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इस अस्पताल में 1 रुपये में मिलता है पेटभर खाना, 39 साल से बुजुर्ग मिलकर चला रहे संस्था

इस मिशन की शुरुआत कुछ लोगों ने मिलकर की थी लेकिन बहुत जल्दी ये बात समझ में आ गई कि बिना दूसरे लोगों के सहयोग के यह मिशन ज्यादा दिन तक चालू नहीं रह पाएगा. यह संस्था विदिशा के जिला अस्पताल के प्रांगण में ही चलता है इसके लिए सरकार की तरफ से संस्था को जमीन दी गई है.

1 रुपये में खाना 1 रुपये में खाना
हाइलाइट्स
  • अस्पताल के अंदर ही लोगों को थाली परोसी जाती है.

  • 1 रुपए की पर्ची, पर्ची से तय होता अनुशासन

भोजन की थाली में सब कुछ है पूरी है रोटी है सब्जी है खीर है, चावल है..खाने का स्वाद एकदम घर जैसा. जानते हैं भोजन की इस थाली की कीमत क्या है.. सिर्फ 1 रुपए. आप जानते हैं कि इस भोजन थाली को शुरू करने के पीछे की नीयत क्या है? मध्य प्रदेश में विदिशा के जिला अस्पताल के अंदर ही लोगों को ये थाली परोसी जाती है. दरअसल एक रुपए की इस भोजन थाली की शुरुआत 39 साल पहले सार्वजनिक भोजनालय सेवा समिति ने की थी. कहते हैं उस वक्त के फाउंडर मेंबर्स ने एक बात नोटिस की कि अस्पताल में एडमिट होने वाले मरीजों के परिवार के लोग अस्पताल के बाहर लकड़ी इकट्ठा करके चूल्हा बनाकर उस पर अपना खाना तैयार करते हैं. उनको लगा कि एक तो इंसान पहले से ही परेशान है ऊपर से इसको खुद खाने के लिए इस तरह से जद्दोजहद करनी पड़ रही बस वहीं से इस मिशन की शुरुआत हो गई. सार्वजनिक भोजनालय सेवा समिति के जीके महेश्वरी बताते हैं कि उस वक्त कुछ लोगों ने मिलकर संस्था बनाई और भोजन बनाने की शुरुआत हुई.

1 रुपए की पर्ची, पर्ची से तय होता अनुशासन
इस भोजनालय में भोजन करने के लिए लोगों को एक रुपए की पर्ची दी जाती है. पर्ची के लिए सुबह 7 बजे वॉलिंटियर्स एक-एक मरीज के बेड पर जाते हैं और उन्हें पर्ची बाटते हैं. संस्था के लोग बताते हैं कि पर्ची से ही पूरा अनुशासन तय होता है. पर्ची से ही हमें मालूम चलता है कि हमें कितना भोजन तैयार करना है और पर्ची से ही हम देख पाते हैं कि कोई पुरानी पर्ची तो लेकर नहीं आ रहा या उनकी सेवा का गलत इस्तेमाल तो नहीं कर रहा.

पैसे नहीं थे जिसके पास जो था दे गया
संस्था के लोग बताते हैं कि इस मिशन की शुरुआत कुछ लोगों ने मिलकर की थी लेकिन बहुत जल्दी ये बात समझ में आ गई कि बिना दूसरे लोगों के सहयोग के यह मिशन ज्यादा दिन तक चालू नहीं रह पाएगा. संस्था के लोगों ने लोगों से अपील उनकी व्यापारिक वर्ग में अच्छी पकड़ थी इसलिए उन्हें जल्दी मदद मिलने लगी हालांकि कोई भी पैसे से मदद नहीं करता था जिस व्यापारी के पास जो होता वह दे जाता. जैसे जिसके पास चावल की मिल थी वह चावल दे जाता जिसका तेल का कारोबार था वो तेल भेजता और जिसका आटे का कारोबार था वह आटा दे जाता. इस तरह से यह मिशन लगातार चलता रहा.

यूनीक आइडिया से मिली मदद
यह संस्था विदिशा के जिला अस्पताल के प्रांगण में ही चलता है इसके लिए सरकार की तरफ से संस्था को जमीन दी गई है. जीके महेश्वरी बताते हैं इस संस्था को चलाने के लिए कई यूनीक आईडिया भी निकाले गए. हमने लोगों से कहा कि आप संस्था की मेंबरशिप लीजिए हम आपके नाम से लोगों को खाना बाटेंगे. 4 हज़ार रुपए देकर कोई भी 1 तारीख फिक्स करवा सकता है चाहे अपने जन्मदिन की या फिर किसी के स्मृति दिवस के रूप में साल में जब भी वह तारीख आएगी उस आदमी का नाम बोर्ड पर लिखा जाएगा और उसके नाम से ही उस दिन का भोजन बांटा जाएगा. इसी तरह 500 रुपए देकर 1 दिन के लिए भी लोग अपने नाम से खाना बटवा सकते हैं. संस्था के लोग बताते हैं कि अब शहर में इसका इतना प्रचार-प्रसार हो गया है कि जब भी किसी का जन्मदिन होता है तो वो यहीं पर सेवा देने के लिए आते हैं.

कोरोना में 1 करोड़ का फंड आया
संस्था के लोग बताते हैं की कोरोना से पहले हमें ये जमीन मिली थी. इस जमीन पर भवन का निर्माण हमें खुद करना था हमने लोगों से थोड़ा बहुत पैसा इकट्ठा किया और काम शुरू कर दिया लेकिन इसी बीच कोरोना आ गया. अब हमें समझ में नहीं आ रहा था कि आगे काम कैसे चलेगा लेकिन ये शहर के लोगों का सहयोग ही है कि कोरोना के वक्त भी इस बिल्डिंग को बनाने के लिए एक करोड रुपए से ज्यादा का चंदा आ गया और इससे भी बड़ी बात ये कि संस्था के लोग आज तक किसी के पास चंदा मांगने नहीं गए लोग चंदा खुद देने आए.

यह एक रुपए वाली थाली वाकई कई लोगों तक राहत पहुंचा रही है. यहां आने वाले लोग भी मानते हैं कि अस्पताल में अपनों का इलाज करवाने के बीच खाने की चिंता कभी नहीं करनी पड़ती. यह संस्था विदिशा में 39 साल से लगातार काम कर रही है इस संस्था को चलाने वाले अधिकतर लोग बुजुर्ग है. इन बुजुर्गों में कोई रिटायर्ड सेना का अफसर है, कोई डॉक्टर है तो कोई इंजीनियर है. इन सब का एक ही सपना है कि हर शहर में अस्पताल के पास इस तरह की संस्था होनी चाहिए ताकि मरीज और उनके तीमारदार का दुख कम हो सके.