई ने लगभग नामुमकिन काम को मुमकिन करके दिखाया है. एक समय था जब उनका बाल-बाल कर्जें में डूबा हुआ था और आज एक समय है जब वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा और रोजगार की राह बने हुए हैं. और यह सब संभव हो पाया है उनकी लगातार सीखते रहने की चाह और मेहनत करने की लगन के कारण. 

आज रमेशभाई राजकोट जिले के गोंडल से कुछ किमी दूर वोरा कोटड़ा रोड़ पर गौ जतन संस्थान चला रहे हैं. यह संस्थान गौसेवा का घर है जहां रमेशभाई सैकड़ों गायों का पालन करते हैं. यहां पर गायों के दूध को प्रोसेस करके कई शुद्ध उत्पाद तैयार होते हैं जिन्हें आगे मार्केट किया जाता है. उनके उत्पाद विदेशों तक भी पहुंच रहे हैं और उनकी कमाई के बारे में सुनकर तो आप हैरान रह जाएंगे. हालांकि, उनकी कहानी शुरू होती है गांव के एक गरीब परिवार में जहां दो वक्त की रोटी के लाले थे. 

80 रुपए से शुरू हुआ था सफर 
मीडिया में दिए कई इंटरव्यूज में रमेशभाई ने बताया है कि वह और उनका परिवार साल 1990 के पहले तक मजदूरी करके पेट पालता था. उनके माता-पिता खेतों में मजदूरी करते थे. बहुत ही कम उम्र में उन्होंने भी दूसरों की गायों को चराने का काम शुरू किया. इस काम के लिए उन्हें 80 रुपए की मजदूरी मिलती थी. समय के साथ उन्हें समझ आया कि ज्यादा आजिविका के लिए उन्हें कुछ और काम भी करना पड़ेगा. ऐसे में उन्होंने खेती करने का फैसला लिया. हालांकि, उनके पास अपनी जमीन नहीं थी तो उन्होंने किराए पर एक जमीन का टुकड़ा लिया और खेती शुरु की. 

उनके पास रसायनिक उर्वरक खरीदने के पैसे नहीं थे तो ऐसे में उन्होंने गांव में इधर-उधर से गोबर इकट्ठा करके खाद बनाना शुरू किया और इसे खेतों में इस्तेमाल करते थे. कुछ सालों में इस गोबर आधारित खेती से रमेश भाई को प्रोफिट मिलने लगा. लगातार जैविक खेती करने से जमीन भी उपजाऊ हो रही थी. इससे हुए मुनाफे से उन्होंने खुद की जमीन भी खरीदी. रमेशभाई समझ चुके थे कि गाय किसानों के लिए वरदान है इसलिए उन्होंने गौशाला बनाने का फैसला किया. 

गौशाला ने बदल दी किस्मत 
रमेशभाई ने धीरे-धीरे गौशाला शुरू की और साथ में जैविक खेती करते रहे. जैसे-जैसे उनकी गायों की संख्या बढ़ने लगी, वह इनके दूध से घी बनाने लगे. पहले वह आसपास के गांवों और शहरों में साइकिल पर घी रखकर बेचते थे लेकिन फिर समय के साथ उन्होंने डिजिटल मार्केटिंग को समझा. उन्होंने अपनी वेबसाइट शुरू की और खुद कंप्यूटर चलाना सीखकर ऑनलाइन मार्केटिंग शुरू की. सोशल मीडिया ने उनके बिजनेस को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई. आज वह खुद का यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं. 

समय के साथ उनके प्रोडक्ट्स न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर हुए. आज उनका घी 123 देशों में सप्लाई हो रहा है. उनकी गौशाला में 150 गाय हैं और जिनसे उन्हें गर्मी में गर रोज 250 लीटर तो सर्दियों में 325 से 350 लीटर दूध मिलता है. वह पिछले कई सालों से दूध की एक बूंद भी नहीं बेचते हैं बल्कि इससे छाछ और शुद्ध घी बना रहे हैं. क्वालिटी और किस्म के आधार पर उनके घी की कीमत 600 रुपए से लेकर 10-15 हजार रुपए प्रति किलो तक जाती है. वह जड़ी-बूटी यूक्त घी भी बनाते हैं. आज उनका टर्नओवर करोड़ों में है. इसके साथ ही वह लाखों लोगों को जैविक खेती और गौपालन की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं.