पिछले कुछ सालों में बहुत से ऐसे युवा हैं जिन्होंने कंपनियों में अपनी अच्छी-खासी नौकरियां छोड़कर कृषि की तरफ रूख किया है. ज्यादातर लोगों की वजह थी प्रकृति से जुड़ना और अपनी जड़ों के करीब रहना. तमिलनाडु में रहने वाले वर्की जॉर्ज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वर्की ने टेक्सास विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स की और छह साल तक अमेरिका में काम किया.
इसके बाद, वर्की जॉर्ज को भारत लौट आए. वतन लौटकर उन्होंने कंपनी में नौकरी करने की बजाय खेती करने का फैसला किया. किसान परिवार से आने वाले वर्की का समय केरल के कूटिक्कल में अपने पैतृक खेतों में बीता है. हालांकि, जब वह अमेरिका में टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स के लिए काम कर रहे थे, तब उनके परिवार ने तमिलनाडु के कोम्बाई में जमीन खरीदी.
पिछले 12 सालों से कर रहे हैं खेती
वर्की ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया कि साल 2011 में उन्होंने जॉब छोड़कर खेती करने का फैसला किया. तब से वह अपनी 170 एकड़ जमीन को संभाल रहे हैं. वर्की अपने खेतों में विदेशी फलों की खेती कर रहे हैं. उन्होंने देखा कि पारंपरिक खेती में ज्यादा मुनाफा उन्हें नहीं मिल रहा है. ऐसे में उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी.
उन्होंने लगभग छह साल पहले अपने और कुछ किसान दोस्तों की मदद से एग्जोटिक फल उगाना शुरू किया. वह तीन एकड़ में लोंगन, सात एकड़ में मेयेर नींबू और अंगूर, छह एकड़ में पैशन फ्रूट की खेती करते हैं और पायलट आधार पर 30 एवोकैडो पौधे लगाए हैं. विदेशी फलों की खेती नारियल, आम, चीकू, अनार और सब्जियों जैसी पारंपरिक फसलों के साथ की जाती है, ताकि विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व पनपें और मिट्टी की उर्वरता में सुधार हो. मैंगोस्टीन, पैशन फ्रूट, ड्रैगन फ्रूट, अंजीर और अन्य जैसे विदेशी फल भारत में तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं.
सही सैपलिंग पर देते हैं ध्यान
वर्की बागवानी के लिए पौधे केरल के कंजारापल्ली से लेते हैं क्योंकि इनकी क्वालिटी अच्छी होती है. फलों के पेड़ों के लिए अच्छी क्वालिटी के पौधे मिलना जरूरी हैं. पौधों की कीमतें 300 रुपये से 600 रुपये तक होती हैं. फलों की खेती में तकनीकी पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है. हर एक फल में विशिष्ट पोषण और पानी की जरूरत होती है. कटाई के पैटर्न अलग-अलग होते हैं. इस सब पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
वह छह एकड़ में पैशन फ्रूट उगाते हैं. पैशन फ्रूट ब्राजील का फल है और भारत में, यह हिमाचल प्रदेश, उत्तर पूर्व और पश्चिमी घाट में उगाया जाता है. उन्होंने पिछले साल पैशन फ्रूट की लगभग 30 टन (30,000 किलोग्राम) उपज ली, औसतन लगभग पांच टन प्रति एकड़. यह 75-85 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा गया. इस दर से पैशन फ्रूट की खेती से प्रति एकड़ 4.25 लाख रुपये की आय होती है.
विदेशी फलों की मिलती हैं अच्छी कीमतें
वर्की का कहना है कि वह 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से एवोकाडो बेचते हैं. उन्हें लोंगन और अंगूर 330 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचने की उम्मीद है. मेयेर नींबू की खुदरा कीमत 330 रुपये से 350 रुपये प्रति किलोग्राम है. देशी फलों की खेती से होने वाला टर्नओवर पारंपरिक फसलों की तुलना में तीन से चार गुना ज्यादा है. वह अपने फल ज्यादातर कोचीन में बेचते हैं और इसके बाद दिल्ली और मुंबई में सप्लाई करते हैं.