लोगों के लिए कुछ नया सीखना बहुत आसान होता है. लेकिन जो सीखा हुआ है, उसे अनलर्न करके, उसी पर कुछ नया सीखना, थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन मध्य प्रदेश में एक 70 साल की महिला किसान और उनके परिवार ने ऐसा करके मिसाल पेश की है. जी हां, उज्जैन के पास एक गांव की रहने वाली भागवंती देवी और उनका परिवार कई दशकों से खेती कर रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों से खेती के पुराने तरीकों को छोड़कर उन्होंने नए तरीके न सिर्फ सीखे हैं बल्कि इन्हें आजमाकर खेती में सफलता भी हासिल की है.
भागवंती देवी सिर्फ खेती नहीं कर रही हैं बल्कि उन्होंने ऑगर्निक फार्म स्टे भी बनाया है, जहां कोई भी बुकिंग करके प्रकृति के बीच रह सकता है. उज्जैन के महाकाल मंदिर से मात्र 9 किमी दूर बसे हामूखेड़ी में उनका 'शिवाश्रय कृषि फार्म स्टे' लोगों के बीच अपनी अच्छी पहचान बना रहा है. भागवंती देवी के बेटे, लाखन सिंह ने बताया कि महाकाल के दर्शन करने आने वाले बहुत से टूरिस्ट उनके यहां रुककर प्रकृति के करीब सात्विक जिंदगी का आनंद लेते हैं.
अपने इस फार्म में वे सेब, स्ट्रॉबेरी, चीकू, आम, संतरे, और अंगूरी कटहल के साथ सब्जियों की खेती कर रहे हैं. पिछले पांच सालों में उनकी आमदनी पांच गुना बढ़ी है. भागवंती देवी का कहना है कि उन्होंने फल-सब्जियों की नई वैरायटी और इन्हें उगाने के नए व इनोवेटिव तरीकों के बारे में दूरदर्शन के प्रोग्राम, 'कृषि दर्शन' और यूट्यूब विडियोज के बारे में पता चला.
जैविक खेती कर बनाई पहचान
लाखन सिंह ने बताया कि उनका कृषि फार्म और स्टे तीन बीघा जमीन पर फैला हुआ है. यहां वे ऑर्गनिक तरीकों से कमर्शियल क्रॉप्स उगाते हैं और होम स्टे को मैनेज करते हैं. कमर्शियल क्रॉप्स के कारण वह सिर्फ दो बीघा जमीन से भी अच्छी फसल ले पा रहे हैं. उनका कहना है कि उनके परिवार में पीढ़ियों से खेती हो रही है. आज भी उनका परिवार खेती से ही जुड़ा हुआ है. लेकिन कुछ साल पहले तक वे पारंपरिक फसलें उगा रहे थे और पारंपरिक तरीकों से ही खेती करते थे. लेकिन दूरदर्शन का कृषि दर्शन प्रोग्राम देखकर भागवंती जी ने सलाह दी कि उन्हें कुछ अलग तरीके भी अपनाने चाहिए.
इस प्रोगाम से उन्हें अगूंरी कटहल के बारे में पता चला. लाखन कहते हैं, "माता जी की सलाह पर हमने सबसे पहले कुछ कटहल के पौधे खरीदकर खेतों में लगाए. लगभग पांच साल बाद इनसे आमदनी आने लगी. आज एक कटहल के पेड़ से हमें सीजन में 10-15 हजार रुपए तक की आमदनी हो जाती है. पहले हम पारंपरिक फसलें जैसे गेहूं, चना आदि उगाते थे लेकिन धीरे-धीरे हमने अपने खेती के तरीकों में बदलाव लाया." लाखन आगे बताते हैं कि समय के साथ उनके इलाके का विकास हुआ और यहां कॉलोनियां बसने लगीं लेकिन उन्होंने जमीन बेचने या इसे किराये पर देने की बजाय मांग के हिसाब से अपनी खेती में परिवर्तन किया जिसका फायदा आज उन्हें मिल रहा है.
फार्म में लगाए सेब-संतरा जैसे फल
भागवंती और लाखन ने अपने फार्म में कटहल के अलावा सेब, संतरा, चीकू जैसे फल भी लगाए हुए हैं. उन्होंने साल 2020 में स्ट्रॉबेरी की खेती भी की थी. हालांकि, लोगों को यह जानकर आश्चर्य होता है कि उनके खेतों में सेब भी उगाया जा रहा है. सामान्य तौर पर सेब पहाड़ी और ठंडे इलाकों में होता है क्योंकि इसकी खेती के लिए सर्द जलवायु की जरूरत होती है. तो फिर भागवंती मध्य-प्रदेश में कैसे सेब उगा रही हैं? भागवंती देवी बताती हैं कि उन्होंने HRMN99 वैरायटी के सेब लगाए हैं. यह वैरायटी खासतौर पर मैदानी इलाकों के लिए है.
