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History of Rabri: कहानी रबड़ी की, जिसने बदल दिया एक गांव का नाम, कोलकाता में तो इस पर बैन भी लगा

रबड़ी, भारतीय उपमहाद्वीप की एक समृद्ध और स्वादिष्ट मिठाई है, जो सदियों से लोगों के बीच पॉपुलर है. रबड़ी को लोग जलेबी, इमरती के साथ भी खाते हैं. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं रबड़ी के इतिहास के बारे में.

History of Rabri History of Rabri
हाइलाइट्स
  • रबड़ी की उत्पत्ति पर अलग-अलग तर्क

  • गंगपुर बन गया रबड़ीग्राम 

हमारे देश में हर कुछ किलोमीटर पर सिर्फ बोली नहीं बल्कि पानी का स्वाद भी बदल जाता है. और तो और हमारे यहां एक ही पकवान को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह से बनाया जाता है. शायद इसलिए ही भारतीय संस्कृति के कई ऐसे मशहूर पकवान और मिठाई हैं जिनके इतिहास को लेकर हमेशा कंफ्यूजन ही रहा है. 

जी हां, रबड़ी का नाम भी ऐसी ही मिठाइयों में शामिल होता है. बनारस के घाट, कान्हा की नगरी मथुरा, रजवाड़ों की धरती राजस्थान से लेकर बंगाल की गलियों तक रबड़ी खासी मशहूर है. लेकिन आखिर रबड़ी ने इतना लंबा सफर तय कैसे किया? इसलिए आज हम दस्तरखान में आपको सुना रहे हैं रबड़ी की कहानी. 

रबड़ी की उत्पत्ति पर अलग-अलग तर्क  
रबड़ी की उत्पत्ति कैसे, कब हुई- इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है. अलग-अलग जगहों और लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं. माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई, विशेषकर भारत और पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में. रबड़ी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे रबरी, राबड़ी और रबड़ी कुल्फी. यह मिठाई आमतौर पर त्योहारों और विशेष अवसरों के दौरान बनाई जाती है. 

बहुत से लोगों का मानना है कि रबड़ी का इतिहास भगवान कृष्ण की पावन धरती, मथुरा-वृंदावन से जुड़ा है. कहते हैं कि पहले इसे मथुरा में बनाया गया और यहां से रबड़ी का स्वाद बनारस पहुंचा. बनारस के हलवाइयों ने इसके स्वाद में एक अलग नयापन दिया. बनारस में भांग के बाद कुछ मशहूर हुआ तो रबड़ी. पहले रबड़ी सादी हुआ करती थी और फिर इसमें तरह-तरह के ड्राई-फ्रूट्स डाले जाने लगे और इसका स्वरूप बदल गया.  

राजस्थान का दिलचस्प है किस्सा
रबड़ी का एक लंबा और दिलचस्प इतिहास है, और इसकी उत्पत्ति प्राचीन काल में देखी जा सकती है. एक किंवदंती के अनुसार, रबड़ी का निर्माण राजस्थानी रसोइयों के एक समूह ने किया था. बताते हैं कि एक राजा के लिए उपयुक्त मिठाई बनाने का काम इन रसोइयों को सौंपा गया था. रसोइयों ने दूध को गाढ़ा और कम होने तक घंटों तक उबाला, फिर इसमें चीनी और फ्लेवर मिलाकर एक स्वादिष्ट और समृद्ध मिठाई बनाई जो शाही स्वाद के लिए उपयुक्त थी. यह व्यंजन जल्द ही आम लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया और इसकी लोकप्रियता पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गई. 

....तो क्या मुगल काल में बनी थी रबड़ी
एक दूसरी कहानी यह भी है कि रबड़ी पहली बार मुगल काल के दौरान एक बंगाली शेफ ने बनाई थी. ऐसा कहा जाता है कि शेफ ने दूध को उबालकर और चीनी और मेवे डालकर यह व्यंजन बनाया था, जिसे बाद में उसने केसर और गुलाब जल के साथ अलग स्वाद दिया. यह मिठाई इतनी लोकप्रिय थी कि यह मुगल व्यंजनों का मुख्य हिस्सा बन गई और सभी शाही भोजों और दावतों में परोसी जाने लगी. 

हालांकि, बंगाल के चर्चित साहित्य चंडीमंगला में यह भी उल्लेख है कि रबड़ी मथुरा से कोलकाता पहुंची थी. बंगाल के लोग उस समय मथुरा- वृंदावन घूमने आते थे और वे ही यहां से रबड़ी के स्वाद को बंगाल ले गए. और तो और बंगाल में एक गांव का नाम रबड़ी ग्राम है. 

गंगपुर बन गया रबड़ी ग्राम 
पश्चिम बंगाल में हुगली से कुछ दूरी पर बसा एक गांव- रबड़ीग्राम- जिसे रबड़ी प्रेमियों का गांव कहते हैं. बताते हैं कि इस गांव का पहले नाम गंगपुर था. लेकिन एक बार गांव का एक हलवाई कोलकाता गया और वहां से रबड़ी की रेसिपी सीखकर गांव आया. इसके बाद, धीरे-धीरे इस गांव में रबड़ी बनना शुरू हो गई. 

गांव के लोगों ने रबड़ी को इस तरह अपनाया कि पूरा गांव ही इसमें रम गया. और पता ही नहीं चला कि कब इस गांव को रबड़ी ग्राम के नाम से जाना जाने लगा. 

कोलकाता में रबड़ी हुई बैन 
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक समय ऐसा भी आया जब रबड़ी को बैन किया गया था. दरअसल, रबड़ी को शुद्ध दूध से बनाया जाता है और इसके लिए कई लीटर दूध की जरूरत होती है. लेकिन जब आर्थिक मंदी ने पैर पसारे तो साल 1965 में दूध के अत्याधिक इस्तेमाल के कारण रबड़ी पर बैन लगा दिया गया था. 

हालांकि, यह बैन लंबे समय तक नहीं टिका और मिठाई बनाने वाले लोगों ने इसके खिलाफ जंग छेड़ दी. लोगों के रोष को देखते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट ने साल भर के भीतर ही इस रोक को हटा दिया. और आज रबड़ी देश-विदेश में मशहूर हो रही है.