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Success Story of Farmer Mahesh Pipariya: ऑर्गेनिक फार्मिंग से चमकी किस्मत! यह किसान सिर्फ फूल बेच कमा रहे हर साल लाखों रुपए, जानिए सफलता की कहानी

Organic Farmer Mahesh Pipariya: गुजरात के किसान महेश पिपरिया ने अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से यह साबित कर दिया है कि खेती करके भी हर साल लाखों रुपए कमाया जा सकता है. आज वह पारंपरिक खेती को छोड़कर जैविक खेती कर सलाना 50 लाख रुपए से अधिक की कमाई कर रहे हैं.

Success Story of Farmer Mahesh Pipariya Success Story of Farmer Mahesh Pipariya
हाइलाइट्स
  • महेश पिपरिया रहने वाले हैं गुजरात स्थित राजकोट के

  • जैविक खेती में मिसाल कर चुके हैं कायम 

Success Story of a Farmer: खेती करके भी आप हर साल लाखों रुपए कमा सकते हैं. जी हां, ऐसा गुजरात के एक किसान ने कर दिखाया है.

राजकोट निवासी किसान महेश पिपरिया (Farmer Mahesh Pipariya) ने पारंपरिक खेती में मुनाफा नहीं होते देख ऑर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming) में अपनी किस्मत आजमाई और सिर्फ फूल की खेती कर वह हर साल लाखों रुपए कमा रहे हैं. आज वह गुलाब, गेंदा फूल, अमरूद, चुकंदर, व्हीट ग्रास की भी जैविक खेती कर रहे हैं. इन्हें भी देश-विदेश में बेचकर काफी मुनाफा कमा रहे हैं. आइए जानते हैं प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया की सफलता की कहानी. 

पारंपरिक खेती से जुड़ा था परिवार 
महेश पिपरिया का पूरा परिवार पहले पारंपरिक खेती से जुड़ा हुआ था. उनके परिवार के लोग मूंगफली, कपास, गेहूं जैसी फसलों की सामान्य खेती करते थे. महेश पिपरिया भी घर वालों का हाथ खेती में बटाने लगे. महेश को जब चार सालों तक इस तरह की पारंपरिक खेती करने के बाद लगने लगा कि  ऐसे बहुत लाभ होने वाला नहीं है. इस तरह की खेती करने से किसी तरह जीविका चल सकती है. यदि खेती से मुनाफा कमाना है तो कुछ अलग तरीका खोजना होगा. उन्होंने परंपरागत खेती को छोड़ फूलों की जैविक खेती शुरू करने की ठानी. इसमें उन्हें मुनाफा होने लगा.

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कड़ी मेहनत का मिला फल
महेश पिपरिया को कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का फल मिला. आज वह जैविक खेती में मिसाल कायम कर चुके हैं. आपको मालूम हो कि ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती, खेती करने का एक ऐसा तरीका है, जिसमें रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. ऑर्गेनिक फार्मिंग के तहत उपजी फसल की पूरी दुनिया में काफी मांग रहती है. महेश पिपरिया आज 22 एकड़ के सर्टिफाइड ऑर्गेनिक फार्म के मालिक हैं.

उन्होंने फूलों की खेती से धीरे-धीरे अपने फार्म का आकार काफी बढ़ाया है. आज वह गुलाब, गेंदा, अमरूद के पत्ते की जैविक खेती कर रहे हैं. इनकी वैश्विक बाजारों में बहुत मांग है. आज महेश अपने खेत की उपज को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्यात करते हैं. इससे उन्हें हर साल 50 लाख रुपए से अधिक की कमाई होती है. इस तरह से महेश पिपरिया ने यह साबित कर दिया है कि सही दिशा में कड़ी मेहनत और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके छोटे किसान भी खेती में सफलता का झंडा लहरा सकते हैं.

ऐसे करते हैं गुलाब की खेती 
महेश पिपरिया अपने 22 एकड़ के सर्टिफाइड ऑर्गेनिक फार्म के सबसे अधिक क्षेत्र में गुलाब की खेती करते हैं. उन्होंने 10 एकड़ जमीन पर गुलाब की खेती की है. उन्होंने अपने खेतों में देसी किस्म के गुलाब के पौधे लगाए हैं, जो पूरे साल फूल देते हैं. महेश पिपरिया के मुताबिक गुलाब की खेती के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई-अगस्त या फिर फरवरी-मार्च का महीना होता है. गुलाब की एक बार खेती करने के बाद इन पौधों से पांच साल तक फूल आते हैं, जिससे यह एक फायदेमंद व्यवसाय बन जाता है. महेश के गोकुल वाडी ऑर्गेनिक फार्म के तहत उगाए गए फूलों की पंखुड़ियां विदेशों में बिकती हैं, जिससे उन्हें वाजिब मूल्य मिलता है.

