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Integrated Farming System: तालाब में मछली पालन और मेडों पर सब्जियों की खेती, अनोखे आइडिया से बदली युवा किसान की किस्मत

ओडिशा के एक युवा किसान, हिरोद पटेल की हर तरफ चर्चा हो रही है क्योंकि वह अपने खेतों में Integrated Farming System को अपनाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

Hirod Patel, Farmer (Photo: YouTube) Hirod Patel, Farmer (Photo: YouTube)
हाइलाइट्स
  • परंपरागत तरीके से नहीं मिला फायदा

  • सालाना कमा रहे हैं लाखों

आज के जमाने में सिर्फ तकनीकी क्षत्रों में ही नहीं बल्कि कृषि के क्षेत्र में भी तस्वीर बदल रही है. ओडिशा में सुंदरगढ़ के 32 वर्षीय हिरोद पटेल इस मामले में सबके लिए प्रेरणा हैं. सुंदरगढ़ जिले के तंगरपाली ब्लॉक के रतनपुर के इस युवा किसान ने एक इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (आईएफएस) अपनाया है जिसके तहत वह खेत के तालाबों में बागवानी, धान की खेती और मछलीपालन करते हैं. जो बात उनके खेत को अलग बनाती है वह यह है कि वह तालाब की जगह का उपयोग बेल पर लगने वाली सब्जियों के पौधे उगाने के लिए भी करते हैं. 

पटेल एक किसान परिवार से हैं. कई व्यवसायों में हाथ आजमाने के बाद, वह खेती में अपने पिता शिव शंकर की मदद करने के लिए लौट आए. पटेल के कुल 14 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं जिसमें पट्टे पर ली दो एकड़ जमीन शामिल है. इस भूमि में से दस एकड़ का उपयोग फूलों की खेती के अलावा बागवानी, मछली पालन, मुर्गी पालन और डेयरी खेती के लिए किया जा रहा है. खरीफ सीजन में तीन एकड़ में धान की खेती होती है. 

परंपरागत तरीके से नहीं मिला फायदा
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हिरोद पटेल के खेत नीचे है और इस कारण पानी जमने की समस्या है. हालांकि, उनके खेत धान की खेती के लिए बेहतर हैं लेकिन इस फसल में रिटर्न बहुत अच्छे नहीं थे. ऐसे में, जब उन्होंने दूसरी फसलों की ओर रुख करना शुरू किया और एंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम को अपनाने का फैसला किया तो चीजें बेहतर होने लगीं. साल 2019 में, उन्होंने अपने खेतों में कृषि विभाग के मृदा संरक्षण और जलग्रहण विकास विंग की मदद से तीन तालाब खोदे.

ITI करने वाले हिरोद का कहना है कि अन्य क्षेत्रों से वर्षा जल जमा होने के कारण उनकी ज़मीन का एक निचला हिस्सा उपयोग के लायक नहीं था. एक साल पहले, जिला प्रशासन ने मनरेगा के तहत श्रम घटक का उपयोग करके उन्होंने यहां एक आयताकार तालाब बनवाया. 
क्षेत्र का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए, उन्होंने तालाब का मछलीपालन उपयोग करते हुए मेड़ पर खेती करने का विकल्प चुनने का निर्णय लिया. 

छह महीने पहले, उन्होंने मेड़ों (तालाब की सीमा के साथ बनी दीवारों) पर लौकी के 120 पौधे लगाए और 70,000 रुपये की लागत से बेलों के चढ़ने के लिए तालाब के ऊपर जीआई तारों से बनी जाली लगाई. पटेल ने हाल ही में 1,500 लौकी के पहले बैच की कटाई की और उन्हें 35,000 रुपये में बेचा. उपज का दूसरा बैच कुछ ही दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाएगा. वह दो अन्य तालाबों का उपयोग मछली पालन के लिए करते हैं. तालाबों से मछली की पैदावार से उन्हें सालाना अच्छी कमाई होती है.

सालाना कमा रहे हैं लाखों
हिरोद के खेत में 350 नारियल के पेड़, कई केले, बेरी, अमरूद, आम और अन्य पेड़ भी हैं जो जल्द ही फल देंगे. वह चार खेत मजदूरों को रोजगार देते हैं और सालाना 8 लाख से 10 लाख रुपये कमाते हैं, उनका मानना ​​है कि इसे और बढ़ाया जा सकता है. उद्यानिकी विभाग के उपनिदेशक सुकांत नायक ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि खेत के तालाबों के मेड़ों पर विभिन्न बागवानी फसलें उगाने का पैटर्न आम है, लेकिन तालाब के मेड़ों पर बेल वाली सब्जियों के पौधे बोने का तरीका अनोखा है. 

इस साल जुलाई में, हिरोद ने खेत के मेड़ों के दोनों किनारों पर 200 फीट के 120 लौकी के पौधे लगाए. उन्होंने इस मॉडल को अन्य तालाबों में दोहराने और अन्य बेल वाली फसलों के साथ भी प्रयोग करने की योजना बनाई है.