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हिमाचल प्रदेश के लोकगीतों को संजोए हुए हैं विक्की चौहान, गा चुके हैं 350 से ज्यादा पहाड़ी नाटी और लोकगीत

हिमाचल प्रदेश के विक्की चौहान अभी तक 350 से ज्यादा पहाड़ी नाटी और लोकगीत गा चुके हैं. वे अपनी हिमाचली परंपराओं को संजोए हुए हैं. इसके लिए वे युवाओं तक इन लोकगीतों को पहुंचा रहे हैं.

विक्की चौहान विक्की चौहान
हाइलाइट्स
  • युवाओं को हिमाचल की परंपराओं से जोड़ा जा रहा है

  • 350 से ज्यादा पहाड़ी नाटी और लोकगीत गा चुके 

किसी भी राज्य के लोकगीतों से उस राज्य की परंपरा, सभ्यता संस्कृति के दर्शन होते हैं और मानव जीवन के दर्शन और दर्पण दिखाई देता है. कहते हैं ना कि लोकगीतों से समाज का प्रतिबिंब दिखाई देता है. 21वीं शताब्दी में भी लोकगीतों का उतना ही बोलबाला है. लेकिन पिछले कुछ दशकों की बात की जाए जब पाश्चात्य सभ्यता ने लोक गीतों की धमक को कम किया है, वहीं पर पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे युवा लोकगीतकार हैं जो इन लोकगीतों को संजोए हुए हैं. साथ ही युवा पीढ़ी तक बढ़ा रहे हैं. इन्हीं में से एक नाम है युवा पहाड़ी गायक विक्की चौहान का. 

संगीत तक नहीं था दूर-दूर नाता 

विक्की चौहान को पहाड़ी गायकी तो विरासत में उनके पिता से मिली लेकिन संगीत से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा था. विश्वविद्यालय के दिनों में बसों में जाते वक्त अपने दोस्तों के साथ मस्ती मस्ती में वह लोकगीत गाया और दोस्तों को सुनाया करते थे. उनके गीतों को सुनकर जैसे समा बंध जाता था, उन्हीं युवा दोस्तों में से कुछ दोस्तों ने विक्की चौहान को प्रेरित किया कि क्यों ना लोकगीत को गाकर इसे आगे बढ़ाया जाए. यहीं से विक्की चौहान की पहाड़ी गायकी यानी की "नाटी" गाने का सिलसिला शुरू हो गया.  

युवाओं को हिमाचल की परंपराओं से जोड़ा जा रहा है

हिमाचली लोक गायक विकी चौहान ने खास बातचीत में बताया कि हिमाचल प्रदेश में हर पांच किलो मीटर के बाद वाणी और पानी का स्वाद बदल जाता है लेकिन लोकगीतों से प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को अलग बोली होने के बाबजूद समझा जाता है. विकी चौहान ने बताया की पहाड़ी नाटी और लोकगीतों के जरिए वो इन्हें संजोह और आगे बढ़ा रहे हैं जिससे यह अगली पीढ़ी तक पहुंच सके और युवाओं को हिमाचल की  परम्पराओं और भाषा से जोड़ा जा रहा है. 

350 से ज्यादा पहाड़ी नाटी और लोकगीत गा चुके 

43 साल के विक्की चौहान लगभग 350 से ज्यादा पहाड़ी नाटी और लोकगीत गा चुके हैं और 2001 में पहाड़ी नाटी "नीरू चाली घुमदे से "उन्होंने अपने पहाड़ी गायकी की शुरुआत की थी. विक्की चौहान कहते हैं कि उनकी गायकी में किसी तरह की लचर गायकी नहीं होती है और हर गीत में राज्य की परंपराओं रीति-रिवाजों को जोड़ने का प्रयास और अलख जगाई जाती है.