उन्होंने कहा कि इस तरह की नई वैरायटीज के बारे में उन्हें यूट्यूब से जानकारी मिलती है. उन्होंने पहले इसके बारे में जाना और फिर कुछ पौधे अपने खेतों में लगाए. आज उन्हें इन पेड़ों से न सिर्फ सेब मिल रहे हैं बल्कि इन्हें मार्केट करके वह अच्छी कमाई कर रही हैं. सेब के अलावा आपको उनके फार्म में नागपुर के संतरे की वैरयटी के पेड़ मिलेंगे. फलों के साथ-साथ मौसमी सब्जियों से भी उन्हें अच्छा मुनाफा होता है. हालांकि, जैविक खेती के अलावा उनकी मार्केटिंग स्ट्रेटजी को भी इस बढ़ती आमदनी का श्रेय जाता है.
कमाल का है मार्केटिंग मॉडल
लाखन सिंह का कहना है कि पिछले पांच सालों से वह अपनी उपज सीधा ग्राहकों को पहुंचाते हैं न कि मंडी में. उन्होंने कहा, "हमारे इलाके का विकास होने से हमें अच्छा फायदा मिला. हमारे फार्म के आसपास कॉलोनी बसी हुई हैं. हमने लोगों से सीधा जुड़ना शुरू किया. बहुत से लोग हमारे फार्म से आकर ही ताजा फल-सब्जियां लेकर जाते हैं. इसके अलावा, व्हाट्सएप के जरिए जिस हिसाब से ऑर्डर मिलते हैं, हम उन्हें वैसे ही डिलीवर करते हैं." हर घर में धनिया, हरी मिर्च, नींबू आदि की जरूरत होती है. सुबह-सुबह भागवंती देवी और उनका परिवार, ताजा धनिया, हरी मिर्च आदि तोड़कर छोटे-छोटे पैकेट तैयार करता है और इस एक पैकेट की कीमत 20 रुपए होती है.
लाखन का कहना है कि अगर वे 100 घरों में भी ये पैकेज डिलीवर करते हैं तो उनकी कमाई 2000 रुपए हो जाती है. और यह कमाई वह सुबह 6 से 8 बजे के बीच कर लेते हैं. वर्तमान में, वह 500 परिवारों से जुड़े हुए हैं. उनका कहना है कि वह इस नंबर को 1000 तक ले जाना चाहते हैं. खेती के साथ-साथ प्रोसेसिंग मॉडल पर भी काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि साल 2020 से पहले उन्होंने स्ट्रॉबेरी उगाई थीं. तब उन्होंने लोगों को प्रिजर्वेटिव फ्री स्ट्रॉबेरी जैम बनाकर सप्लाई किया. कुछ समय से वे कटहल का अचार बनाकर सेल कर रहे हैं. भागवंती और लाखन का कहना है कि उनका उद्देश्य लोगों को शुद्ध और ताजा फल-सब्जियां खिलाना है. वह ऐसा मॉडल बनाना चाहते हैं जहां लोगों को ऑन-ऑर्डर ताजा सप्लाई मिले.
पीएम मोदी को दी सलाह
भागवंती देवी ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, शिवराज सिंह चौहान को किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद के लिए कुछ सलाह दी थीं.
आधुनिक खेती पर जोर: किसान परंपरागत खेती की जगह आधुनिक खेती पर जोर दें. एक ही तरह की फसल उगाने की बजाय मिश्रित खेती करें.
सामुहिक खेती करे: खेती में लागत में बचत के लिए छोटे किसान मिलकर सामूहिक खेती करें. 10-20 किसान मिलकर खेती करेंगे तो लागत कम और मुनाफा ज्यादा आएगा. सामुहिक खेती करने से मार्केटिंग करने में भी मदद मिलेगी.
सरकार से मिले तकनीकी मदद: किसानों को आधुनिक खेती के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ उन्हे इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर, सस्ती खाद और बीज, ड्रिप इरीगेशन सिस्टम, खेत से मंडी तक का सस्ता परिवहन जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवाए.
किसानों को मिले दुकान: सरकार किसानों को शहर के रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, एयरपोर्ट, मंदिरों, हाईवे, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, बैंक, बड़े सरकारी दफ्तर, खेल स्टेडियम पर साप्ताहिक या मासिक रूप से दूकान किराए पर उपलब्ध करवाए. जहां से किसान अपने फल-सब्जियों को ग्राहकों तक एवं होटल में सप्लाई कर सके.
एग्रो-टूरिज्म पर फोकस: सरकार एग्रो टूरिज्म पर फोकस करके गांवों के पास फूड आउटलेट्स खुलावा सकती है. खासकर उन गांवों में जो शहरों से जुड़े हुए हैं और चंद मिनट की दूरी पर हैं. यहां शहरी लोग खाना खाने आ सकते हैं या ऑर्डर कर सकते हैं.
किसानों को बनाना होगा व्यापारी
भागवंती देवी और लाखन सिंह का कहना है कि किसानों को सफल बनाना है तो उन्हें व्यापारी बनाना होगा. उन्हें ऐसा मार्केट देना होगा जहां वे अपनी फसल को खुद बेच सकें और इसे ब्रांड बना सकें. किसानों को प्रोसेसिंग यूनिट्स दी जाएं तो वे गेहूं की जगह इससे आटा, मैदा या बिस्किट आदि बनाकर बेच सकते हैं. चने की जगह बेसन, सोयाबीन की जगह उसका तेल और उत्पाद, दूध की जगह पनीर, घी और मिठाई बना सकते हैं. इससे किसानों का अपना ई-कॉमर्स चैनल बन सकता है.