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शराब से लेकर घरेलू हिंसा, बाल विवाह और कन्या भ्रूण हत्या तक, सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में जुटी Green Gang

उत्तर प्रदेश में 14,000 महिलाएं साथ मिलकर पुरुषों की शराब और जुए की लत व घरेलू हिंसा से लड़ रही हैं. हरे रंग की साड़ियां पहने पुरुषों के अड्डों पर छापा मारती महिलाओं की ग्रीन गैंग इन पुरुषों के लिए आफत से कम नहीं है.

Green Gang Green Gang
हाइलाइट्स
  • यूपी सरकार ने जोड़ा 'मिशन शक्ति' से 

  • पुलिस में दर्ज कराए घरेलू हिंसा के मामले

हम सब जानते हैं कि हरा रंग समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक है, और इसी हरे रंग का इस्तेमाल करके 14,000 महिलाओं का एक समूह पूर्वी यूपी के छह जिलों में बदलाव की मिसाल पेश कर रहा है. ये सभ महिलाएं हरे रंग की साड़ियां पहनकर सामाजिक कुरीतियों से लड़ रही हैं. 'ग्रीन गैंग' के नाम से मशहूर यह समूह लगभग आठ साल पहले शुरू हुआ था. 

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, वाराणसी जिले के रामासीपुर गांव की 10-15 महिलाओं ने ग्रीन गैंग की शुरुआत की. इस ग्रुप को उन महिलाओं ने शराब और जुए की लत में डूबे अपने पतियों को सुधारने के उद्देश्य से शुरू किया था ताकि अपने प्रति घरेलू हिंसा को रोक सकें. 

यूपी सरकार ने जोड़ा 'मिशन शक्ति' से 
पुरुषों के तौर-तरीकों को सुधारने के इरादे से महिलाओं का यह समूह अब एक संगठित आंदोलन में बदल गया है. अब यूपी सरकार ने इसे अपने प्रमुख अभियान 'मिशन शक्ति' के साथ जोड़ दिया है. जिसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है. रामासीपुर गांव से, यह वाराणसी के देवड़ा, खुसियारी, जगदेवपुर और भादरसी गाावों में फैल गया जहां लगभग 12,000 पुरुषों में से करीब 40 प्रतिशत व्यसनों के आदी थे. बताया जा रह है कि अब उनमें से ज्यादातर ने शराब और जुए को छोड़ दिया है, या ऐसा करने की प्रक्रिया में हैं. 

उनकी कार्यप्रणाली सरल और सीधी है. ग्रीन गैंग के सदस्य उन 'अड्डों' की रेकी करते हैं जहां पुरुष सामूहिक रूप से शराब पीने और जुआ खेलने में शामिल होते हैं. ये 'अड्डे' आम तौर पर गांव या बाहर के एकांत क्षेत्रों में स्थित होते हैं. रेकी करने के बाद, ग्रीन गैंग की सदस्य महिलाएं इन स्थानों पर छापा मारती हैं, और वहां शराब की बोतलें तोड़ देती हैं. इसका तत्काल और ठोस प्रभाव पड़ा. 

अब ग्रीन गैंग मिशन शक्ति के साथ मिलकर पूर्वी यूपी में वाराणसी, मिर्जापुर, अयोध्या, सोनभद्र, चंदौली और जौनपुर सहित आधा दर्जन जिलों के लगभग 150 गांवों में घरेलू हिंसा, छेड़खानी, बाल विवाह और कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाल रहा है. ग्रीन गैंग की नेता गीता देवी ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को अपनी आपबीती सुनाई जिसने उन्हें अपने पति के दोषों के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया. 

यह शख्स बना मसीहा 
गीता कहना है कि वह वाराणसी में अस्सी घाट पर गंगा नदी में डुबकर अपनी जान दना चाहती थीं, तभी एक व्यक्ति ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने गीता से शांत होने के लिए कहा और धैर्यपूर्वक उनकी बात सुनी. यह शख्स और कोई नहीं बल्कि वाराणसी जिले के गांवों में सामाजिक बुराइयों को खत्म करने की दिशा में काम कर रहे वाराणसी के विभिन्न कॉलेजों के छात्रों के एक समूह, होप वेलफेयर ट्रस्ट के सदस्य दिव्यांशु उपाध्याय थे. ट्रस्ट के सदस्यों ने महिला की मदद करने का फैसला किया. 

दिव्यांशु कहते हैं, "हमने महिलाओं को बुनियादी साक्षरता और मार्शल आर्ट का पाठ पढ़ाया और उन्हें भारतीय इतिहास की बहादुर महिलाओं के बारे में शिक्षित किया." महिलाओं ने अपने ड्रेस कोड के रूप में हरी साड़ियों को पहनने का फैसला किया और अपने साथ डंडे ले जाना शुरू कर दिया. शुरुआती दिनों को याद करते हुए गीता कहती हैं कि इसकी शुरुआत रामासीपुर में गश्त से हुई. शुरुआत में ग्रामीणों ने उनका मजाक उड़ाया लेकिन धीरे-धीरे इस समूह को पहचान मिलने लगी.

पुलिस में दर्ज कराए घरेलू हिंसा के मामले
लेकिन ग्रीन गैंस की असर ऐसा हुआ कि धीरे-धीरे नशेड़ी हरे रंग से डरने लगे. वे इन महिलाओं को देखकर अपनी जान बचाने के लिए भागते थे. उन्होंने पुलिस में घरेलू हिंसा के मामले भी दर्ज किए हैं, और कुछ पुरुषों को जेल भी भेजा गया था. वह कहती हैं कि अब पुरुष भी अपने जीवन को बदलने में ग्रीन गैंग के प्रयासों को स्वीकार करते हैं और उनकी सराहना करते हैं. रामासीपुर गांव के प्लंबर राज किशोर कहते हैं कि शुरुआत में, नशा छोड़ना मुश्किल लग रहा था. वह नींद की बीमारी, चिड़चिड़ेपन से पीड़ित थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने इसका सामना करना सीख लिया. हम वे पूरी तरह से ठीक हो गए हैं. 

मिशन शक्ति का एक हिस्सा होने के नाते, ग्रीन गैंग के प्रत्येक सदस्य के पास निकटतम पुलिस स्टेशन का संपर्क विवरण है, जिससे आपात स्थिति और पुलिस सहायता के लिए सीधे संपर्क किया जा सकता है. गिरोह के प्रत्येक समूह में एक 'पुलिस मित्र' शामिल है - एक सदस्य जो स्थानीय पुलिस के संपर्क में रहता है, उन्हें नियमित अपडेट प्रदान करता है.

मिर्जापुर के जंगल महल गांव में इस अभियान का नेतृत्व करने वाली शायमा कहती हैं कि जिस घर में लड़की पैदा होती है उस घर पर 'खुशहाली चिन्ह' (खुशी का निशान) लगाकर गिरोह बेटी के जन्म का जश्न मनाता है. गिरोह ने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है. जौनपुर जिले के जलालपुर गांव की समूह नेता सुनीता का दावा है कि उन्होंने गांव में एक तालाब के पास मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए पेड़ लगाए हैं.