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मंडे का सोचकर रविवार की शाम डराने लगती है, जानिए क्यों होता है ऐसा और कैसे निपटें Sunday Scaries से 

संडे स्कैरीज आज की तेज रफ्तार जिंदगी का एक आम पहलू बन चुके हैं. लेकिन इनसे निपटने के उपाय भी हमारे हाथ में हैं. बस थोड़ा-सा खुद पर ध्यान दीजिए, अपनी प्राथमिकताओं को समझिए, और सबसे जरूरी खुद को प्यार दीजिए

Sunday Scaries Sunday Scaries

सोचिए, रविवार की शाम है. चारों तरफ शांति है, लेकिन आपके अंदर एक तूफान चल रहा है. पेट में गड़बड़, दिल में बेचैनी और दिमाग में एक ही ख्याल- "कल फिर वही ऑफिस!" अगर आप भी हर रविवार शाम को ऐसा महसूस करते हैं, तो जान लीजिए, आप अकेले नहीं हैं. इस बेचैनी का नाम है- ‘Sunday Scaries’ यानी ‘रविवार की डरावनी फीलिंग’.

ये वही एहसास है जो रविवार को दोपहर ढलते ही धीरे-धीरे पनपता है और रात होते-होते एकदम सिर चढ़कर बोलने लगता है. और ये कोई फिल्मी ड्रामा नहीं है, बल्कि साइकोलॉजिकल रियलिटी है.

क्या होता है 'Sunday Scaries'?
'Sunday Scaries' उस मानसिक स्थिति को कहते हैं, जब व्यक्ति को रविवार की शाम से ही बेचैनी, चिंता, उदासी या चिड़चिड़ापन महसूस होने लगता है. मन बार-बार यही सोचता है कि सोमवार को क्या होगा बॉस का मूड कैसा होगा, मीटिंग्स कैसे चलेंगी, काम का प्रेशर कैसे झेलेंगे वगैरह-वगैरह.

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New York University की न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट Dr. Susanne Cooperman के मुताबिक, "अगर किसी व्यक्ति को वीकेंड खत्म होने की वजह से उदासी होती है, तो इसमें कोई असामान्य बात नहीं है. लेकिन अगर ये चिंता इतनी बढ़ जाए कि आपकी नींद, फोकस या मानसिक स्थिति पर असर डाले, तो ये चेतावनी है कि आपको मदद की जरूरत है."

क्यों होता है संडे स्कैरीज?
इसका कोई एक कारण नहीं होता. इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं:

  1. वर्कप्लेस स्ट्रेस: अगर आप अपनी नौकरी को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं या कार्यस्थल की परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं, तो रविवार को ही सोमवार की चिंता सताने लगती है.
  2. वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी: अगर आप सप्ताह भर बिना आराम किए काम में डूबे रहते हैं, और वीकेंड में भी काम करते रहते हैं, तो शरीर और दिमाग दोनों थक जाते हैं.
  3. वीकेंड की ओवरबुकिंग: अगर वीकेंड में भी आपने खुद को बहुत व्यस्त रखा हो शॉपिंग, सफाई, रिश्तेदारों से मिलना, तो रविवार शाम तक आप थककर चूर हो जाते हैं.
  4. पेंडिंग टास्क का बोझ: हफ्ते भर का अधूरा काम रविवार को मन में घूमने लगता है.

लक्षण क्या हैं?
अगर आप संडे स्कैरीज से पीड़ित हैं, तो आपमें ये लक्षण हो सकते हैं:

  • रविवार को दोपहर बाद चिड़चिड़ापन, बेचैनी या थकान
  • एक अजीब सा खालीपन, जैसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा
  • ऑफिस के कामों को सोचकर डर या घबराहट
  • नींद ना आना या रात भर करवटें बदलना
  • खुद को शराब या सोशल मीडिया में डुबो लेना

इससे कैसे निपटें?

1. 'अब' में जिएं, भविष्य की चिंता न करें
Dr. Cooperman कहती हैं कि सबसे असरदार तरीका है- अपने वर्तमान में बने रहना. कैटास्ट्रॉफाइजिंग यानी ‘सब कुछ बर्बाद हो जाएगा’ टाइप की सोच से बचें. आप ध्यान (meditation) या रिलैक्सेशन ऐप्स की मदद ले सकते हैं, बस 10-15 मिनट भी काफी हैं.

2. रविवार को मजेदार बनाएं, बोझिल नहीं
रविवार को केवल घरेलू कामों या बोरिंग जिम्मेदारियों में मत डुबोइए. कोई मूवी देखिए, बच्चों के साथ खेलिए, या अपनी हॉबी में वक्त बिताइए. खुद को ऐसा कुछ दीजिए जो आपको "रीचार्ज" कर सके.

3. शारीरिक गतिविधि करें
हल्का-फुल्का योग, वॉक या कोई भी व्यायाम शरीर को रिलैक्स करने में मदद करता है. ताज़ी हवा में थोड़ा समय बिताएं.

4. स्क्रीन से दूरी बनाएं
फोन, लैपटॉप, और खासकर ऑफिस के ईमेल से रविवार को दूरी बनाएं. यह समय है खुद के लिए, न कि मेल चेक करने के लिए.

5. वीक के कामों को बांटें
सभी कामों को रविवार पर मत डालिए. सप्ताह के बाकी दिनों में कामों को थोड़ा-थोड़ा करके निपटाएं ताकि रविवार को "घर की नौकरानी" न बनें.

6. हेल्दी सेल्फ-सूथिंग अपनाएं
शराब या अत्यधिक कैफीन से खुद को शांत करने की आदत से बचें. अगर एक ग्लास वाइन तक ठीक है, पर हर रात जरूरत महसूस हो रही हो तो यह चेतावनी है.

कब लें प्रोफेशनल मदद?
अगर संडे स्कैरीज इतनी बढ़ जाए कि आप सोमवार को बिस्तर से उठ न सकें, चिंता के दौरे पड़ने लगें, नींद गायब हो जाए या सप्ताहांत का आनंद ही खत्म हो जाए तो ये संकेत है कि आपको किसी काउंसलर या साइकोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए.

Dr. Cooperman कहती हैं, “अगर आप इस नकारात्मक चक्र से बाहर नहीं आ पा रहे हैं, और लगातार दुखी रह रहे हैं, तो समय है कि आप प्रोफेशनल मदद लें.”

संडे स्कैरीज आज की तेज रफ्तार जिंदगी का एक आम पहलू बन चुके हैं. लेकिन इनसे निपटने के उपाय भी हमारे हाथ में हैं. बस थोड़ा-सा खुद पर ध्यान दीजिए, अपनी प्राथमिकताओं को समझिए, और सबसे जरूरी खुद को प्यार दीजिए