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Hindu Muslim Unity: 48 सालों से रोजेदारों को सहरी के लिए उठा रहा है यह हिंदू शख्स, लोग कहते हैं गंगा-जमुनी तहजीब का रक्षक

उत्तर प्रदेश के एक गांव में एक हिंदू शख्स इंसानियत की मिसाल पेश कर रहा है. रमजान के पाक महीने में रोजेदारों की सेवा करने का उनकी अनोखा तरीको सबके भा रहा है.

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हाइलाइट्स
  • हर दिन घर-घर जाकर उठाते हैं लोगों को 

  • लोगों की दुआएं हैं सबसे बड़ी कमाई

हमारे देश में कई धर्म हैं और आए दिन हम धार्मिक कट्टरता की खबरे सुनते हैं. लेकिन इस सबके बीच ऐसा बहुत कुछ है जो इंसानियत और सद्भावना में आपके विश्वास को मजबूत कर सकता है. आज ऐसी ही एक कहानी हम आपको बता रहे हैं. कहानी है एक हिंदू शख्स और मुस्लिम समुदाय की. यह शख्स सालों से रमजान के पाक महीने में पुण्य कमा रहा है और मुस्लिम समुदाय के लोग खुशी से उसे ये मौका दे रहे हैं. 

पूर्वी यूपी में आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर कस्बे के कौड़िया गांव के रहने वाले गुलाब यादव रमजान के पवित्र महीने में अपने अनोखे अंदाज में रोजदारों की सेवा करते हैं. और इस सेवा से वह आपसी सम्मान की मिसाल कायम कर रहे हैं. 

पिता की विरासत को बढ़ाया आगे 
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की बहुचर्चित गंगा-जमुनी तहज़ीब के रखवाले की तरह गुलाब यादव सहनशीलता और हमदर्दी की मिसाल हैं. साल 1975 में गांव में अपने पिता चिरकिट यादव द्वारा स्थापित 48 साल पुरानी परंपरा का वह स्वेच्छा से पालन करते रहे हैं.

गुलाब, अपने बेटे अभिषेक के साथ, अपने पिता की विरासत को गर्व के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. वह अपने गांव में रहने वाले सभी मुसलमानों को रमजान के महीने में हर दिन 'सहरी' (दिन भर का रोज़ा शुरू करने से पहले सुबह का जलपान) के लिए जगाते हैं. 

हर दिन घर-घर जाकर उठाते हैं लोगों को 
वह रमज़ान के पवित्र महीने के बिना किसी चूक के हर दिन धार्मिक रूप से इस परंपरा का पालन करते हैं. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गुलाब यादव एक हाथ में डंडा और दूसरे हाथ में लालटेन लिए रात के अंधेरे में लगभग 1 बजे अपने घर से निकलते हैं और उस इलाके में जाते हैं जहां मुस्लिम परिवार रहते हैं. 

कौड़िया गांव के निवासियों का भी दावा है कि ऐसा नहीं है कि वहां मुसलमानों के कुछ ही परिवार रहते हैं. गांव में 200 से अधिक मुस्लिम परिवार रहते हैं और रोज़ेदारों को सहरी के लिए जगाने के लिए गुलाव हर रोज़ घर-घर जाते हैं, ताकि वे समय न चूकें. ग्रामीणों के अनुसार गुलाब दिहाड़ी-मजदूरी करते हैं और दूसरे राज्यों में भी काम के लिए जाते हैं. हालांकि, वह रोज़ेदारों की सेवा करने के लिए रमज़ान के पवित्र महीने के आगमन के साथ गांव लौट आते हैं. 

लोगों की दुआएं हैं सबसे बड़ी कमाई
बताया जाता है कि हर रात वह मुस्लिम परिवारों के दरवाजे पर दस्तक देकर उन्हें सहरी के लिए जगने को कहते हैं. उनते होने से रोज़दारों को सहरी के समय के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. गुलाब के लिए मुस्लिम परिवारों से मिलने वाली दुआएं और शुभकामनाएं ही उनकी सबसे बड़ी कमाई हैं.

वहीं गुलाब का कहना है कि वह कोई बड़ा काम नहीं कर रहे हैं. उनका मानना ​​है कि उनके पिता द्वारा शुरू की गई परंपरा दोनों समुदायों को करीब लाती है. वे सदियों से एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ-साथ रह रहे हैं. गांव के लोग गुलाब के संकल्प की इतनी सराहना करते हैं कि इस काम के लिए एक बार वह अपने भतीजे की शादी में शामिल हुए बिना ही लौट आए थे.