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Stubble Burning: ये है पराली से होने वाले प्रदूषण का परमानेंट समाधान, गेहूं और धान के अवशेषों से बनाया बायो फर्टिलाइजर

धान और गेहूं के जो अवशेष बचते हैं उसे किसान जल्दी नई फसल खेतों में लगाने के चक्कर में और कम खर्चे के चक्कर में जला देता हैं. जिससे न सिर्फ वायु प्रदूषण या फिर मिट्टी खराब होती है बल्कि उसके और भी कई दुष्प्रभाव सामने आते हैं. लेकिन अब इसका समाधान निकाला जा चुका है.

Stubble Burning Stubble Burning
हाइलाइट्स
  • हर साल किया जाता है किसानों को जागरूक 

  • निकाला है नया समाधान 

पंजाब और हरियाणा के खेतों में अक्टूबर के बाद जलने वाली पराली दिल्ली तक धुंआ और प्रदूषण करती है. हर साल इन महीनों में राजधानी गैस चैंबर का रूप ले लेती है, जिस पर हर साल राज्य सरकार कड़ा रुख अपनाती है और किसानों पर कड़े नियम भी लागू करती है. लेकिन फिर भी अभी तक इसका कोई भी ठोस हल नहीं निकल पाया है. अब मोहाली के CIAB (Centre of Innovative and Applied Bioprocessing) ने धान और गेहूं के अवशेष जिसे पराली कहते हैं, उसका हल निकाला है. ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर है, साथ ही किसानों की आय भी दोगुनी हो जाएगी.

हर साल किया जाता है किसानों को जागरूक 

धान और गेहूं के जो अवशेष बचते हैं उसे किसान जल्दी नई फसल खेतों में लगाने के चक्कर में और कम खर्चे के चक्कर में जला देता हैं. जिससे न सिर्फ वायु प्रदूषण या फिर मिट्टी खराब होती है बल्कि उसके और भी कई दुष्प्रभाव सामने आते हैं. हर साल किसानों को जागरूक करने के लिए सरकारी चाहे केंद्र की हो या फिर राज्य की इस पर करोड़ों रुपया खर्च करती भी है. लेकिन अभी तक इसका कोई भी स्थाई हल नहीं निकल पाया है. अब मोहाली के CIAB अनुसंधान ने इस पर रिसर्च और आविष्कार करके गेहूं और धान के अवशेषों से बायो फर्टिलाइजर और बायो पेस्टीसाइड तैयार किया है जिससे प्रदूषण भी कम हो सके. साथ ही किसानों को इसका दोगुना लाभ मिल सके..

निकाला है नया समाधान 

डॉ जईता भौमिक ने बताया कि गेहूं और धान के जो अवशेष बचते हैं उसमें सबसे पहले "लिगनेन" निकाला जाता है जो की एंटीऑक्सीडेंट है. उसके बाद बिना किसी रसायन या फिर केमिकल के सिर्फ पानी और अल्कोहल मिलकर "वंडर मॉलिक्यूल" तैयार किए जाते हैं. जिसे बायो फर्टिलाइजर के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है बाद में नीम के साथ मिलकर इसे बायोपेस्टिसाइड के तौर पर भी किसान इस्तेमाल कर सकते हैं. डॉक्टर भौमिक ने बताया कि इसको बनाने की जो लागत है वह काफी कम है क्योंकि किसी भी तरह का कोई भी केमिकल इसमें इस्तेमाल नहीं किया जाता.   साथ में यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक और प्राकृतिक है जो की फसलों पर प्रयोग करने पर उसके अभी तक जो परिणाम सामने आए हैं वह आपको उत्साहित करते हैं.

पराली है एक बड़ी समस्या 

वही अनुसंधान के डायरेक्टर प्रोफेसर अश्विनी पारीक ने बताया कि पराली एक बड़ी समस्या है. लेकिन उनका अनुसंधान गेहूं और धान के बचे अवशेषों पर लगातार काम कर रहा है. जिसके अब सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं. प्रोफेसर पारीक ने बताया कि इन अवशेषों से कम लागत पर बायो फर्टिलाइजर और बायोपेस्टिसाइड तैयार किया गया है और इसका फायदा आम किसानों तक पहुंचे उसको लेकर अनुसंधान ने बाहर इंडस्ट्री के साथ बात करके इस प्रोडक्ट को तैयार करने के लिए झंडी दे दी गई है.