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पंजाब के इस गांव को मिला Best Tourism Award, 125 साल पुरानी हवेलियों से मिली पहचान

अपनी सांस्कृतिक विरासत के कारण गुरदासपुर में यूबीडीसी नहर के तट पर स्थित नवांपिंड सरदारां गांव को केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने प्रतिष्ठित 'सर्वश्रेष्ठ पर्यटन पुरस्कार' से सम्मानित किया है.

The Kothi Haveli The Kothi Haveli
हाइलाइट्स
  • 750 गांवों में से चुना गया 

  • इन हवेलियों ने दिलाया सम्मान

पंजाब में गुरदासपुर जिले के नवांपिंड सरदारां गांव को Best Tourism Award से नवाजा गया है. यह गांव पहली बार तब सुर्खियों में आया जब फिल्म अभिनेता सनी देओल ने 2019 में चुनावों से पहले इस गांव में रहने में दिलचस्पी दिखाई थी. 

देओल के सहयोगियों ने दो दिनों के लिए उनकी यहां रहने की व्यवस्था की थी. हालांकि, अभिनेता और उनके साथियों को यहां के पैतृक घरों, जिन्हें हवेलियां कहते हैं, से इतना प्यार हो गया कि वे लगभग दो महीने तक वहीं रहे. उनके पिता धर्मेंद्र और बॉलीवुड की अन्य जानी-मानी हस्तियां, जो उनके अभियान के दौरान उनके साथ थीं, ने गांव की प्रशंसा की. एक फिल्म निर्माता ने तो यहां तक ​​कह दिया कि वह जल्द ही इन हवेलियों पर फिल्म बनाएंगे. 

750 गांवों में से चुना गया 
आज प्रगति मैदान में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने इस गांव को 'सर्वश्रेष्ठ पर्यटन पुरस्कार' से सम्मानित किया है. यह पुरस्कार संघा बहनों के लिए महत्व रखता है जिन्होंने इन हवेलियों को बनाए रखने के लिए बहुत कड़ी मेहनत की है. 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के कुल 750 गांवों ने पुरस्कार के लिए आवेदन किया था और 35 को शॉर्टलिस्ट किया गया था, जिनमें से नवांपिंड सरदारां टॉप पर रहा. इसमें केवल उन्हीं गांवों को चुना गया, जिन्होंने पर्यटन विभाग के सहयोग से अपनी हवेलियों को संरक्षित किया था. 

इन हवेलियों ने दिलाया सम्मान 
यह गांव शहर से 10 किमी दूर श्री-हरगोबिंदपुर रोड पर यूबीडीसी नहर के किनारे स्थित है. इस गांव की हवेलियां मशहूर हैं. इन हवेलियों- 'कोठी' और 'पीपल हवेली' का निर्माण 125 साल पहले सरदार नारायण सिंह के परिवार ने शुरू कराया था. इसके बाद उनके बेटे सरदार बहादुर बेअंत सिंह आए, जो पंजाब में सहकारी समितियों के संस्थापक भी थे. आज इन कोठियों में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं. 

नारायण सिंह के बाद इन पैतृक घरों की देखरेख की जिम्मेदारी पूर्व वायुसेना अधिकारी गुप्रीत सिंह सांघा और उनकी पत्नी सतवंत सांघा की थी. अब उनकी बहनें हवेलियों की देखभाल करती हैं. इन बहनों में से एक गुरसिमरन सांघा का कहना है कि 125 साल पुराने घर में रहने की दिलचस्प बात यह है कि आज भी इसकी दीवारें जीवंत हैं. ये हवेलियां लोगों की नहीं हैं, बल्कि लोग उनके हैं. 

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