एक जमाना था जब लोगों के लिए खेती घाटे का सौदा थी और हर एक किसान परिवार चाहता था कि उनका बच्चा अच्छा पढ़-लिखकर नौकरी करे. लेकिन आज तस्वीर बदल रही है. कुछ मेहनती और प्रगतिशील किसानों ने साबित किया है कि अगर सही तरीके से खेती की जाए तो खेती में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. बहुत से अच्छे पढ़े-लिखे और लाखों की नौकरी करने वाले आज खेती से जुड़ रहे हैं तो वहीं, कुछ लोग रिटायरमेंट के बाद वापस अपने खेतों की ओर लौट रहे हैं. इस फेहरिस्त में एक नाम सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील हरविंदर सिंह फूल्का की भी है जिन्होंने एक मुहिम छेड़ी है.
एडवोकेट फूल्का ने बरनाला जिले के अपने पैतृक गांव भदौड में खेती का नया मॉडल अपनाया है और गेहूं समेत कई फसलें आज वह उगा रहे हैं. खेती की फगवाड़ा विधि अपनाकर एडवोकेट फूल्का पानी की बचत कर रहे हैं और कम लागत में खेती से ज्यादा आय भी कमा रहे हैं. उन्होंने बताया कि खेती का यह तरीका पारंपरिक खेती से बिल्कुल अलग है.
क्या है खेती की फगवाड़ा तकनीक
फगवाड़ा तकनीक में हर फसल को बैड बनाकर लगाया जाता है, जिससे पानी की खपत बहुत कम होती है और फसलों की पैदावार भी अधिक होती है. इस विधि से एक ही खेत में एक बार में दो से पांच फसलें लगाई जा सकती हैं. एक खास बात यह है कि फूल्का ऑर्गनिक तरीकों से फसल उगा रहे हैं. उनकी फसल को किसी भी तरह के रासायनिक खाद और स्प्रे की जरूरत नहीं पड़ती है. जिस कारण उनकी खेती की लागत भी बहुत कम आती है.
उन्होंने अपने खेत में लगी गेहूं के साथ चने की फसल भी लगाई है जिससे उन्हें अच्छा उत्पादन मिलने की उम्मीद है. एडवोकेट फूल्का ने कहा कि पंजाब की जमीन बंजर होने लगी है, जिसे बचाने के लिए आज सही कदम उठाने की जरूरत है. फगवाड़ा खेती पद्धति से किसान पानी बचा सकेंगे और कम लागत में ज्यादा आय प्राप्त कर सकेंगे.
एक खेत में लगाएं कई फसलें
एडवोकेट फूल्का ने कहा कि आने वाली पीढ़ियों और परिवार की खुशहाली के लिए खेती की इस पद्धति को अपनाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में पंजाब के किसान अपनी जमीन के कुछ हिस्से में इस विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस फगवाड़ा मॉडल से सिर्फ गेहूं ही नहीं बल्कि अन्य सभी फसलें भी बोई जा सकती हैं. उन्होंने बताया कि इस विधि से मक्की, नरमा, कपास, गन्ना, सब्जियां व धान भी लगाया जा सकता है.
धान की फसल में सबसे ज्यादा पानी की खपत होती है. इस विधि से जहां धान रोपने की लागत बचेगी, वहीं पारंपरिक विधि की तुलना में पानी भी बहुत कम लगेगा. इसके साथ ही धान की पराली की समस्या का भी समाधान है. क्योंकि धान की पराली को खेत में जोतकर सीधे गेहूं की बुआई की जा सकती है, जिससे भविष्य में गेहूं की फसल अच्छी होगी. उन्होंने कहा कि पंजाब के किसान उनके खेतों में आकर यह मॉडल देख सकते हैं.
वह इस विधि से गेहूं की फसल के साथ चने, मसर और मेथी की उपज ले रहे हैं. इसी प्रकार गन्ने के खेत में गेहूं बोया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस विधि की जानकारी के लिए फगवाड़ा खेती मॉडल बनाने वाले डॉ. अवतार सिंह की एक पुस्तिका भी प्रकाशित की गई है, जिसे पढ़कर किसान इसका लाभ उठा सकते हैं.
(आशीष शर्मा की रिपोर्ट)