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उत्तराखंड में चलाया जा रहा Operation Mukti क्या है जिसके तहत गरीब और भिखारी बच्चों को दी जा रही है शिक्षा

उत्तराखंड के पुलिस अधिकारी गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं. कई बच्चों को इस काम से बाहर निकालकर स्कूल में दाखिला दिलाया गया है जिसके बाद से वो काफी अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं.शिक्षा के माध्यम से वंचित बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास किया जा रहा है.

Poor Kids (Representative Image) Poor Kids (Representative Image)

आपने अक्सर किसी कूड़े के ढेर के पास या ट्रैफिक सिग्नल पर बच्चों को कूड़ा बीनते या भीख मांगते देखा होगा. ये बच्चे अपने आर्थिक हालातों या कई अन्य कारणों की वजह से पढ़ाई-लिखाई नहीं कर पाते या फिर छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं. कई NGO's आजकल इन बच्चों को शिक्षा देने के मकसद से काम कर रहे हैं और कई एक सफल भी हुए हैं. आज हम आपको इन्हीं कुछ बच्चों के प्रयास और  उनकी सफलता की कहानी के बारे में आपको बताएंगे.

पुलिस अधिकारी ने उठाया कदम
आठ वर्षीय अंजू (बदला हुआ नाम) ने 99.5% अंकों के साथ कक्षा 2 की परीक्षा पास की है. यह सब एक पुलिस अधिकारी की बदौलत है जिसने उसे दो साल पहले एक स्कूल में दाखिला दिलाया था. अंजू एक पुलिस अधिकारी बनना चाहती है और वो पुलिस वाले की तरह ही अन्य बच्चों को बचाने की उम्मीद करती हैं, जो शिक्षा के माध्यम से वंचित बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के अभियान का हिस्सा थे. अंजू को देहरादून के एक सरकारी स्कूल में 2021 में कक्षा 1 में दाखिला दिलाया गया था. अंजू के साथ उसकी उम्र के दो अन्य बच्चों को भर्ती कराया गया था. अंजू ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा, “मुझे अध्ययन करने का अवसर देने के लिए मैं पुलिस अधिकारियों की बहुत आभारी हूं. मैं अपनी शिक्षा पूरी करके उनके जैसा बनना चाहती हूं.”

अंजू की पढ़ाई में बड़ी भूमिका निभाने वाले इंस्पेक्टर मनमोहन नेगी ने कहा कि अंजू का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा. वह अच्छा करने के लिए काफी दृढ़ थी. नेगी ने कहा, "हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करने के लिए है कि अधिक से अधिक बच्चे शिक्षा प्राप्त करें और एक सम्मानित जीवन व्यतीत करें."

बचाए गए अन्य बच्चे
अंजू की तरह 13 वर्षीय विपिन, जो अपने दो भाइयों के साथ गंगा के किनारे खारा-स्त्रोत क्षेत्र में फूल बेचता था. विपिन अब एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढ़ता है. उसे चार साल पहले टिहरी गढ़वाल पुलिस ने छुड़ाया था. विपिन कक्षा 8 में पढ़ता है. विपिन ने कहा, “मेरे माता-पिता गरीब थे और हमें स्कूल भेजने का खर्च वहन नहीं कर सकते थे. हम तीनों भाई अपने माता-पिता को घर चलाने में मदद करने के लिए फूल बेचते थे. अगर पुलिस वाले नहीं होते, तो हम अपना जीवन बिना शिक्षा के फूल बेचकर बिताते. विपिन के दिहाड़ी मजदूर पिता राजकुमार ने कहा, "मैं बता नहीं सकता कि आज मैं अपने बच्चों को स्कूल जाते देख कितना खुश हूं." खारा-स्त्रोत के राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य संगीत बडोनी भी विपिन की अब तक की उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर रहे हैं. बच्चे अब अपने ओवरऑल प्रदर्शन में काफी अच्छा कर रहे हैं. उनमें सीखने की भूख है क्योंकि वे जानते हैं कि शिक्षा उनके लिए वरदान है

क्या है आपरेशन मुक्ति?
साल 2017 में 'ऑपरेशन मुक्ति' के तहत इस मिशन की शुरुआत की गई थी. इसकी शुरुआत के बाद से उत्तराखंड में पुलिस ने लगभग 2,100 बच्चों को बचाया है जो सड़कों पर भीख मांगते, कूड़ा बीनते या सामान बेचते पाए गए थे. इन बच्चों को विभिन्न सरकारी स्कूलों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में भर्ती कराया गया था. वो अब पढ़ाई और को-करिकुलर एक्टिविटीज में अच्छा कर रहे हैं. 

इस अनोखे 'मिशन' की शुरुआत करने वाले डीजीपी अशोक कुमार ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा कि बच्चों को भीख देना कभी भी अच्छा विचार नहीं है. हमें इसके बजाय उन्हें शिक्षा देनी चाहिए. उन्हें पैसा देने से कभी भी समस्या का समाधान नहीं होगा. अगर वो शिक्षित होंगे तो उनके संघर्षपूर्ण जीवन में सुधार होगा. अभियान के हिस्से के रूप में बच्चों को सड़कों से छुड़ाने और उनके माता-पिता की काउंसलिंग के बाद उन्हें निकटतम संभावित स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए हर जिला पुलिस इकाई में टीमों का गठन किया. इस पहल से अब तक कई सराहनीय परिणाम मिले हैं. पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने कहा, “स्कूल में नामांकित 2,100 बच्चों में से लगभग 700 ने स्कूल छोड़ दिया है. इस पहल को जारी रखते हुए, हमारा ध्यान उन्हें वापस उस जगह पर लाने पर है जहां उन्हें अभी होना चाहिए.