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Varanasi Lal Peda: काशी की इस मिठाई के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, चंद्रशेखर से लेकर पीएम मोदी तक दीवाने, जानिए बनारस के लाल पेड़े के बारे में, 30 दिनों तक नहीं होती खराब 

Varanasi Sweet: आज हम आपको वाराणसी की एक ऐसी मिठाई के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास 113 साल पुराना है. ये मिठाई न सिर्फ बनारस आने वाले सैलानियों और श्रद्धालुओं को पसंद आती है बल्कि देश की कई दिग्गज हस्तियों को भी लाल पेड़े का जायका पसंद आता है. पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, चंद्रशेखर से लेकर पीएम मोदी तक लाल पेड़े के मुरीद रहे हैं. 

Lal Peda Lal Peda
हाइलाइट्स
  • यूपी कॉलेज के कैंपस में स्थित है लाल पेड़ा की मुख्य दुकान

  • इस 113 साल पुरानी दुकान में लाल पेड़ा खरीदने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग 

काशी (Kashi) का न सिर्फ आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व है बल्कि यहां का खान-पान और देसी जायका भी दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुका है. बनारस (Banaras) का रसगुल्ला, लौंगलता, जलेबी, गुलाब जामुन, छेना, राजभोग सहित अन्य मिठाइयों का स्वाद चखने और खरीदने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं.

आज हम आपको वाराणसी (Varanasi) की एक ऐसी मिठाई के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास 113 साल पुराना है. जी हां, हम बात कर रहे हैं वाराणसी के मशहूर लाल पेड़ा की, जिसके दीवाने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, चंद्रशेखर से लेकर पीएम मोदी तक हैं. यह मिठाई बनारस आने वाले सैलानियों और श्रद्धालुओं को बहुत पसंद आती है. देश-दुनिया के कई नामचीन हस्तियों ने लाल पेड़ा का स्वाद चखा है और सबने कहा है, वाह क्या मिठाई है.

यहां आजादी से पहले से तैयार की जा रही लाल पेड़ा नाम की स्वादिष्ट मिठाई
आज हम आपको 113 साल पुरानी आजादी के भी पहले की उस दुकान के बारे में बता रहे हैं, जहां लाल पेड़ा नाम की स्वादिष्ट मिठाई तैयार होती है. आप यूपी कॉलेज के कैंपस में राजर्षि मिष्ठान भंडार में बनने वाले लाल पेड़ा की मेकिंग देख कर शायद बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. धीमी आंच पर खोये को भूनते हुए देखना और इसकी सोंधी-सोंधी खुशबू धीरे-धीरे पूरे माहौल में मिठास घोल देती है. 

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...तो इसलिए खोली गई थी दुकान
स्वर्गीय केदारनाथ सिंह हों या नामवर सिंह या पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह हों या चंद्रशेखर या मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी की ही बात क्यूं न कर लें, ये लाल पेड़ा सबको अपना दीवाना बना रखा है. छात्र जीवन में कभी केदारनाथ सिंह लाल पेड़ा खाते हुए मौज में कहा करते थे कि 'गुरु जवन मजा बनारस में,उ न पेरिस में न फारस में'.

1911 में राजर्षि उदय प्रताप सिंह जी ने जो इस यूपी कॉलेज के फाउंडर थे, उन्होंने छात्रों को शुद्ध और स्वादिष्ट मिठाइयां मिले और वे बनारस की एक पहचान दूध और रबड़ी खा सकें, इसके लिए लोकल हलवाई लालता और बसंता यादव को कॉलेज कैंपस में मिठाई की दुकान शुरू करने की इजाजत दी. इन्हीं लालता और बसंता ने अपने कारीगर नगई के साथ मिलकर लाल पेड़ा बनाने का तरीका इजाद किया था. इस दुकान की जिम्मेदारी यहां की तीसरी पीढ़ी जय सिंह यादव संभाल रहे हैं. आज यूं तो बनारस के हर इलाके में आपको लाल पेड़ा मिल जाएगा, लेकिन इसकी ओरिजिन इसी यूपी कॉलेज के कैंपस में स्थित इसी 113 साल पुरानी दुकान से हुई थी.

लाल पेड़ा देख फूट-फूट कर लगे थे रोने
कहते हैं कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जो यूपी कॉलेज के छात्र रह चुके थे. जब यूपी कॉलेज पहुंचे तो ये लाल पेड़ा उनको खाने के लिए दिया गया. लाल पेड़ा देखते ही वो फूट फूट कर रोने लगे. उनको छात्र जीवन की वो सारी बातें याद आने लगीं जो कभी छात्र रहते यूपी कॉलेज में उन्होंने जिया था. पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह को यूपी कॉलेज में आज भी राजा साहेब के नाम से लोग उनकी चर्चा करते हैं. छात्र जीवन में वीपी सिंह इस मिठाई के दीवाने तो थे ही प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी स्पेशली ये मिठाई बनारस से मंगाते थे. यही हाल चंद्रशेखर सिंह का भी था. 

भगवान को लगता है भोग 
पीएम मोदी के समय इस लाल पेड़ा को जीआई टैग मिल गया. पीएम नरेंद्र मोदी ने इस लाल पेड़ा को बनारस की सरहद से निकालकर पूरे दुनियां तक पहुंचाने का काम किया. आज बनारस के अमूल प्लांट से तैयार लाल पेड़ा पूरी दुनियां में पहुंच रहा है. लाल पेड़ा सामाजिक और धार्मिक समारोहों, त्योहारों और शुभ अवसरों पर नियमित रूप से दिखाई देता है. बाबा विश्वनाथ से लेकर संकट मोचन तक इसका भोग लगता है. इसकी सेल्फ लाइफ लगभग एक महीने तक रहती है. 

क्या है इस पेड़ा में खास 
इस पेड़ा में खास क्या है? पूछने पर जय सिंह बताते हैं कि इस मिठाई की तैयारी में इस्तेमाल किया जाने वाला विशेष दानेदार खोआ (जिसे दानेदार खोआ के नाम से भी जाना जाता है) वास्तव में इसे देश भर में बनने वाले पेड़ों से अलग करता है. दानेदार खोया और चीनी को एक कढ़ाई में तेज आंच पर गर्म करना पड़ता है. बीच-बीच में देसी घी डालते रहना पड़ता है.

इसको तब तक कढ़ाई में लगातार चलाया जाता है, जब तक कि एक समान लाल-भूरा रंग न आ जाए. आंच से उतारने पर इसकी बनावट चिकनी होनी चाहिए. तभी तो भारतीय हॉकी की पहचान रहे स्वर्गीय मोहम्मद शाहिद हों, विवेक सिंह हों या मौजूदा ओलम्पिक हॉकी में मेडल लाने वाले ललित उपाध्याय सभी इसके दीवाने रहे हैं. बास्केटबॉल की खिलाड़ी अर्जुन अवार्डी प्रशांति सिंह आज भी जब बनारस आती हैं तो इसका जायका लेना नही भूलतीं. इस समय यूपी कॉलेज के राजर्षि मिष्ठान भंडार के एक किलो लाल पेड़ा के लिए 380 रुपए खर्च करने पड़ेंगे.

(रौशन जायसवाल)