गुलाब लगाने के लिए इस विधि का करते हैं इस्तेमाल 
महेश पिपरिया गुलाब लगाने के लिए स्टेम कटिंग विधि यानी कलम विधि का इस्तेमाल करते हैं. वह नर्सरी से गुलाब के पौधों को खरीदते हैं और फिर इसे अपने खेतों में लगाते हैं. प्रत्येक एकड़ में 2200 से लेकर 2500 गुलाब के पौधे लगाए जाते हैं. ये गुलाब के पौधों तीन फीट की दूरी पर और पंक्तियों के बीच पांच फीट की दूरी पर लगाए जाते हैं. महेश के खेत के गुलाब उन कंपनियों के बीच लोकप्रिय हैं, जो हर्बल चाय बनाने के लिए गुलाब की पंखुड़ियों का उपयोग करती हैं.

महेश सीधे गुलाब के फूलों को बेचने की बजाय, इनकी पंखुड़ियों को सुखाकर अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों में निर्यात करते हैं. गुलाब की पंखुड़ियां 750 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती हैं. महेश  हर साल 5-6 टन गुलाब की पंखुड़ियों का उत्पादन करते हैं. इस तरह से इन्हें बेचकर उन्हें अच्छा-खासा मुनाफा हो जाता है. महेश ऑर्गेनिक मैरीगोल्ड यानी गेंदा का फूल भी उगाते हैं. मैरीगोल्ड फूल को न केवल भारत में बेचते हैं बल्कि इंग्लैंड जैसे देशों में भी निर्यात करते हैं. महेश खुद मैरीगोल्ड के पौधे तैयार करते हैं और उन्हें अपने खेत में लगाते हैं, जिससे हर साल लगभग 1 टन मैरीगोल्ड की पंखुड़ियां पैदा होती हैं. 

अमरूद के साथ इसके पत्तों की भी डिमांड
गुलाब और गेंदा के फूल के अलावा महेश अपने फॉर्म हाउस में अमरूद की भी खेती करते हैं. वह 4 एकड़ में इलाहाबादी और सफेदा किस्म के अमरूद के बाग लगाए हुए हैं. वह अमरूद के साथ इसकी पत्तियों को भी बेचकर अच्छा-खासा मुनाफा हर साल कमाते हैं. महेश का कहना है कि उन्हें अमरूद से ज्यादा इसके पत्तों से आमदनी हो जाती है. वह अमरूद के पत्तों को ड्रायर से सुखाकर यूएस और कनाडा जैसे देशों को निर्यात करते हैं. अमरूद के पत्तों का हर्बल उत्पादों में इस्तेमाल किया जाता है. अमरूद के पेड़ों से हर साल महेश को 6-7 टन पत्तों का उत्पादन मिलता है.

इनकी भी करते हैं खेती 
महेश पिपरिया व्हीट ग्रास यानी गेहूं घास और बीट रूट यानी चुकंदर की भी खेती करते हैं. महेश के फॉर्म हाउस में उपजे गेहूं घास की मार्केट में काफी मांग होती है. चुकंदर की जैविक खेती कर वह काफी लाभ कमाते हैं. महेश फसलों की सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन और परंपरागत सिंचाई पद्धति दोनों को अपनाते हैं. ड्रिप इरिगेशन से पानी की जहां बचत होती है, वहीं फसलों की गुणवत्ता भी अच्छी होती है.  

अच्छा-खासा कमा रहे मुनाफा 
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया अपने फॉर्म हाउस का और विस्तार करना चाहते हैं ताकि उनका सालाना टर्नओवर एक करोड़ रुपए तक हो जाए. महेश आज अपने आस-पास के क्षेत्र में किसानों के लिए आदर्श बने हुए हैं. महेश को देख कई अन्य किसानों ने भी फूलों की जैविक खेती करनी शुरू कर दी है. इससे वे भी अच्छा-खासा मुनाफा कमा रहे हैं.