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प्रयागराज में गंगा किनारे है झूसी का उल्टा किला, जानिए क्या है यहां हनुमान गुफा और समुद्र कूप की पहेली

प्रयागराज के पास झूसी नामक एक खंडहर जगह है जो उल्टे किले के लिए मशहूर है. जानिए क्या है झूसी के जलने और यहां के किले के पलटने की कहानी.

Jhusi Jhusi
हाइलाइट्स
  • उल्टे किले के बारे में मशहूर हैं किवदंतियां

  • उल्टा किले के अंदर है ऐतिहासिक और पवित्र समुद्र कूप

कहते हैं, प्रयागराज में प्रवेश मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है. यहीं पर ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के बाद पहला यज्ञ किया था. गंगा किनारे बसे इस शहर से बहुत सी ऐसी कहानियां जुड़ी हैं. इन्हीं कहानियों में एक है यहां के उल्टे किले की पहेली जो आज तक अनसुलझी है. 

प्रयागराज शहर से वाराणसी की ओर जब हम आगे बढ़ते हैं तो शास्त्री ब्रिज पार करके झूसी इलाके में पहुंचते हैं. यहां गंगा नदी के किनारे लगभग 4 किलोमीटर के दायरे में झूसी क्षेत्र बसा हुआ है. यहां गंगा नदी के किनारे टीलों की एक श्रृंखला है जिनके नीचे बहुत से निर्माण दबे हुए हैं. इस क्षेत्र को लोग उल्टा किला के नाम से पुकारते हैं. 

उल्टे किले के बारे में मशहूर हैं किवदंतियां
कहा जाता है कि यहीं पर प्राचीनकाल में प्रतिष्ठानपुर नगर बसा हुआ था. यह चंद्रवंशीय राजाओं की राजधानी भी थी. झूसी के नामकरण व उल्टे किले को लेकर कई जनश्रुतियां व किवदंतियां प्रचलित हैं.

इलाहाबाद सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि यह नाम झूसी के शासक हरिबोंग नामक राजा की कहानी से लिया गया था. कहते हैं कि राजा बहुत पापी था और अक्सर उसके फैसले प्रजा के लिए नुकसान का कारण बनते थे. फिर एक दिन राजा के यहां एक संत आया और उसने संत की ठीक से न तो आवभगत की न ही सही खाना दिया. 

ऐसे में संत ने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया कि एक सितारा उसके किले पर गिरेगा और उसका किला उल्टा हो जाएगा. ऐसी मान्यता है कि श्राप के कारण मिर्रिख सितारा इस किले पर गिर पड़ा और तब से किला उल्टा हो गया है. 

यहां मान्यता है कि ‘अंधेर नगरी और चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा’ की कहावत हरिबोंग के राज से ही जुड़ी हुई है. प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी कहते हैं कि दूसरी किवदंती के मुताबिक एक बार गुरु गोरखनाथ और मत्स्येंद्र नाथ संगम में स्नान करने आए थे. राजा हरिबोंग ने उनको सम्मान नहीं दिया. अपने अपमान से नाराज होकर दोनों ही संतों ने राजा को श्राप दे दिया था. बताते हैं कि श्राप के प्रभाव के चलते राजा हरिबोंग की राजधानी पर वज्रपात हुआ और पूरी नगरी झुलस गई और उसका किला उलट गया. जिसे कालांतर में झूसी कहा जाने लगा. उल्टा किले में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा इस कथा को लेकर एक बोर्ड लगाया गया है. 

क्या है हनुमान गुफा का रहस्य:
उल्टे किले के दूसरे भाग में श्री हनुमान गुफा मौजूद है. गुफा के अंदर हनुमान जी की प्रतिमा स्थित है. 27 सीढ़ियों से नीचे उतरकर गुफा में हनुमान जी के दर्शन होते हैं. सीढ़ियां इतनी संकरी हैं कि दो व्यक्ति एक साथ अंदर नहीं जा सकते हैं. लेकिन अंदर जाने पर दो-तीन व्यक्तियों के खड़े होने की पर्याप्त जगह मौजूद है. 

