आज का युगबेहद ही अलग है. इस युग में इंसान अपनों की मदद करने से पहले कई बार सोचता है. ऐसे में प्रति दिन देश के अलग अलग जगहों से ऐसे वाकये सामने आते हैं, जहां पर जानवरों को मारने और उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आती हैं. इंसान तो अपने दुख-दर्द जाहिर कर सकता है, लेकिन बेज़ुबान जानवर ना ही बोल पाता है. ना ही जाहिर कर पाता है. लेकिन कहते हैं तो दुनिया से इंसानियत अभी भी खत्म नहीं हुई है. कुछ लोग ऐसे हैं जो दूसरों के लिए भी जीते हैं. मुंबई से सटे वसई में 22 साल की हरसिमरन वालिया और उनका पूरा परिवार 100 से अधिक बेजुबानों की देखभाल करता है.
मुंबई में रहने वाली 22 साल की हरसिमरन वालिया अपने घर में सड़क पर घायल हुए जानवरों के लिए रेस्क्यू सेंटर चलाती हैं. उनका पूरा परिवार 100 बेजुबान जानवरों के साथ रहता है. हरसिमरन जब 5 साल की थीं, तभी से सड़क पर घायल या फंसे हुए लाचारों के प्रति उनके मन में हमदर्दी थी और तब से ही वह रेस्क्यू का काम कर रही हैं. जानवरों की देखभाल के लिए हरसिमरन ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी. उनके परिवार को अपना घर भी बेचना पड़ा.
हरसिमरन वालिया और उनके परिवार के साथ तकरीबन 100 से ज्यादा कुत्ते, 10 से ज्यादा बिल्लियां, कुछ कछुए रहते हैं. इनके खाने पीने से लेकर उनकी दवाई का खर्च भी हरसिमरन वालिया और उनका परिवार उठाता है. साथ ही लोगों के डोनेशन से भी इन्हें मदद मिलती है. शुरुआत के दिनों में जब हरसिमरन घायल जानवरों को घर लाती थीं उस कॉलोनी के लोगों को ये पसंद नहीं था.
हरसिमरन वालिया और उनका परिवार हरदिन 4000 से ज्यादा रुपया इन जानवरों की देखभाल में खर्च करता है. ऐसे में शहर से दूर रहने के बावजूद भी इनको काफी दिक्कतों सामना करना पड़ता है. जिस गांव के इलाके में वह रहते थे वहां पर उन्हें काफी मुश्किल होती थी. वहां के लोग इस काम को खराब मानते हैं लेकिन हरसिमरन वालिया और उनका परिवार लगातार बेज़ुबानों की मदद के लिए तैयार रहता है.