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Aipan Girl: मिलिए उत्तराखंड की ऐपण गर्ल से, पारंपरिक कला को सहेजकर महिलाओं को दिया रोजगार

उत्तराखंड की मीनाक्षी खाटी को आज देशभर में Aipan Girl के नाम से जाना जा रहा है क्योंकि उन्होंने राज्य की पारंपरिक कला, ऐपण को सहेजकर लोगों को इससे जोड़ा है और उन्हें रोजगार देने का भी काम कर रही हैं.

Aipan Girl, Meenakshi Khati (Photo: Instagram) Aipan Girl, Meenakshi Khati (Photo: Instagram)
हाइलाइट्स
  • ऐपण को कहते हैं अल्पना या अर्पण कला

  • लोगों को सिखा रही हैं ऐपण कला 

उत्तराखंड के रामनगर शहर की 24 वर्षीय मीनाक्षी खाटी ने राज्य की पारंपरिक कला ऐपण को लोगों के घरों तक पहुंचा दिया है. आज यह कला कुमाऊं क्षेत्र के हजारों लोगों के लिए आजीविका का स्रोत बन गई है. ऐपण उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की एक पारंपरिक लोक कला है. कुमाऊंनी लोगों का मानना ​​है कि ऐपण कला के जरिए लोग एक दैवीय शक्ति का आह्वान करते हैं जो अच्छा भाग्य लाती है और बुराई को खत्म करती है. 

इस कला का उपयोग दीवारों और फर्शों पर आकर्षक रूपांकनों में किया जाता है. इसे बनाने के लिए जिसमें 'गेरू', जंगलों से इकट्ठा किया हुआ केसरिया-लाल मिट्टी का रंग और चावल का स्टार्च, जिसे स्थानीय रूप से 'बिस्वार' पेस्ट कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है. सबसे पहले ऐपण का आधार 'गेरू' मिट्टी से तैयार किया जाता है और फिर 'बिस्वार' का इस्तेमाल करके विभिन्न डिजाइन बनाए जाते हैं. 

ऐपण को कहते हैं अल्पना या अर्पण कला
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मीनाक्षी मुश्किल से छह साल की थी जब वह अपने परिवार को दीपावली और अन्य अवसरों पर ऐपण डिजाइन बनाते हुए उत्सुकता से देखती थी. उनकी मां और दादी घर में आकर्षक डिज़ाइन बनाती थीं. वह इस कला से बहुत आकर्षित हुईं. ऐपण के बारे में उकी जिज्ञासा ने उन्हें अपना खुद का डिज़ाइन बनाने के लिए प्रेरित किया. 

ऐपण जैसे कला रूपों को देश के अन्य हिस्सों में 'अल्पना' और 'अर्पण' के नाम से भी जाना जाता है. मीनाक्षी ने डेढ़ घंटे में अपना पहला ऐपण डिज़ाइन बनाया, तो उनकी दादी ने उन्हें गले लगाया और आशीर्वाद दिया कि वह इस कला में नाम कमाएंगी. 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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ऐपण के इतिहास को समझा 
मीनाक्षी ने इस कला के इतिहास और उत्पत्ति जानने के लिए तीन साल तक इसका गहराई से अध्ययन किया. वह पद्मश्री से सम्मानित यशोधरा मठपाल जैसे इतिहासकारों और विद्वानों से मिलीं. उन्होंने बताया कि ऐपण कला की जड़ें चंद राजवंश (लगभग 8वीं शताब्दी) से जुड़ी हैं. उनका उद्देश्य युवाओं के बीच कला को लोकप्रिय बनाना था. 

मीनाक्षी इस कला को रोज़गार से जोड़ना चाहता थीं. उन्हें खुशी है कि अपने बड़ों के आशीर्वाद से वह इस मुकाम तक पहुंची हैं. उन्होंने उत्तराखंड में कुमाऊं की लोक कला को एक नई पहचान दी है, जहां वह आज 'ऐपण गर्ल' के नाम से जानी जाती हैं.

लोगों को सिखा रही हैं ऐपण कला 
मीनाक्षी ने 2018 से इस पर काम करना शुरू किया. राज्य में 3,451 लोगों को ऑफ़लाइन प्रशिक्षण दिया गया है और देश और विदेश में महिला स्वयं सहायता समूहों सहित 5,241 ऐपण ट्रेनर्स को ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया है. लोगों को सोशल मीडिया, स्कूलों में वर्कशॉप्स और प्रदर्शनियों के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया है. 

वह 'मीनाकृति - द ऐपण प्रोजेक्ट' नाम से एक प्रोजेक्ट भी चलाती हैं. उन्होंने इसे दिसंबर 2019 में शुरू किया था. उत्तराखंड में 4,000 से अधिक महिलाओं ने इसे अपना रोजगार बना लिया है और उन्हें अपने खर्चों के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है. वर्तमान में, उत्तराखंड सरकार भी ऐपण कला को प्रमोट कर रही है. मीनाक्षी के मुताबिक ऐपण आर्ट का सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपये से ज्यादा हो गया है.

मिले हैं कई सम्मान 
मीनाक्षी को ऐपण कला को सहेजने के लिए महिला मातृशक्ति पुरस्कार, मां नंदा शक्ति पुरस्कार, वीर बालिका, कल्याणी सम्मान और 2021 के सर्वश्रेष्ठ उद्यमी सहित कई सम्मान मिले हैं. दिसंबर, 2022 में उन्हें देहरादून राजभवन में एक कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ तीन मिनट तक बातचीत करने का अवसर मिला. उन्होंने राष्ट्रपति को उनके नाम की एक पट्टिका भेंट की.