हनुमान गुफा के साथ ही उल्टे किले के अंदर कई अन्य गुफायें भी मौजूद हैं. जिनमें कभी साधु-संत रहकर कठिन तप और साधना करते थे. यहां के पुजारियों के मुताबिक, मंदिर की 27 सीढ़ियां 27 नक्षत्रों और नौ गुफायें नौ ग्रहों को बताती हैं. गुफाओं से गिर रही मिट्टी को रोकने के लिए इसके कॉडीरोर को अब सीमेंट से बना दिया गया है. 

उल्टा किले के अंदर ऐतिहासिक और पवित्र समुद्र कूप:
उल्टा किले के अंदर एक ऐतिहासिक और पवित्र समुद्र कूप/कुआं भी मौजूद है, जिसकी अपनी कहानी और रहस्य है. इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि इस कूप का निर्माण गुप्त वंश के शासक "समुद्रगुप्त" ने कराया था. बाद में ब्रिटिश हुकूमत में लार्ड कर्जन ने इसका जीर्णोद्धार कराया था. यहां पर मेड इन इंग्लैंड दर्ज है. इस कूप की बनावट भी सीधी नहीं है बल्कि इसकी बनावट स्पाइरल यानि घुमावदार है. आप अगर सिक्का डालेंगे तो सिक्का सीधे नहीं बल्कि समुद्र कूप की दीवारों से टकराते हुए नीचे गिरता है. 

इस कूए के जल के बारे में भी खास मान्यता है. ऐसी मान्यता है कि गंगा और यमुना के तट पर स्थित इस समुद्र कूप के जल में औषधीय गुण मौजूद हैं. इसके पीने से क्षय रोग भी ठीक हो जाया करता था. यहां पर क्षय रोगी दूर-दूर से आकर प्रवास करते थे और स्वस्थ्य होने के बाद यहां से घर लौटते थे. वास्तव में उज्जैन, मथुरा, प्रयागराज, वाराणसी और पाटलपुर (पाटलिपुत्र या पटना) में पांच ऐसे कुएं पाए जाते हैं.

उल्टा किले के अंदर कई छोटे-छोटे मंदिर समूह भी हैं. लेकिन एक प्राचीन राम जानकी मंदिर भी है. जिसमें राम जानकी दरबार के साथ ही कई देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं. यह मंदिर भी काफी पुराना है. जो श्रद्धालु उल्टा किले के दर्शन के लिए आते हैं, वे यहां पर आकर राम जानकी के दर्शन जरूर करते हैं.

7100 ईसा पूर्व से है यह जगह  
झूसी के उल्टा किला के बारे में इतिहासकारों का मानना है कि ये स्थान सात हजार एक सौ ईसा वर्ष पूर्व से बसा हुआ था. यहां पर राजा इला के पुत्रों ने राज किया था. कार्बन डेटिंग से ये पता चला है कि किसी समय यहां उल्का पिंड गिरा था. जिसके गिरने से पूरा क्षेत्र झुलस गया था इसलिए यहां पर आज भी जले हुए अवशेष मिलते हैं. इसके साथ ही कई मंदिरों के अवशेष भी यहां मिलते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि 1359 में यहां पर एक बड़ा भूकंप आया था, जिससे भौगोलिक परिवर्तन हुआ और किला उलट गया. यहां पर किले के अलावा भी कई दूसरे अवशेष मौजूद हैं जिन्हें देखा जा सकता है. 

इतिहासकार मानते हैं कि इस स्थान को लेकर अभी भी अध्ययन की बहुत ज्यादा गुंजाइश है और इसको दर्शनीय स्थल के रूप में भी विकसित किया जा सकता है. इसे अगर पर्यटकों के लिए खोला जाये और यूपी पर्यटन के टूरिस्ट मैप पर लाया जाये तो उल्टा किले के रहस्य और रोमांच को जानने के लिए बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंच सकते हैं.