उत्तराखंड (Uttarakhand) के उत्तरकाशी (Uttarkashi) में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग (Silkyara Tunnel) में फंसे 41 मजदूर मंगलवार देर शाम सुरक्षित निकाल लिए गए. स्थानीय लोगों का मानना है कि बाबा बौख नाग के प्रकोप की वजह से यह हादसा हुआ. आइए जानते हैं बाबा बौख नाग का कहानी क्या है.
प्राचीन ग्रंथों और मौखिक परंपराओं के अनुसार, महाभारत काल के दौरान, कुरुक्षेत्र के युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान श्री कृष्ण ने शांति के लिए पहाड़ों की ओर रुख किया. वह अपने रथ पर सवार होकर बौख नाग टिब्बा के ऊंचे शिखर पर पहुंचे, जहां अब बाबा बौख नाग मंदिर है. इस दौरान भगवान कृष्ण ने बौख नाग टिब्बा पर्वत पर कुछ पल बिताए थे. यहीं पर बांसुरी की धुन पर भगवान ने एक नाग का उद्भव देखा, जिसे बसुरिया नाग के नाम से जाना जाता है. बाद में पता चला कि यह नाग कोई और नहीं बल्कि बौख नाग था. भगवान कृष्ण वहां अवतरित हुए और इसे अपना निवास स्थान बनाया.
मंदिर में श्रीफल चढ़ाने की परंपरा
वैसे तो पूरा उत्तरकाशी जिला नाग देवता को अपना आराध्य मानता है लेकिन अगर बात करें रवाई घाटी और गंगा घाटी के भंडारश्यूं पट्टी की तो इस इलाके के लोग बाबा बौख नाग को अपना आराध्य मानते हैं. भगवान बौख नाग का प्रमुख मंदिर सड़क मार्ग से बेहद दूर खड़ी चढ़ाई चढ़ कर एक ऊंची चोटी पर स्थित है, लेकिन धरासू यमुनोत्री नेशनल हाइवे का राडी ऐसी जगह है, जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई करीब 2200 मीटर है और यहीं पर बाबा बौख नाग का मंदिर बना है. इसी पहाड़ी से लगा हुआ है सिलक्यारा. मान्यता है कि जब भी स्थानीय लोग इस मंदिर से आवाजाही करते हैं तो एक श्रीफल जरूर चढ़ाते हैं.
बौख नाग को लेकर किवदंती है कि पुरातन काल में एक बार हिमाचल से विश्वाराणा नाम के व्यक्ति की बारात पैदल चली आ रही थी, तो उनके द्वारा बाबा बौख नाग की पूजा अर्चना नहीं की गई तो नाराज बौख नाग ने पूरी बारात को ही खत्म कर दिया. स्थानीय लोगों का कहना है कि आज भी यहां पर श्रीफल चढ़ाने की परंपरा है. स्थानीय लोग बताते हैं कि सिलक्यारा टनल हादसे का कारण भगवान बौख नाग की अनदेखी है.
मंदिर तोड़ने की वजह से हुआ हादसा
लोगों का कहना है कि जब भी किसी काम को शुरू किया जाता है तो भगवान बौख नाग की पूजा अर्चना की जाती है. लेकिन कंपनी के अधिकारियों ने काम की शुरुआत में पूजा तो की लेकिन हाल ही में पूजा के लिए बनाया मंदिर तोड़ दिया. बस उसी दिन से टनल में खतरे के बादल मंडराने लगे. लोग कहते हैं कि पिछले साल एक नाग को भी जनवरी-फरवरी के महीने में टनल के अंदर देखा गया था जबकि अमूमन ऐसा नहीं होता है. ऑल वेदर एक्सप्रेसवे पर सिलक्यारा पौलगाव बड़कोट सुरंग निर्माण करने के लिए स्थानीय देवता बौख नाग देवता को मनाने के बाद 3 दिन के भीतर सभी श्रमिक सुरक्षित निकल गए. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय मंत्री वी के सिंह सहित तमाम एजेंसी से जुड़े लोगों ने फूल मालाओं से सभी श्रमिकों का स्वागत किया.
12 नवंबर को हुआ था हादसा
बता दें, दीपावली के दिन सुबह तड़के 4.30 बजे सिलक्यारा सुरंग का 40 मीटर हिस्सा टूटने के बाद ये हादसा हो गया था. नाइट शिफ्ट में काम कर रहे 41 मजदूर सुरंग में फंस गए थे. इसकी जानकारी मिलते ही जिला प्रशासन, पुलिस, एसडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंच गई थी. दूसरे दिन NHIDCL सहित देश व विदेश के सुरंग से जुड़े एक्सपर्टों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया. बड़ी-बड़ी मशीनें लगाई गईं. स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि सुरंग ढहने का कारण देवता का प्रकोप है. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि सुरंग बनाते समय कंपनी ने बाबा बौख नाग का दोनों तरफ मंदिर बनाने को कहा था, लेकिन मंदिर नहीं बनाया गया.
सुरंग के दोनों तरफ बनेगा बाबा बौख नाग का भव्य मंदिर
ग्रामीणों का कहना था कि जब तक उनके देवता को शांत नहीं किया जाता, बचाव अभियान सफल नहीं होता. इसी को ध्यान में रखकर बचाव अभियान में शामिल लोगों ने बाबा बौख नाग का आशीर्वाद लिया ताकि सुरंग में फंसे मजदूरों की जान बचाई जा सके. बीते 17 दिन से सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को मंगलवार देर शाम सुरक्षित निकाललिया गया. दरअसल उत्तराखंड देव भूमि है, जहां कण-कण में ईश्वर का वास है. अब ऐसे में स्थानीय इष्टदेव बाबा बौख नाग देवता की अनदेखी करना सुरंग से जुड़ी कार्यदायी संस्था के लिए भारी पड़ा. अब सुरंग के दोनों तरफ बाबा बौख नाग का भव्य मंदिर बनाया जाएगा.
-ओंकार बहुगुणा की रिपोर्ट