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Masooma Rizvi: इस मशहूर आर्ट क्यूरेटर ने सजाई हैं नई संसद और राष्ट्रपति भवन जैसी बिल्डिंग्स, मिलिए आर्किटेक्ट मासूमा रिज़वी से

यह कहानी है देश की जानी-मानी आर्किटेक्ट, आर्टिस्ट, और इंटीरियर डिजाइनर, मासूमा रिज़वी की है. जिन्होंने आज इस इंडस्ट्री में अपनी एक खास जगह बनाई है.

Masooma Rizvi (Photo: X.com/Masooma Rizvi) Masooma Rizvi (Photo: X.com/Masooma Rizvi)

जब बात देश की बेहतरीन इमारतों की इंटीरियर डिजाइनिंग की आती है, तो आर्ट और म्यूजियम क्यूरेटर और डिजाइनर मासूमा रिज़वी का नाम चर्चा में जरूर होता है. भारत में एक लीडिंग इंटीरियर डिजाइनिंग फर्म, बेलिटा डिजाइन सॉल्यूशंस की फाउंडर, मासूमा रिज़वी एक जानी-मानी वास्तुकार, कलाकार, संग्रहालय विज्ञानी (Museologist) और उद्यमी हैं जो भारत के ऐतिहासिक लैंडस्केप्स में जान फूंक रही हैं. उन्होंने दृष्टि नई संसद भवन और मानेकशॉ केंद्र की कलाकृति, राष्ट्रपति भवन के अंदरूनी हिस्से, और कुछ एयरपोर्ट्स जैसे महर्षि वाल्मिकी अंतर्राष्ट्रीय अयोध्या हवाई अड्डा, चेन्नई एयरपोर्ट जैसे आयकॉनिक स्ट्रक्चर्स को अलग रूप दिया है.  

बचपन से था कला का जुनून
तेलंगाना की रहने वाली मासूमा रिज़वी आर्मी फैमिली से आती हैं और इस कारण, वह लगभग पूरा भारत देश घूमी हैं. उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा अपनी दादी के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका में भी बिताया. इसलिए अलग-अलग जगहों पर तालमेल बिठाना और लोगों से घुलना-मिलना उनके लिए हमेशा से ही बहुत आसान रहा. बचपन से ही कला के प्रति रुचि रखने वाली मासूमा ने कॉलेज में आर्ट पढ़ने का फैसला किया. लेकिन उनके माता-पिता को लगता था कि उन्हें साइंस पढ़नी चाहिए. इसके अलावा, उनकी शादी भी जल्दी हो गई थी. लेकिन, मासूमा ने अपना मां से वादा किया था कि वह पढ़ाई पूरी करेंगी और अपने पैरों पर खड़ी होंगी. 

पहले अपने माता-पिता के कहने पर साइंस लेने के कुछ समय बाद मासूमा को समझ में आया कि उनक दिलचस्पी कला में है और उन्होंने आर्किटेक्चर करने का फैसला किया. लेकिन राह इतनी आसान नहीं थी. जब उनकी पढ़ाई पूरी हुई तो उन्हें अहसास हुआ कि आर्किटेक्चर इंडस्ट्री लड़कियों को आसानी से मौके नहीं देती है. वह जहां भी जातीं, लोग उनसे पूछते थे कि आर्किटेक्ट कहां है और उन्हें बताना पड़ता था कि वह ही आर्किटेक्ट हैं. लेकिन मासूमा ने कभी हार नहीं मानी और मेहनत से आगे बढ़ती रहीं. 

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सरकारी इमारतों के साथ किया काम 
मासूमा ने अपनी मीडिया इंटरव्यू में बताया कि वह जब भी अपने पिता या पति के साथ आर्मी ऑफिस या सरकारी भवनों में जाती थी, तो उन्हें वे बहुत ही रूखे और खाली-खाली लगते थे. सब कुछ बेज रंग का था और कोई कला नहीं. तब उन्होंने निर्णय लिया कि वह इन जगहों को सुंदर बनाना चाहती हैं. इसलिए उन्होंने आर्मी मेस, आर्मी म्यूजियम और फिर प्रोफेशनल तरीके से शुरुआत की. 

राष्ट्रपति भवन के लिए आर्ट को क्यूरेट करने का उनका अनुभव अब्दुल कलाम जी के साथ शुरू हआ. उस समय वह भारत के राष्ट्रपति थे. वह राष्ट्रपति भवन में एक झोपड़ी बनवाना चाहते थे और कई कलाकारों में से उन्हें सबसे ज्यादा मासूमा का डिजाइन पसंद आया. यहां से उनका सरकारी इमारतों के साथ काम शुरू हुआ. और इस प्रोजेक्ट के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

300 आर्टिस्ट्स को रोजगार 
उन्होंने भारत में आर्ट क्यूरेटर के तौर पर भी करियर बनाया है. उन्होंने देश के स्मारकों और संग्रहालयों को अलग रूप दिया है. खासकर वर्तमान समय में, जब सरकार ने यह नियम बना दिया है कि प्रत्येक इमारत को कम से कम 1% कला को इसमें शामिल करना होगा, तो अब मासूमा के काम की वैल्यू और भी बढ़ गई है. आज, वह लगभग 300 पारंपरिक कलाकारों के साथ काम करती हैं जिनके काम ने पारंपरिक शिल्प कौशल को संरक्षित करने में जबरदस्त योगदान दिया है. भारतीय संस्कृति की पारखी, मासूमा की कोशिश हमेशा से देश की विरासत को अपनी कला के जरिए आगे बढ़ाने की रही है.